उज्जयिनी में माधव भगत अपने परिवार के साथ रहता था। एक दिन माधव भगत घर
में अकेला था। दैवयोग से उसी समय राजमहल से माधव भगत को भोजन के लिए
विशेष निमंत्रण प्राप्त हो जाता है। अब वह इस धर्म संकट में आ गया कि यदि
बालक को छोड़कर जाता हूँ तो इसकी देख-रेख कौन करेगा और यदि भोजन के लिए
नहीं जाता हूँ तो एक ओर राजा कुपित हो जाएँगे। ऐसा अवसर बार-बार नहीं
मिलता।
इसी उधेड़बुन में उसको एकाएक विचार आया कि मैंने घर पर एक नेवले को बहुत
सालों से पाला हुआ है। अतः माधव ने अपने पुत्र की तरह पाले हुए नेवले को
बालक की रक्षा के लिए उसके पालने के पास बैठा दिया और स्वयं राजभवन चला
गया। इसके बाद बालक के पालने के पास अचानक एक काला साँप आ पहुँचता है।
नेवले ने तुरंत झपट्टा मार कर साँप के कई टुकड़े कर दिए। इस बीच जब राजभवन
से लौटने पर माधव भगत ने उस रक्तरंजित नेवले को देखा तो उसे लगा कि नेवले
ने उसके बच्चे को मारकर खा लिया है।
बस फिर क्या था, उस भगत ने बिना विचारे नेवले को मार डाला। लेकिन जब वह
बच्चे के पालने के पास पहुँचा तो वहाँ बच्चा सकुशल खेल रहा था और पालने
के पास काला सर्प मरा पड़ा था।
अब माधव भगत को बहुत पछतावा हुआ कि उसने बिना विचार किए ही उस स्वामिभक्त
नेवले को मार डाला। इसीलिए नीतिकार कहते हैं बिना विचारे कुछ नहीं करना
चाहिए। ऐसा करने वाले बाद में पछताते हैं।
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है
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बालक को छोड़कर जाता हूँ तो इसकी देख-रेख कौन करेगा और यदि भोजन के लिए
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इसी उधेड़बुन में उसको एकाएक विचार आया कि मैंने घर पर एक नेवले को बहुत
सालों से पाला हुआ है। अतः माधव ने अपने पुत्र की तरह पाले हुए नेवले को
बालक की रक्षा के लिए उसके पालने के पास बैठा दिया और स्वयं राजभवन चला
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नेवले ने तुरंत झपट्टा मार कर साँप के कई टुकड़े कर दिए। इस बीच जब राजभवन
से लौटने पर माधव भगत ने उस रक्तरंजित नेवले को देखा तो उसे लगा कि नेवले
ने उसके बच्चे को मारकर खा लिया है।
बस फिर क्या था, उस भगत ने बिना विचारे नेवले को मार डाला। लेकिन जब वह
बच्चे के पालने के पास पहुँचा तो वहाँ बच्चा सकुशल खेल रहा था और पालने
के पास काला सर्प मरा पड़ा था।
अब माधव भगत को बहुत पछतावा हुआ कि उसने बिना विचार किए ही उस स्वामिभक्त
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