अमेरिकी संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज, डायजेस्टिव एंड किडनी
डिजीज के अुनसार दुनिया में 1.80 लाख लोग सालाना सॉफ्ट ड्रिंक के ज्यादा
सेवन की वजह से दम तोड़ रहे हैं।
ऐसी ही एक रिपोर्ट हमारे देश के बारे में मार्च में आई। अमेरिका की
प्रतिष्ठित संस्था 'इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन' की
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडीज-2010 में कहा गया है भारत में 2010 में
95,427 लोगों की मौत की एक बड़ी वजह इन अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन
है।
इन मौतों की दर में 1990 की तुलना में 161 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 1990
में सॉफ्ट ड्रिंक्स की लत के कारण 36,591 लोगों ने दम तोड़ा था।
संस्था के डायरेक्टर ऑफ कम्यूनिकेशन बिल हीसेल्स का कहना है कि कई
गैर-संक्रामक बीमारियों की वजह से दम तोडऩे वाले लोगों के खान-पान पर शोध
के बाद ये नतीजे सामने आए हैं। 2010 पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार भारत
में कोला पीने के आदी लोगों में से 78,017 दिल की बीमारी की वजह से मरे।
11,314 लोग सॉफ्ट ड्रिंक्स के कारण डायबिटीज के मरीज बने, जबकि लगभग
6,096 कैंसर रोगी बनकर दम तोड़ चुके हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990
में 36,591 लोगों की विभिन्न गैर-संक्रामक रोगों में मरने की एक बड़ी वजह
अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स थे। हालांकि, इस रिपोर्ट से यह खुलासा नहीं हुआ
कि वे कौन से कैमिकल थे, जो मौत का कारण बने। भारत में २०१० में
प्राकृतिक रूप से मरने वाले लोगों के आंकड़े इकट्ठे किए गए। इसके लिए मौत
की वजह की सभी उपलब्ध जानकारियां जुटाई गईं। असमय मौत के मामलों में
उम्र, लिंग और क्षेत्र के विश्लेषण में 67 अलग-अलग रिस्क फैक्टर्स को अति
मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने की आदत से मिलान किया गया। और उनकी तुलना १९९०
और २०१० के आंकड़ों से की गई। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित मेडिकल जन लैंसेट
में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट से भी आंकड़े और जानकारियों को शोध में
शामिल किया गया है। सॉफ्ट ड्रिंक्स के 7 साइड इफेक्ट :
फॉस्फोरिक एसिड- दो कैन रोज पीने से पथरी का खतरा।
ज्यादा आर्टिफिशियल स्वीटनर सॉफ्ट ड्रिंक्स की लत पैदा करते हैं।
कारमेल कलर (4-एमआई)- ये कैमिकल कैरेमल का कलर देता है। एक कैन में यह 30
माइक्रोग्राम हो तो यह कैंसर का कारण भी है। जबकि ये १४० माइक्रोग्राम तक
पाया गया है।
फूड डाइज- दिमाग पर असर करते हैं। फोकस करने में कठिनाई होती है। हाई
फ्रक्टोज़ कॉर्न सीरप- ये कंसंट्रेटेड शुगर है। एक कैन में आठ चम्मच होती
है। इससे बॉडी फैट, कॉलेस्ट्रोल तो बढ़ता ही है। टाइप-2 डायबिटीज भी हो
सकती है।
फॉर्मेल्डिहाइड- सोडा में एस्पार्टेम होता है। जिसके डाइजेशन से मिथेनॉल
बनता है। जो फॉर्मिक एसिड और फार्मेल्डिहाइड (कैंसर कारक) में टूटता है।
पोटेशियम बेंजोएट- प्रिजर्वेटिव, जो शरीर में जाकर बैंजीन (कैंसर कारक)
बन जाता है। सोडा को धूप में रखा जाए तो भी वह बैंजीन बन जाएगा।
डिजीज के अुनसार दुनिया में 1.80 लाख लोग सालाना सॉफ्ट ड्रिंक के ज्यादा
सेवन की वजह से दम तोड़ रहे हैं।
ऐसी ही एक रिपोर्ट हमारे देश के बारे में मार्च में आई। अमेरिका की
प्रतिष्ठित संस्था 'इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन' की
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडीज-2010 में कहा गया है भारत में 2010 में
95,427 लोगों की मौत की एक बड़ी वजह इन अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन
है।
इन मौतों की दर में 1990 की तुलना में 161 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 1990
में सॉफ्ट ड्रिंक्स की लत के कारण 36,591 लोगों ने दम तोड़ा था।
संस्था के डायरेक्टर ऑफ कम्यूनिकेशन बिल हीसेल्स का कहना है कि कई
गैर-संक्रामक बीमारियों की वजह से दम तोडऩे वाले लोगों के खान-पान पर शोध
के बाद ये नतीजे सामने आए हैं। 2010 पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार भारत
में कोला पीने के आदी लोगों में से 78,017 दिल की बीमारी की वजह से मरे।
11,314 लोग सॉफ्ट ड्रिंक्स के कारण डायबिटीज के मरीज बने, जबकि लगभग
6,096 कैंसर रोगी बनकर दम तोड़ चुके हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990
में 36,591 लोगों की विभिन्न गैर-संक्रामक रोगों में मरने की एक बड़ी वजह
अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स थे। हालांकि, इस रिपोर्ट से यह खुलासा नहीं हुआ
कि वे कौन से कैमिकल थे, जो मौत का कारण बने। भारत में २०१० में
प्राकृतिक रूप से मरने वाले लोगों के आंकड़े इकट्ठे किए गए। इसके लिए मौत
की वजह की सभी उपलब्ध जानकारियां जुटाई गईं। असमय मौत के मामलों में
उम्र, लिंग और क्षेत्र के विश्लेषण में 67 अलग-अलग रिस्क फैक्टर्स को अति
मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने की आदत से मिलान किया गया। और उनकी तुलना १९९०
और २०१० के आंकड़ों से की गई। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित मेडिकल जन लैंसेट
में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट से भी आंकड़े और जानकारियों को शोध में
शामिल किया गया है। सॉफ्ट ड्रिंक्स के 7 साइड इफेक्ट :
फॉस्फोरिक एसिड- दो कैन रोज पीने से पथरी का खतरा।
ज्यादा आर्टिफिशियल स्वीटनर सॉफ्ट ड्रिंक्स की लत पैदा करते हैं।
कारमेल कलर (4-एमआई)- ये कैमिकल कैरेमल का कलर देता है। एक कैन में यह 30
माइक्रोग्राम हो तो यह कैंसर का कारण भी है। जबकि ये १४० माइक्रोग्राम तक
पाया गया है।
फूड डाइज- दिमाग पर असर करते हैं। फोकस करने में कठिनाई होती है। हाई
फ्रक्टोज़ कॉर्न सीरप- ये कंसंट्रेटेड शुगर है। एक कैन में आठ चम्मच होती
है। इससे बॉडी फैट, कॉलेस्ट्रोल तो बढ़ता ही है। टाइप-2 डायबिटीज भी हो
सकती है।
फॉर्मेल्डिहाइड- सोडा में एस्पार्टेम होता है। जिसके डाइजेशन से मिथेनॉल
बनता है। जो फॉर्मिक एसिड और फार्मेल्डिहाइड (कैंसर कारक) में टूटता है।
पोटेशियम बेंजोएट- प्रिजर्वेटिव, जो शरीर में जाकर बैंजीन (कैंसर कारक)
बन जाता है। सोडा को धूप में रखा जाए तो भी वह बैंजीन बन जाएगा।
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Thankes