कुरु प्रदेश का राजकुमार भगवान श्रीकृष्ण का भक्त था। उसने संकल्प लिया
कि अपना समस्त जीवन वह वृंदावन में बिताएगा। वृंदावन पहुंचकर यमुना तट पर
उसने कुटिया बनाई और पूजा-उपासना करने लगा।
एक बार मगध के राजा सपरिवार वृंदावन पहुंचे। जब राजा-रानी यमुना स्नान
करने जा रहे थे, तब वृक्ष के नीचे उपासना में लीन साधु (राजकुमार) को
देखकर वे रुक गए। साधु की समाधि पूरी होने के बाद मगधराज ने
विनम्रतापूर्वक कहा, तपस्वी, मुझे आपके चेहरे से आभास होता है कि आप कहीं
के राजकुमार तो नहीं?
साधु ने कहा, राजन, भगवान श्रीकृष्ण की पावन लीला-भूमि में न तो कोई
राजकुमार होता है और न राजा। श्रीकृष्ण अपने सखा ग्वालों को भी गले लगाते
थे, इसलिए यहां कुल-जाति का विचार अधर्म है।
राजा युवा तपस्वी के वचनों से प्रभावित हुए। उन्होंने अनुरोध किया, आप
हमारे साथ चलें। अभी आप युवक हैं। हम आपका विवाह अपने कुल की कन्या से
करा देंगे। आप कभी दुखी नहीं रहेंगे। यह सुनकर साधु ने पूछा, क्या राजा व
धनवान को कभी दुख नहीं सताता?
क्या राजा व गृहस्थ के परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती? फिर
सुख से रहने की बात कहकर आप मुझे साधना से विरत क्यों करना चाहते हैं?
श्रीकृष्ण की भक्ति में मुझे अनूठा सुख मिलता है। राजा ने युवा साधु को
गुरु मान लिया और स्वयं भी राजपाट त्यागकर वृंदावन में रहने लगे।
--
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E-mail करें. हमारी Id है:kuchkhaskhabar@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे
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देखकर वे रुक गए। साधु की समाधि पूरी होने के बाद मगधराज ने
विनम्रतापूर्वक कहा, तपस्वी, मुझे आपके चेहरे से आभास होता है कि आप कहीं
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साधु ने कहा, राजन, भगवान श्रीकृष्ण की पावन लीला-भूमि में न तो कोई
राजकुमार होता है और न राजा। श्रीकृष्ण अपने सखा ग्वालों को भी गले लगाते
थे, इसलिए यहां कुल-जाति का विचार अधर्म है।
राजा युवा तपस्वी के वचनों से प्रभावित हुए। उन्होंने अनुरोध किया, आप
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धनवान को कभी दुख नहीं सताता?
क्या राजा व गृहस्थ के परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती? फिर
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श्रीकृष्ण की भक्ति में मुझे अनूठा सुख मिलता है। राजा ने युवा साधु को
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