पिछली सदी के दो बड़े नाम पूछे जाएं, तो सहज ही महात्मा गांधी व आइंस्टीन के नाम आयेंगे. दोनों ही शुरुआती पढ़ाई में औसत थे. आइंस्टीन को तो मंदबुद्धि बालक माना जाता था. स्कूल शिक्षक ने यहां तक कह दिया था कि यह लड़का जिंदगी में कुछ नहीं कर पायेगा.
बड़े होने पर वह पॉलीटेक्निक इंस्टीच्यूट की प्रवेश परीक्षा में भी फेल हो गये. हालांकि, उन्हें भौतिकी में अच्छे नंबर आये थे, पर अन्य विषयों में वह बेहद कमजोर साबित हुए. अगर वह निराश हो गये होते, तो क्या दुनिया आज यहां होती. उन्हें फादर ऑफ मॉडर्न फिजिक्स कहा जाता है. जिंदगी के किसी एक मोड़ पर असफलता मिलते ही आत्मघाती कदम उठाने वाले युवा आइंस्टीन से सीख सकते हैं. युवाओं को सही दिशा देने में अभिभावकों व शिक्षकों की भी अहम भूमिका है. हमारे यहां बुद्धिमता के बस दो पैमाने हैं-पहला मौखिक (वर्बल), जिसमें सूचनाओं का विेषण करते हुए सवाल हल किये जाते हैं व दूसरा गणित या विज्ञान. देर से ही सही अमेरिकी मनोविज्ञानी गार्डनर के विविध बुध्दिमता के सिद्धांत को बिहार के स्कूलों में भी अपनाया जा रहा है. गार्डनर ने बताया कि बुद्धिमता आठ तरह की होती है. इसीलिए गणित या अंगरेजी में फेल हों या आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में असफलता मिले, तो हार न मानें. असफलता तो सफलता की सीढ़ी है. आइंस्टीन ने भी यही माना और अपने परिवार,पड़ोसी व गुरु जी को गलत साबित कर दिया. जो मानते हैं कि आप जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते, उन्हें आप भी गलत साबित कर सकते हैं.
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