सहनशीलता जिसमें नहीं है, वह शीघ्र टूट जाता है. और, जिसने सहनशीलता के कवच को ओढ़ लिया है, जीवन में प्रतिक्षण पड़ती चोटें उसे और मजबूत कर जाती हैं.
मैंने सुना
है, एक व्यक्ति किसी लुहार के द्वार से गुजरता था. उसने निहाई पर पड़ते
हथौड़े की चोटों को सुना और भीतर झांककर देखा. उसने देखा कि एक कोने में
बहुत से हथौड़े टूटकर और विकृत होकर पड़े हुए हैं. समय और उपयोग ने ही उनकी
ऐसी गति की होगी. उस व्यक्ति ने लुहार से पूछा, ”इतने हथौड़ों को इस दशा
तक पहुंचाने के लिए आपको कितनी निहाइयों की जरूरत पड़ी?” लुहार हंसने लगा
और बोला, ”केवल एक ही मित्र. एक ही निहाई सैकड़ों हथौड़ों को तोड़ डालती
है, क्योंकि हथौड़े चोट करते हैं और निहाई चोट सहती है.”
यह सत्य है
कि अंत में वही जीतता है, जो सभी चोटों को धैर्य से स्वीकार करता है. निहाई
पर पड़ती हथौड़ों की चोटों की भांति ही उसके जीवन में भी चोटों की आवाज तो
बहुत सुनी जाती है, लेकिन हथौड़े अंतत: टूट जाते हैं और निहाई सुरक्षित
बनी रहती है.
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