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  1. कल दसवीं कक्षा के नतीजे घोषित हुए। आज  के अख़बारों में सबसे अधिक नंबर पाने वलों के नाम और तस्वीरें पहले पन्नों पर छायी हुई हैं। ऎसे में "हिंदुस्तान टाइम्स" (मुंबई संस्करण) में परीक्षा में असफल होने वालों को विशेष स्थान दिया गया है और एक ऎसे विद्यार्थी का दिल को छू लेने वाला एक क़िस्सा छपा है जो क़रीब दो दशक पहले दसवीं की परीक्षा में फेल हो गया था।

    उसने लिखा है, कि पहली बार वह जिंदगी में इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर रहा है कि वह इस परीक्षा में फेल हुआ था।

    एक ग़रीब बाप के उस बेटे के लिये गणित में 100 में से सिर्फ़ 19 नंबर पाना ज़िंदगी ख़त्म होने से कम नहीं था। " मेरे दोस्त कॉलेज चले गये और मेरा उनका साथ छूट गया। आख़िर एक असफल दोस्त का साथ भला कौन चाहता?"  वह लिखता है। "मैं एक अंधेरे कमरे मैं बैठा दीवार को घूरता रहता.. मेरे मां-बाप ने इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहा पर मैं सोच सकता हूं कि उनके दिल पर क्या बीती होगी।"

    मुश्किल यह थी कि वह छात्र लापरवाही के कारण नहीं बल्कि इसलिये फेल हुआ था कि तमाम कोशिशों के बावजूद गणित उसके पल्ले नहीं पड़ता था।

    लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। खुद को संभाला और उन विषयों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया जिनमें उसकी रुचि थी और वह अच्छा काम कर सकता था, जैसे कि लेखन। गणित से उसने तौबा कर ली और बाकी विषयों पर मेहनत करने लगा क्योंकि उसे मालूम था कि वह गणित पढ़ने के लिये नहीं बना है।

    दसवीं में फेल होने वाला वह छात्र, समर हरलनकर्, आज "हिंदुस्तान टाइम्स"  के पश्चिमी क्षेत्र का संपादक है। आज उनकी तस्वीर अखबार में उस लेख के साथ छपी है जिसमें उन्होंने अपने फेल होने की दास्तान लिखी है और शीर्षक दिया है, "हां, मैं फेल हुआ था, तो क्या?"

    सफल वे नहीं होते जो दूसरों के बनाये रास्ते पर चलते हैं, सफल वे होते हैं जो अपनी पगडंडियां खुद बनाते हैं।

    आप किनमें से हैं?

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    Thankes

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