बोध कथा
एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक
थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या
करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये । अगले दिन सभी लोग
आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम
लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे । अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव
अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें । शिष्यों को कुछ
समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया
। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे,
वे बडे कष्ट में थे । जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली । महात्मा ने कहा,
अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली । महात्माजी ने पूछा – विगत
सात दिनों का अनुभव कैसा रहा ? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया,
आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है…
महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था… जब मात्र सात दिनों में ही
आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका
कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, सोचिये
कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी ? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर
अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह….
इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम
नफ़रत मत करो, तभी तुम्हारा मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते
तुम्हारा मन भी बीमार हो जायेगा ।
एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक
थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या
करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये । अगले दिन सभी लोग
आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम
लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे । अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव
अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें । शिष्यों को कुछ
समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया
। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे,
वे बडे कष्ट में थे । जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली । महात्मा ने कहा,
अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली । महात्माजी ने पूछा – विगत
सात दिनों का अनुभव कैसा रहा ? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया,
आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है…
महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था… जब मात्र सात दिनों में ही
आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका
कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, सोचिये
कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी ? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर
अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह….
इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम
नफ़रत मत करो, तभी तुम्हारा मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते
तुम्हारा मन भी बीमार हो जायेगा ।
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Thankes