मूल नाम | : | धनपत राय |
जन्म | : | 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) |
भाषा | : | हिंदी, उर्दू |
विधाएँ | : | कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य |
1 केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है | ~ प्रेमचंद
2 कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है | ~ प्रेमचंद
3 दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। -प्रेमचंद
4 सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं | ~ प्रेमचंद
5 कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता | कर्तव्य-पालन में ही चित्त की शांति है | ~ प्रेमचंद
6 नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है | ~ प्रेमचंद
7 अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है | ~ प्रेमचन्द
आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है | ~ प्रेमचन्द
8 यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं | ~ प्रेमचन्द
9 जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं | ~ मुंशी प्रेमचंद
10 लगन को कांटों कि परवाह नहीं होती | ~ प्रेमचंद
11 उपहार और विरोध तो सुधारक के पुरस्कार हैं | ~ प्रेमचंद
12 जब हम अपनी भूल पर लज्जित होते हैं, तो यथार्थ बात अपने आप ही मुंह से निकल पड़ती है | ~ प्रेमचंद
13 अपनी भूल अपने ही हाथ सुधर जाए तो,यह उससे कहीं अच्छा है कि दूसरा उसे सुधारे | ~ प्रेमचंद
14 विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला | ~ मुंशी प्रेमचंद
15 आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है | ~ प्रेमचन्द
16 सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है | ~ प्रेमचन्द
17 डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है | ~ प्रेमचंद
18 चिंता रोग का मूल है। – प्रेमचंद
19 चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती। – प्रेमचंद
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