किसी एक गांव के किनारे बने तालाब के पास हंस और हँसनी का जोडा रहता था |
दोनो का ही जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था | एक दिन हँसनी ने हंस से कहा-
आओ कहीं दूर की सैर करने चलते है, कुछ मन भी बहलेगा | हंस ने भी हामी भरी
और दोनो उड़ चले | उड़ते -उड़ते जब शाम होने को आई तो हँसनी ने हंस से
कहा- आओ यहीं इस पेड़ पर बसेरा ले लेते हैं | काफ़ी थक भी गये है | हंस
ने कहा- ठीक है | और वह हंस और हँसनी पेड़ की एक शाखा पर बैठ गये | कुछ
देर बाद हँसनी ने पास के एक गांव्र पर नज़र डालकर हंस से कहा- देखो तो
सही यहाँ से वहाँ दूर-दूर तक सन्नाटा है कोई रोशनी भी नही है,
यहाँ ऐसा वीराना आख़िर क्यों है ? हंस ने कहा- बात तो तुम्हारी सत्य
प्रतीत होती है | मुझे ऐसा लगता है कि शायद यहाँ कोई उल्लू रहता है, इसी
कारण यहाँ दूर-दूर तक वीराना छाया हुआ है | उसी पेड़ पर बनी एक खोह में
उल्लू बैठा था जो उनकी बातों को बढ़े ध्यान से सुन रहा था | उसे सुनकर
क्रोध तो बहुत आया, लेकिन कुछ सोचकर चुप रहा |
अगले दिन सुबह के समय हंस और हँसनी वापस उड़ने के लिए उद्धत / तैयार हुए
, तभी उल्लू ने हँसनी को पकड़ लिया और हंस से कहा- अब तुम जाओ यह हँसनी
अब मेरी है | उल्लू ने फिर कहा - मैने कहा न क़ि यह हँसनी मेरी है | जाओ
यहाँ से | हंस ने कहा - ऐसा कैसे हो सकता है, हँसनी तो मेरी है | बात
बढ़ती गयी परंतु उल्लू ने हँसनी को मुक्त करने से मना कर दिया | हंस
निराश सा होने लगा | हंस ने पुनः विनती की, कि मेरी हँसनी को मुक्त कर दो
|
उल्लू ने हंस के चेहरे पर निराशा को देखकर कहा - यदि इस गांव की पंचायत
यह फ़ैसला दे देगी कि यह हँसनी तुम्हारी है तो मैं हँसनी को मुक्त कर
दूँगा | थक - हारकर हंस ने उसी गांव की पंचायत में गुहार लगाई | और
आख़िरकार पंचायत बैठी | हंस ने हँसनी को अपना बताते हुए अपना पक्ष रखा |
और उल्लू ने कहा - पंच महोदय ! यह हँसनी तो मेरी है, यह हंस झूठ बोल रहा
है | दोनो की बातें सुनकर पंचायत ने आपस में विचार-विमर्श करना शुरू कर
दिया |
एक पंच ने कहा - बचपन में मेरी नानी एक कहानी सुनाती थी जिसमें वह उल्लू
और हँसनी के जोड़े की बात कहती थी | दूसरे पंच ने कहा- बात तुम्हारी ठीक
लगती है, मेरे दादाजी भी कहा करते थे कि उन्होने ने भी एक हँसनी और उल्लू
का जोड़ा देखा भी था | तीसरे पंच ने कहा - मेरे बाबा ने भी एक किस्सा
सुनाया था उसमे भी उन्होने हँसनी और उल्लू का जोड़ा होने की बात बताई थी
| इसी प्रकार चौथे और पाँचवें पंच ने भी उन सबकी हाँ में हाँ मिलाते हुए,
हँसनी और उल्लू का जोड़ा होने की बात का समर्थन कर दिया | आख़िरकार
पंचायत ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए हँसनी को उल्लू को सौपने के आदेश दे
दिए | हंस और हँसनी फ़ैसला सुनकर घोर निराशा से भर गये | हँसनी और हंस
दोनो की आँखों में आँसू आ गये | हंस मायूस हो गया |
हंस दुखी मन से आँखों में आँसू लिए उड़ने को उद्धत हुआ तो उल्लू ने हंस
को रोक लिया और उससे कहा - तुम कल रात पेड़ पर बैठकर हँसनी को क्या समझा
रहे थे ? तुम्हें शायद याद नहीं आ रहा है, मैं तुम्हें याद दिलाता हूँ |
हँसनी ने तुमसे यह पूछा था कि इस गांव में इतना सन्नाटा क्यों है ? ऐसा
क्यों लगता है कि गांव में कोई दिया जलाने वाला तक नहीं है ? तो तुमने
कहा - कि यहाँ ज़रूर कोई उल्लू रहता होगा तभी इतना यहाँ सन्नाटा है |
अब तुम मुझे यह बताओ कि गांव में यह वीराना/सन्नाटा मेरी वजह से है या इन
पंचों कि वजह से है ? जिन्होंने तुम्हारी हँसनी मुझे सौंप दी | जब पंचायत
ऐसी होगी तब गांव में वीराना नही होगा तो क्या होगा ? हँसनी तुम्हारी है
और तुम्हारी ही रहेगी | यह कहकर उल्लू ने हँसनी को हंस के सुपुर्द कर
दिया | बात कहते-कहते उल्लू का गला भर आया था और उसकी आँखों में भी आँसू
आ गये थे ..................| हंस ने उल्लू से माफ़ी माँगी और उल्लू को
धन्यवाद देते हुए हंस और हँसनी वापस उड़ गये |
Name: TRIBHUWAN KISHOR
Email: tribhuwankishor1000@gmail.com
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हंस, हँसनी और उल्लू
Sunday, May 11, 2014
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