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लिखिए अपनी भाषा में

  1. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में जंगली भालुओं की ईश्वर के प्रति भक्ति
    देखते ही बनती है. जिले के बागबाहरा तहसील मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर
    की दूरी पर जंगल के बीचों-बीच मां चंडी देवी का भव्य मंदिर स्थित है. इस
    देवी मंदिर में श्रद्धालुओं के साथ भालुओं का भी पूरा परिवार दर्शन के
    लिए पहुंचता है. चंडी देवी मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों भक्त अपनी
    मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. माता के दरबार में पहुंचने वाले भालू परिवार
    के चार भक्तों को जब देखते हैं तो सबकी सांसें थम जाती हैं.

    प्रदेश के कई देवी मंदिर ग्रामीण क्षेत्रों से दूर घने जंगलों और
    पहाड़ियों में स्थित हैं. इन मंदिरों में प्रतिदिन भक्तों की भीड़ उमड़ती
    है. चंडी देवी के मंदिर में सांझ ढलते ही पिछले साल भर से 'विशेष भक्तों'
    का आना-जाना लगा हुआ है. देवी में अटूट आस्था और भक्ति रखनेवाले ये भक्त
    कोई और नहीं, जंगल के भालू हैं. भालू का पूरा कुनबा साल भर से हर शाम
    माता के दर्शन के लिए पहुंच जाता है.

    मंदिर में नियमित रूप से पहुंचने वाले बागबाहरा के घनश्याम साहू ने
    वीएनएस को बताया कि भालूओं का पूरा परिवार मंदिर में चंडी मां के दर्शन
    के लिए बेताब रहता है. भालुओं के इस कुनबे में चार सदस्य हैं. इस अनूठे
    देवी भक्त भालू परिवार में नर और मादा भालू के साथ उनके दो शरारती बच्चे
    भी हैं. बुंदेली निवासी रोहित वर्मा बताते हैं कि पिछले एक साल से यह
    सिलसिला जारी है.

    वर्मा ने कहा कि प्रतिदिन भालू परिवार यहां आता है. परिवार का एक सदस्य
    मंदिर के बाहर सीढ़ियों के पास खड़ा रहता है और मादा भालू अपने दो बच्चों
    के साथ मंदिर में दाखिल हो जाती है. तीनों भालू देवी की भक्ति में लीन हो
    जाते हैं. देवी मां चंडी की 23 फीट ऊंची मूर्ति की ये तीनों परिक्रमा
    करते हैं और उसके बाद वहां अन्य भक्तों द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को बड़े
    चाव से खाते हैं.

    इतना सब कुछ करने के बाद भालुओं का यह परिवार चुपचाप वापस जंगलों की तरफ
    चला जाता है. पिछले साल भर से भालुओं की भक्ति का यह दौर जारी है. मंदिर
    के पुजारी बताते हैं कि इस दौरान न तो ये भालू कभी हिंसक हुए हैं और न ही
    किसी दूसरे भक्त को आज तक कोई नुकसान पहुंचाया है.

    अलबत्ता, अगर उनकी भक्ति के बीच कोई उन्हें परेशान करे, भगाने का प्रयास
    करे या प्रसाद खाने से रोके, तब ये जरूर गुस्से का इजहार करते दिखते हैं.
    ग्रामीण जहां भालुओं की इस भक्ति को मां की कृपा मान रहे हैं, वहीं
    वन्यजीव विशेषज्ञ इसके पीछे जंगलों में भालुओं के लिए खाने की कमी को
    मुख्य वजह मानते हैं. वजह चाहे जो भी हो, बागबाहरा का यह देवी मंदिर इन
    भालुओं के चलते प्रसिद्ध होता जा रहा है.

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