कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने की चाहत में ही फरहा अमेरिका छोड़कर स्वेदश आ बसी हैं। इस काम में वह अपने दोस्तों के अलावा रिश्तेदारों की मदद भी ले रही हैं..
मौजूदा समय की भागदौड़ भरी जिंदगी और पेशेवर माहौल में जहां लोगों का ध्यान सिर्फ अपने ऊपर ही केंद्रित होता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने दूसरों के लिए कुछ करने को ही अपने जीवन ध्येय बना लिया है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं फरहा कपूर। गुड़गांव, डीएलएफ फेज-टू निवासी फरहा वैसे तो क्वालीफाइड इंजीनियर और फिटनेस एक्सपर्ट हैं लेकिन इनका ज्यादातर समय कमजोर वर्ग के बच्चों की सेवा में जाता है। ये शहर ही नहीं देश भर के इस वर्ग के बच्चों के लिए लगातार कुछ न कुछ कर रही हैं।
ऐसे हुई शुरुआत
बहुत छोटी उम्र से ही फरहा के मन में बच्चों के लिए एक सॉफ्ट कार्नर विकसित हो गया था। वे खुद एक संपन्न परिवार से हैं साथ ही उनका पालन-पोषण भी उसी अंदाज में हुआ। उन्होंने जब अपने जैसे छोटी उम्र के दूसरे बच्चों को करीब से देखा तो पाया कि मनोरंजन तो दूर खाने-पीने का भी उनके पास अभाव है यही नहीं बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। ऐसे में बचपन से ही फरहा ने सहायता शुरू कर दी। जब बड़ी हुई तो उन्होंने बच्चों के लिए कुछ करने की ठानी। अमेरिका में अपनी नौकरी छोड़कर स्वदेश आ गई और पति दीपक से उन्होंने यह इच्छा जाहिर की कि वे बच्चों के लिए कुछ करना चाहती हैं। दीपक ने उन्होंने और प्रोत्साहित किया और वे जुट गई इस कार्य में बिना किसी फायदे नुकसान की इच्छा के साथ।
ऐसे करती हैं सहायता
कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने का काम करने वाली फरहा का कहना है कि उन्हें कुछ बड़ा करना था ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को लाभ मिल सके तो उन्होंने अपने रिश्तेदारों व दोस्तों से मदद के लिए आगे आने का आग्रह किया। अब वे विभिन्न स्तर पर इस तरह के इवेंट आदि करवा रही हैं जिसमें लोग बच्चों की शिक्षा आदि का जिम्मा उठा लेते हैं। ऐसे में बड़े स्तर पर कमजोर वर्ग के बच्चों को मदद पहुंचाई जा रही है।
जिमोवा के जरिये समाज सेवा
नेटवर्किग इंजीनियर, फिटनेस एक्सपर्ट और एक प्रशिक्षित कॉस्मेटोलॉजिस्ट के अलावा फरहा अच्छी नृत्यांगना भी हैं। अपने इस हुनर को भी फरहा बच्चों के कल्याण के लिए उपयोग में ला रही हैं। वे विभिन्न वर्ग के लोगों के लिए डांस की कक्षाएं आयोजित करती हैं इससे इकट्ठा होने धन के शत-प्रतिशत हिस्से को वे कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा और उनकी जरूरतें पूरी करने में लगाती हैं। हाल ही में उन्होंने 'जिमोवा' नामक एक समूह बनाकर काम करना शुरू किया है जिससे शहर तथा आस पास के इलाकों के सैकड़ों बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।
चाहतों को उड़ान
अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उच्चतर शिक्षा के लिए फरहा परिवार के साथ अमेरिका चली गई फिर वहां प्रतिष्ठित पद पर नौकरी की। इस बीच उन्हें देश की तरक्की में योगदान देने की चाहत और प्रबल हो गई। वे इसी सोच के साथ स्वदेश लौटी कि उन्हें इस देश के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए कमजोर वर्ग के बच्चों के उत्थान के लिए कुछ करेंगी। यहां आने के बाद वे दीपक से मिली और उनसे शादी की। शादी के बाद उन्होंने एक अनाथालय तथा बच्चों के कल्याण के लिए केंद्र खोलने की इच्छा जाहिर की तो दीपक ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। बाद में वे झुग्गी-झोपड़ियों व विभिन्न शिक्षा केंद्रों में जाकर विद्यार्थियों को अंग्रेजी, हिंदी तथा कंप्यूटर की शिक्षा देने लगीं। इससे भी जब उनका मन नहीं भरा तो उन्होंने बड़े स्तर पर इन्हें लाभ पहुंचना के लिए काम शुरू किया। आज वे संतुष्ट हैं कि उन्होंने सैकड़ों बच्चों को इस लायक बना दिया है कि वे भीख मांग जीवन गुजारने पर मजबूर नहीं होंगे।
बेटी में भी यही भावनाएं
फरहा की सात साल की बेटी हेजल भी मां के पदचिह्नों पर चल रही है। सप्ताह में एक दिन गरीब बच्चों से मिलना, उन्हें जरूरत के सामान देना तथा उनके साथ खेलना हेजल की जीवनशैली का हिस्सा है। फरहा बताती हैं कि बेटी हेजल अपनी जन्मदिन पर भी बजाय मौज-मस्ती को प्राथमिकता देने के गरीब बच्चों से मिलती है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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