प्रति वर्ष ,15 अगस्त हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया
जाता है .यह दिन हमारे लिए गौरव का दिन भी है,क्योकि इस दिन हमारा देश
विदेशी दस्ता से मुक्त हुआ था.आज हम विश्व पटल पर गौरव के साथ कह सकते
हैं की हम स्वतन्त्र देश के नागरिक हैं ,परन्तु क्या हम विदेशी दस्ता से
मुक्त हो कर भी सही माएनों में आजाद हो पाए हैं ?क्या आजादी का लाभ देश
के प्रत्येक नागरिक को मिल पाया ? पैंसठ वर्ष का लम्बा समय बीत जाने के
पश्चात् भी क्या हम सभी नागरिकों के लिए उनकी बुनियादी आवश्यकतायें
अर्थात रोटी ,कपडा और मकान , सम्मान पूर्वक उपलब्ध करा पाए ?क्या आज भी
देश की आम जनता को न्याय एवं सुरक्षा की गारंटी दे पाए ?क्या वैश्विक
प्रतिस्पर्द्धा से टक्कर लेने के लिए प्रयाप्त शिक्षा व्यवस्था कर पाए
?क्या हम ऐसी व्यवस्था बना पाने में सफलता पा सके ताकि विमान हादसे ,रेल
दुर्घटनाये ,सड़क हादसों जैसी आकस्मिक दुर्घटनाओं तथा भूकंप ,तूफ़ान
,बाढ़ सूखा जैसे प्राकृतिक विपदाओं के समय आवश्यक सहायता जैसे चिकत्सा
व्यवस्था ,आर्थिक सहायता ,पुनर्वास योजना इत्यादि उपलब्ध करा पा रहे हैं
?
यह हम सभी जानते हैं की सभी मोर्चों पर हम असफल रहे हैं.जो हमारी अब तक
की विकास यात्रा का भयावह पहलू उजागर करता है .अब ज्वलंत प्रश्न यह है
आखिर आजादी मिलने के इतने लम्बे अन्तराल के पश्चात् भी हम मौलिक विकास
में क्यों पिछड़े हुए हैं ?आखिर क्यों अपने देश के नागरिकों द्वारा ही
सत्ता सम्हालने के बाद भी देश के लिए कुछ
खास नहीं कर पाए ? देश की जनता के साथ न्याय नहीं कर पाए ?
देश को आजाद कराने के लिए अनेक योद्धाओं ,अनेक स्वतंत्रता सैनानियों ने
अपने जीवन को न्योछावर कर दिया .उस देश को उसके नेता ही उचित आयाम नहीं
दे सके ?कारण भी स्पष्ट है ,आजादी के पश्चात् देश का नेतृत्व समाज सेवकों
,या देश भक्तों के स्थान पर व्यापारियों के हाथो में चला गया.आजादी के
पश्चात् जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर आयी वे देश की सेवा भावना कम ,
स्वार्थ सेवा की भावना से अधिक प्रेरित थे . उन्होंने राजनीति को एक
व्यवसाय के रूप में अपनाया देश भक्ति की ,या समाज सेवा की भावना लुप्त हो
गयी.हमारी दोष पूर्ण महँगी चुनाव प्रणाली ने सिर्फ दौलत मंद या दबंगों को
चुनाव जीतने का अवसर प्रदान किया .और ईमानदार ,देश भक्त व् प्रतिभशाली
नागरिकों को राजनीति में आने या नेतृत्व सम्हालने से वंचित कर दिया .धन
बल और बाहू बल के आधार पर चुनाव जीतने वाले नेता अपनी चुनावों में खर्च
की गयी रकम को कई गुना लाभ सहित बसूलने के हथकंडे अपनाते रहे .अपनी
महत्वाकांक्षा पूरी करने अर्थात अपने खजाने को भरने के लिए भ्रष्टाचार का
सहारा लिया अपने इस कार्य को अंजाम देनेके लिए सम्पूर्ण नौकर शाही का
सहारा लिया जिसने सरकारी अमले को आकंठ भ्रष्टाचार में डुबो दिया .जनता को
समय समय पर शांत करने के लिए भ्रष्टाचार मिटने के अनेकों नाटक किये गए,
और आज भी तथाकथित प्रयास जारी हैं ,और जारी रहेंगे .मुट्ठी भर नेताओं
,व्यापारियों ,उद्योगपतियों ,नौकरशाहों ने देश को दीमक की भांति चाट कर
अकूत अवैध संपत्ति एकत्र कर विदेशी बैंकों में जमा करा दी.और देश को
कंगाल कर दिया.आजादी के पूर्व विदेशी लोग देश की संपत्ति को लूट कर अपने
देश ले जाते थे ,परन्तु आजादी के पश्चात् अपने देश के नेता ही जनता को
लूटकर,उसका शोषण कर अवैध संपत्ति बटोर कर अपना धन विदेशी बैंकों में जमा
कराने लगे .अर्थात जनता आजादी पूर्व भी शोषित होती थी आज भी होती है
सिर्फ चेहरे बदल गए . कुछ दिनों पूर्व स्विस बेंक ने अपने यहाँ जमा
विदेशी पूंजी के आंकड़े देते हुए बताया , की
भारतीयों द्वारा जमा करायी गयी राशी विश्व में सर्वाधिक है .इंटरनेट से
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कुल 1.4 ट्रिलियन अर्थात 1456 अरब डॉलर स्विस
बैंकों में जमा है ,स्विस बैंक के अतिरिक्त अन्य विदेशी बैंकों में कितना
धन जमा है उसका कोईआंकड़ा उपलब्ध नहीं है .परन्तु ऊपर बताई गयी राशी देश
पर कुल कर्ज का तेरह गुणा है .यदि वहां जमा समस्त काला धन देश में लाया
जा सके तो विदेशी कर्ज चुकाने के पश्चात् बची राशी से बिना कोई टेक्स
जनता पर थोपे,भारत सरकार के समस्त खर्चे तीस वर्षों तक बिना किसी रूकावट
के चलाये जा सकते हैं .
उपरोक्त सभी विसंगतियों के होते हुए भी देश की जनता ने अपने अध्यवसाय से
,अपने श्रम से, उन्नति भी की है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता
.हमारे देश की जनता ने व्यापारियों ने ,उद्यमियों ने विषम परिस्थितियों
के होते हुए भी अपनी महनत और लगन से देश को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर
करने के भरपूर प्रयास किये हैं .आज भी हमारा देश खनिज सम्पदा ,वन सम्पदा
,एवं युवा शक्ति के मामले में किसी देश से कम नहीं है .जिस देश को कभी
सोने की चिड़िया कहा जाता था ,यदि आज भी देश के संसाधनों का सदुपयोग किया
जाय तो वर्तमान समय में भी विश्व का सिरमौर बनने की क्षमता देश के पास है
.सिर्फ आवश्यकता है ,देश को कर्तव्यनिष्ठ ,ईमानदार ,प्रतिभाशाली तथा देश
के लिए समर्पित व्यक्तियों का नेतृत्व प्राप्त हो .
यह भी आश्चर्य का विषय है ,जिस देश में नित नए घोटाले जनता के समक्ष आते
हों ,उसके बावजूद देश की उन्नत्ति होते रहना विकसित देशों को सकते में
लाता है . देश की युवा शक्ति और कर्मठ जनता का कमाल ही कहा जायेगा.उन्नति
का उचित आंकलन करने के लिए कोई भी छठे दशक की फिल्म का अवलोकन करना होगा
.जिससे आजादी के तुरंत पश्चात् एवं आज की जीवन शैली में बुनियादी फर्क
देखा जा सकता है .परन्तु विडंबना यह है इस उन्नति में सामाजिक समरसता का
उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है इसी कारण एक तरफ बेपनाह उन्नति दिखाई देती
है ,तो दूसरी तरफ गरीबी ,बेरोजगारी भुखमरी अराजकता ने अभी तक हमारा साथ
नहीं छोड़ा है क्या यही है हमारी आर्थिक स्वतंत्रता है ,क्या यही हमारी
उन्नति की परिभाषा है ,या हमारे देश का विकास है ? जब तक देश के अंतिम
व्यक्ति तक विकास का लाभ नहीं पहुँचता कोई भी उन्नति बेमाने है.
जाता है .यह दिन हमारे लिए गौरव का दिन भी है,क्योकि इस दिन हमारा देश
विदेशी दस्ता से मुक्त हुआ था.आज हम विश्व पटल पर गौरव के साथ कह सकते
हैं की हम स्वतन्त्र देश के नागरिक हैं ,परन्तु क्या हम विदेशी दस्ता से
मुक्त हो कर भी सही माएनों में आजाद हो पाए हैं ?क्या आजादी का लाभ देश
के प्रत्येक नागरिक को मिल पाया ? पैंसठ वर्ष का लम्बा समय बीत जाने के
पश्चात् भी क्या हम सभी नागरिकों के लिए उनकी बुनियादी आवश्यकतायें
अर्थात रोटी ,कपडा और मकान , सम्मान पूर्वक उपलब्ध करा पाए ?क्या आज भी
देश की आम जनता को न्याय एवं सुरक्षा की गारंटी दे पाए ?क्या वैश्विक
प्रतिस्पर्द्धा से टक्कर लेने के लिए प्रयाप्त शिक्षा व्यवस्था कर पाए
?क्या हम ऐसी व्यवस्था बना पाने में सफलता पा सके ताकि विमान हादसे ,रेल
दुर्घटनाये ,सड़क हादसों जैसी आकस्मिक दुर्घटनाओं तथा भूकंप ,तूफ़ान
,बाढ़ सूखा जैसे प्राकृतिक विपदाओं के समय आवश्यक सहायता जैसे चिकत्सा
व्यवस्था ,आर्थिक सहायता ,पुनर्वास योजना इत्यादि उपलब्ध करा पा रहे हैं
?
यह हम सभी जानते हैं की सभी मोर्चों पर हम असफल रहे हैं.जो हमारी अब तक
की विकास यात्रा का भयावह पहलू उजागर करता है .अब ज्वलंत प्रश्न यह है
आखिर आजादी मिलने के इतने लम्बे अन्तराल के पश्चात् भी हम मौलिक विकास
में क्यों पिछड़े हुए हैं ?आखिर क्यों अपने देश के नागरिकों द्वारा ही
सत्ता सम्हालने के बाद भी देश के लिए कुछ
खास नहीं कर पाए ? देश की जनता के साथ न्याय नहीं कर पाए ?
देश को आजाद कराने के लिए अनेक योद्धाओं ,अनेक स्वतंत्रता सैनानियों ने
अपने जीवन को न्योछावर कर दिया .उस देश को उसके नेता ही उचित आयाम नहीं
दे सके ?कारण भी स्पष्ट है ,आजादी के पश्चात् देश का नेतृत्व समाज सेवकों
,या देश भक्तों के स्थान पर व्यापारियों के हाथो में चला गया.आजादी के
पश्चात् जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर आयी वे देश की सेवा भावना कम ,
स्वार्थ सेवा की भावना से अधिक प्रेरित थे . उन्होंने राजनीति को एक
व्यवसाय के रूप में अपनाया देश भक्ति की ,या समाज सेवा की भावना लुप्त हो
गयी.हमारी दोष पूर्ण महँगी चुनाव प्रणाली ने सिर्फ दौलत मंद या दबंगों को
चुनाव जीतने का अवसर प्रदान किया .और ईमानदार ,देश भक्त व् प्रतिभशाली
नागरिकों को राजनीति में आने या नेतृत्व सम्हालने से वंचित कर दिया .धन
बल और बाहू बल के आधार पर चुनाव जीतने वाले नेता अपनी चुनावों में खर्च
की गयी रकम को कई गुना लाभ सहित बसूलने के हथकंडे अपनाते रहे .अपनी
महत्वाकांक्षा पूरी करने अर्थात अपने खजाने को भरने के लिए भ्रष्टाचार का
सहारा लिया अपने इस कार्य को अंजाम देनेके लिए सम्पूर्ण नौकर शाही का
सहारा लिया जिसने सरकारी अमले को आकंठ भ्रष्टाचार में डुबो दिया .जनता को
समय समय पर शांत करने के लिए भ्रष्टाचार मिटने के अनेकों नाटक किये गए,
और आज भी तथाकथित प्रयास जारी हैं ,और जारी रहेंगे .मुट्ठी भर नेताओं
,व्यापारियों ,उद्योगपतियों ,नौकरशाहों ने देश को दीमक की भांति चाट कर
अकूत अवैध संपत्ति एकत्र कर विदेशी बैंकों में जमा करा दी.और देश को
कंगाल कर दिया.आजादी के पूर्व विदेशी लोग देश की संपत्ति को लूट कर अपने
देश ले जाते थे ,परन्तु आजादी के पश्चात् अपने देश के नेता ही जनता को
लूटकर,उसका शोषण कर अवैध संपत्ति बटोर कर अपना धन विदेशी बैंकों में जमा
कराने लगे .अर्थात जनता आजादी पूर्व भी शोषित होती थी आज भी होती है
सिर्फ चेहरे बदल गए . कुछ दिनों पूर्व स्विस बेंक ने अपने यहाँ जमा
विदेशी पूंजी के आंकड़े देते हुए बताया , की
भारतीयों द्वारा जमा करायी गयी राशी विश्व में सर्वाधिक है .इंटरनेट से
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कुल 1.4 ट्रिलियन अर्थात 1456 अरब डॉलर स्विस
बैंकों में जमा है ,स्विस बैंक के अतिरिक्त अन्य विदेशी बैंकों में कितना
धन जमा है उसका कोईआंकड़ा उपलब्ध नहीं है .परन्तु ऊपर बताई गयी राशी देश
पर कुल कर्ज का तेरह गुणा है .यदि वहां जमा समस्त काला धन देश में लाया
जा सके तो विदेशी कर्ज चुकाने के पश्चात् बची राशी से बिना कोई टेक्स
जनता पर थोपे,भारत सरकार के समस्त खर्चे तीस वर्षों तक बिना किसी रूकावट
के चलाये जा सकते हैं .
उपरोक्त सभी विसंगतियों के होते हुए भी देश की जनता ने अपने अध्यवसाय से
,अपने श्रम से, उन्नति भी की है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता
.हमारे देश की जनता ने व्यापारियों ने ,उद्यमियों ने विषम परिस्थितियों
के होते हुए भी अपनी महनत और लगन से देश को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर
करने के भरपूर प्रयास किये हैं .आज भी हमारा देश खनिज सम्पदा ,वन सम्पदा
,एवं युवा शक्ति के मामले में किसी देश से कम नहीं है .जिस देश को कभी
सोने की चिड़िया कहा जाता था ,यदि आज भी देश के संसाधनों का सदुपयोग किया
जाय तो वर्तमान समय में भी विश्व का सिरमौर बनने की क्षमता देश के पास है
.सिर्फ आवश्यकता है ,देश को कर्तव्यनिष्ठ ,ईमानदार ,प्रतिभाशाली तथा देश
के लिए समर्पित व्यक्तियों का नेतृत्व प्राप्त हो .
यह भी आश्चर्य का विषय है ,जिस देश में नित नए घोटाले जनता के समक्ष आते
हों ,उसके बावजूद देश की उन्नत्ति होते रहना विकसित देशों को सकते में
लाता है . देश की युवा शक्ति और कर्मठ जनता का कमाल ही कहा जायेगा.उन्नति
का उचित आंकलन करने के लिए कोई भी छठे दशक की फिल्म का अवलोकन करना होगा
.जिससे आजादी के तुरंत पश्चात् एवं आज की जीवन शैली में बुनियादी फर्क
देखा जा सकता है .परन्तु विडंबना यह है इस उन्नति में सामाजिक समरसता का
उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है इसी कारण एक तरफ बेपनाह उन्नति दिखाई देती
है ,तो दूसरी तरफ गरीबी ,बेरोजगारी भुखमरी अराजकता ने अभी तक हमारा साथ
नहीं छोड़ा है क्या यही है हमारी आर्थिक स्वतंत्रता है ,क्या यही हमारी
उन्नति की परिभाषा है ,या हमारे देश का विकास है ? जब तक देश के अंतिम
व्यक्ति तक विकास का लाभ नहीं पहुँचता कोई भी उन्नति बेमाने है.
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