बिच्छू आर्थ्रोपोडा (Arthropoda) संघ का साँस लेनेवाला ऐरैक्निड (मकड़ी)
है। इसकी अनेक जातियाँ हैं, जिनमें आपसी अंतर बहुत मामूली हैं। यहाँ बूथस
(Buthus) वंश का विवरण दिया जा रहा है, जो लगभग सभी जातियों पर घटता है।
यह साधारणतः उष्ण प्रदेशों में पत्थर आदि के नीचे छिपे पाये जाते हैं और
रात्रि में बाहर निकलते हैं। बिच्छू की लगभग 2,000 जातियाँ होती हैं जो
न्यूजीलैंड तथा अंटार्कटिक को छोड़कर विश्व के सभी भागों में पाई जाती
हैं। इसका शरीर लंबा चपटा और दो भागों- शिरोवक्ष और उदर में बटा होता है।
शिरोवक्ष में चार जोड़े पैर और अन्य उपांग जुड़े रहते हैं। सबसे नीचे के
खंड से डंक जुड़ा रहता है जो विष-ग्रंथि से संबद्ध रहता है। शरीर काइटिन
के बाह्यकंकाल से ढका रहता है। इसके सिर के ऊपर दो आँखें होती हैं। इसके
दो से पाँच जोड़ी आँखे सिर के सामने के किनारों में पायी जाती हैं।
बिच्छू साधारणतः उन क्षेत्रों में रहना पसन्द करते हैं जहां का तापमान
200 से 350 सेंटीग्रेड के बीच रहता हैं। परन्तु ये जमा देने वाले शीत तथा
मरूभूमि की गरमी को भी सहन कर सकते हैं।
अधिकांश बिच्छू इंसान के लिए हानिकारक नहीं हैं। वैसे, बिच्छू का डंक
बेहद पीड़ादायक होता है और इसके लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। शोधकर्ताओं
के मुताबिक बिच्छू के जहर में पाए जाने वाले रसायन क्लोरोटोक्सिन को अगर
टयूमर वाली जगह पर लगाया जाए तो इससे स्वस्थ और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की
पहचान आसानी से की जा सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि क्लोरोटोक्सिन
कैंसरग्रस्त कोशिकाओं पर सकारात्मक असर डालता है। यह कई तरह के कैंसर के
इलाज में कारगर साबित हो सकता है। उनका मानना है कि बिच्छू का जहर कैंसर
का ऑपरेशन करने वाले सर्जनों के लिए मददगार साबित हो सकता है। उन्हें
कैंसरग्रस्त और स्वस्थ कोशिकाओं की पहचान करने में आसानी होगी।
बिच्छू का शरीर
बिच्छू का शरीर लंबा, संकरा और परिवर्ती रंगों का होता है। शरीर दो भागों
का बना होता है, एक छोटा अग्र भाग शिरोवक्ष या अग्रकाय (cephalothorax,
prosoma) और दूसरा लंबा पश्चभाग, उदर (abdomen, opisthosoma) है।
शिरोवक्ष एक पृष्ठवर्म (carapace) से पृष्ठत: आच्छादित रहता है, जिसके
लगभग मध्य में एक जोड़ा बड़ी आँखें और उसके अग्र पार्श्विक क्षेत्र में
अनेक जोड़ा छोटी आँखें होती हैं। उदर का अगला चौड़ा भाग मध्यकाय
(Mesosoma) सात खंडों का बना होता है। प्रत्येक खंड ऊपर पृष्ठक (tergum)
से और नीचे उरोस्थि (sternum) से आवृत होता है। ये दोनों पार्श्वत: एक
दूसरे से कोमल त्वचा द्वारा जुड़े होते हैं।
पश्चकाय (metasoma) उदर का पश्च, सँकरा भाग है जिसमें पाँच खंड होते हैं।
जीवित प्राणियों में पश्चकाय का अंतिम भाग, जो पुच्छ है, स्वभावत: पीठ पर
मुड़ा होता है। इसके अंतिम खंड से अंतस्थ उपांग (appendage) संधिबद्ध
(articulated) होता है और पुच्छीय मेरुदंड (caudal spine) आधार पर फूला
और शीर्ष पर, जहाँ विषग्रंथियों की वाहिनियाँ खुलती हैं, नुकीला होता है।
अंतिम खंड के अधर पृष्ठ (ventral surface) पर डंक के ठीक सामने गुदा
द्वार स्थित होता है। मुख एक छोटा सा छिद्र है, जो अग्रकाय के अगले सिरे
पर अधरत: स्थिर होता है। मुख पर लैब्रम (labrum) छाया रहता है।
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E-mail करें. हमारी Id है:kuchkhaskhabar@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे
आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे.
www.kuchkhaskhabar.com
है। इसकी अनेक जातियाँ हैं, जिनमें आपसी अंतर बहुत मामूली हैं। यहाँ बूथस
(Buthus) वंश का विवरण दिया जा रहा है, जो लगभग सभी जातियों पर घटता है।
यह साधारणतः उष्ण प्रदेशों में पत्थर आदि के नीचे छिपे पाये जाते हैं और
रात्रि में बाहर निकलते हैं। बिच्छू की लगभग 2,000 जातियाँ होती हैं जो
न्यूजीलैंड तथा अंटार्कटिक को छोड़कर विश्व के सभी भागों में पाई जाती
हैं। इसका शरीर लंबा चपटा और दो भागों- शिरोवक्ष और उदर में बटा होता है।
शिरोवक्ष में चार जोड़े पैर और अन्य उपांग जुड़े रहते हैं। सबसे नीचे के
खंड से डंक जुड़ा रहता है जो विष-ग्रंथि से संबद्ध रहता है। शरीर काइटिन
के बाह्यकंकाल से ढका रहता है। इसके सिर के ऊपर दो आँखें होती हैं। इसके
दो से पाँच जोड़ी आँखे सिर के सामने के किनारों में पायी जाती हैं।
बिच्छू साधारणतः उन क्षेत्रों में रहना पसन्द करते हैं जहां का तापमान
200 से 350 सेंटीग्रेड के बीच रहता हैं। परन्तु ये जमा देने वाले शीत तथा
मरूभूमि की गरमी को भी सहन कर सकते हैं।
अधिकांश बिच्छू इंसान के लिए हानिकारक नहीं हैं। वैसे, बिच्छू का डंक
बेहद पीड़ादायक होता है और इसके लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। शोधकर्ताओं
के मुताबिक बिच्छू के जहर में पाए जाने वाले रसायन क्लोरोटोक्सिन को अगर
टयूमर वाली जगह पर लगाया जाए तो इससे स्वस्थ और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की
पहचान आसानी से की जा सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि क्लोरोटोक्सिन
कैंसरग्रस्त कोशिकाओं पर सकारात्मक असर डालता है। यह कई तरह के कैंसर के
इलाज में कारगर साबित हो सकता है। उनका मानना है कि बिच्छू का जहर कैंसर
का ऑपरेशन करने वाले सर्जनों के लिए मददगार साबित हो सकता है। उन्हें
कैंसरग्रस्त और स्वस्थ कोशिकाओं की पहचान करने में आसानी होगी।
बिच्छू का शरीर
बिच्छू का शरीर लंबा, संकरा और परिवर्ती रंगों का होता है। शरीर दो भागों
का बना होता है, एक छोटा अग्र भाग शिरोवक्ष या अग्रकाय (cephalothorax,
prosoma) और दूसरा लंबा पश्चभाग, उदर (abdomen, opisthosoma) है।
शिरोवक्ष एक पृष्ठवर्म (carapace) से पृष्ठत: आच्छादित रहता है, जिसके
लगभग मध्य में एक जोड़ा बड़ी आँखें और उसके अग्र पार्श्विक क्षेत्र में
अनेक जोड़ा छोटी आँखें होती हैं। उदर का अगला चौड़ा भाग मध्यकाय
(Mesosoma) सात खंडों का बना होता है। प्रत्येक खंड ऊपर पृष्ठक (tergum)
से और नीचे उरोस्थि (sternum) से आवृत होता है। ये दोनों पार्श्वत: एक
दूसरे से कोमल त्वचा द्वारा जुड़े होते हैं।
पश्चकाय (metasoma) उदर का पश्च, सँकरा भाग है जिसमें पाँच खंड होते हैं।
जीवित प्राणियों में पश्चकाय का अंतिम भाग, जो पुच्छ है, स्वभावत: पीठ पर
मुड़ा होता है। इसके अंतिम खंड से अंतस्थ उपांग (appendage) संधिबद्ध
(articulated) होता है और पुच्छीय मेरुदंड (caudal spine) आधार पर फूला
और शीर्ष पर, जहाँ विषग्रंथियों की वाहिनियाँ खुलती हैं, नुकीला होता है।
अंतिम खंड के अधर पृष्ठ (ventral surface) पर डंक के ठीक सामने गुदा
द्वार स्थित होता है। मुख एक छोटा सा छिद्र है, जो अग्रकाय के अगले सिरे
पर अधरत: स्थिर होता है। मुख पर लैब्रम (labrum) छाया रहता है।
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