Rss Feed
Story (104) जानकारी (41) वेबसाइड (38) टेक्नॉलोजी (36) article (28) Hindi Quotes (21) अजब-गजब (20) इंटरनेट (16) कविता (16) अजब हैं लोग (15) तकनीक (14) समाचार (14) कहानी Story (12) नॉलेज डेस्क (11) Computer (9) ऐप (9) Facebook (6) ई-मेल (6) करियर खबरें (6) A.T.M (5) बॉलीवुड और मनोरंजन ... (5) Mobile (4) एक कथा (4) पासवर्ड (4) paytm.com (3) अनमोल वचन (3) अवसर (3) पंजाब बिशाखी बम्पर ने मेरी सिस्टर को बी दीया crorepati बनने का मोका . (3) माँ (3) helpchat.in (2) कुछ मेरे बारे में (2) जाली नोट क्‍या है ? (2) जीमेल (2) जुगाड़ (2) प्रेम कहानी (2) व्हॉट्सऐप (2) व्हॉट्सेएप (2) सॉफ्टवेर (2) "ॐ नमो शिवाय! (1) (PF) को ऑनलाइन ट्रांसफर (1) Mobile Hacking (1) Munish Garg (1) Recharges (1) Satish Kaul (1) SecurityKISS (1) Technical Guruji (1) app (1) e (1) olacabs.com (1) olamoney.com (1) oxigen.com (1) shopclues.com/ (1) yahoo.in (1) अशोक सलूजा जी (1) कुमार विश्वास ... (1) कैटरिंग (1) खुशवन्त सिंह (1) गूगल अर्थ (1) ड्रग साइट (1) फ्री में इस्तेमाल (1) बराक ओबामा (1) राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला (1) रिलायंस कम्यूनिकेशन (1) रूपये (1) रेडक्रॉस संस्था (1) लिखिए अपनी भाषा में (1) वोटर आईडी कार्ड (1) वोडाफोन (1)

लिखिए अपनी भाषा में


  1. वाराणसी का गोविंद रिक्शा चलाने वाले निर्धन, अनपढ़ नारायण जायसवाल का बेटा है। एक कमरे के घर में रहने वाला गोविंद घर के आसपास चलने वाली फैक्टरियों और जेनरेटरों की तेज आवाजों के बीच पढ़ते वक्त कानों में रुई डाले रखता था। उसे पढ़ते देखकर लोग कटाक्ष करते- कितना भी पढ़ लो बेटा, चलाना तो तुम्हें रिक्शा ही है। गोविंद को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसके मन में तो एक ऐसा संकल्प था, जिसे दूसरों को बताना भी संभव नहीं था, सब हंसी जो उड़ाते। लेकिन झोपड़ी में रहने वाले उसी गोविंद जायसवाल को जब भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में चुने जाने की खबर मिली तो उसकी आंखों से आंसू बह निकले। अभावों और कटाक्षों से भरे जीवन को अपनी मेहनत, संकल्प और प्रतिभा के बल पर परास्त करने पर जो खुशी हुई, उसकी अभिव्यक्ति हंसी से नहीं, बल्कि आंसुओं से ही हो सकती थी। आंसू खुशी और दुख के ही नहीं, विजय के भी होते हैं।

    अद्वितीय प्रेरणा के स्रोत

    गोविन्द जैसे युवक, जो तमाम सीमाओं से ऊपर उठकर कुछ कर दिखाते हैं, समाज में अद्वितीय प्रेरणा के स्रोत बन जाते हैं। वे सिद्ध करते हैं कि कोई भी सीमा स्थायी नहीं होती, कोई भी बाधा अजेय नहीं होती। आपके पास साधन हों या नहीं, समर्थन हो या नहीं, सहयोग हो या नहीं, पृष्ठभूमि कितनी भी कमजोर क्यों न हो, यदि संकल्प अडिग है और उसे साकार करने के लिए कष्ट उठाकर भी मेहनत करने का जज्बा मौजूद है तो विजय निश्चित है। डेविड ब्रिन्क्ले ने कहा है कि एक सफल इंसान वह है जो दूसरों के फेंके पत्थरों का इस्तेमाल अपनी सफलता की नींव में करने का माद्दा रखता है।
    गोविन्द अकेला उदाहरण नहीं है उन प्रतिभावान बच्चों का, जो बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहते हुए भी तरक्की की ऐसी सीढ़ियां चढ़ गए जो सुख-सुविधासम्पन्न घरों के बच्चों को भी आसानी से नसीब नहीं हो पातीं। ये उदाहरण सिद्ध करते हैं कि लैम्प पोस्ट के नीचे बैठकर पढ़ाई करने वाले बच्चे सिर्फ बीते जमाने में ही नहीं होते थे। वे आज भी होते हैं और जब-तब अंधकार से भरे अपने परिवेश में सितारों की तरह चमचमा उठते हैं, अपने आसपास खुशियां बिखरते हुए, स्थितियां बदलते हुए। जिन्हें अपनी क्षमताओं में विश्वास है, वे असंभव को भी संभव बना सकते हैं, फिर पढ़ाई और कॅरियर की चुनौतियां तो कोई असंभव चुनौतियां हैं ही नहीं।
    मणिपुर में इम्फाल की जेनिथ अकादमी में पढ़ने वाला मोहम्मद इस्मत, जिसने अभी सीबीएसई की बारहवीं की परीक्षा में 500 में से 495 अंक हासिल कर पूरे भारत में पहला स्थान प्राप्त किया, ऐसी ही एक कमाल की मिसाल है। गणित, रसायन शास्त्र, कला और गृह विज्ञान में सौ में से सौ अंक पाने वाले इस्मत को अंग्रेजी में 98 और भौतिक शास्त्र में 97 अंक मिले। एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पुत्र इस्मत ने न सिर्फ अपने माता-पिता, विद्यालय या अपने थौबाल जिले का नाम रोशन किया, बल्कि उसने तो पूरे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को गौरव दिलाया है, जहां का कोई भी बच्चा अब तक राष्ट्रीय स्तर पर 'मेरिट' में शीर्ष पर नहीं आया था। पर असंभव कुछ भी नहीं है।

    अटूट आत्मविश्वास

    गोविन्द हो या फिर मोहम्मद इस्मत, एक बात जिसे आप बिल्कुल नजरंदाज नहीं कर सकते वह है उनका अटूट आत्मविश्वास। उन्हें अपनी कक्षा के दूसरे बच्चों की तरह न तो ट्यूशन मिलती है और न ही अच्छे स्कूल। न अतिरिक्त किताबें ही पढ़ने को मिलती हैं और न ही इंटरनेट जैसी कोई सहूलियत है। कई बार तो बुनियादी जरूरत की किताबें और यहां तक कि पढ़ाई में लगाने के लिए समय तक नहीं मिलता।
    चंडीगढ़ में 'थिएटर एज' के नाम का एक गैरसरकारी संगठन झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाता है। इस बार भी समाज के सबसे गरीब तबके के बीस बच्चों ने इस संगठन के निर्देशन में पढ़ाई की और बीसों अच्छे अंक लेकर पास हो गए। अभाव सिर्फ आर्थिक नहीं होते और शायद आर्थिक अभावों का मुकाबला फिर भी आसान है, मगर शारीरिक अक्षमताओं, अपंगता, नेत्रहीनता जैसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों से लड़ते हुए कठिन पैमानों पर खरा उतरना आसान नहीं। ऐसे में गुड़गांव के छात्र सुनीत आनंद चमचमाते सितारे के रूप में सामने आते हैं। आंख के कैंसर के रोगी सुनीत ने अस्पताल में दाखिल कराए जाने के बावजूद पढ़ने-लिखने के प्रति लगन नहीं छोड़ी और बारहवीं में करीब 89 फीसदी अंक लेकर आए। अंबिका खट्टर, क्षिप्रा कुमारी कर्दम, किरण टोकस..... और दर्जनों ऐसे ही दूसरे नेत्रहीन छात्रों ने बारहवीं की परीक्षा में अपने माता-पिता को गौरव दिलाया है और अब जीवन के अगले पड़ाव की तैयारी कर रहे हैं। मुंबई के राम रत्न विद्या मंदिर के गौतम गाबा को कितनी ही शाबाशी दी जाए, कम है, जिसने अस्थि कैंसर से पीड़ित होते हुए भी सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में 92 फीसदी अंक हासिल कर शीर्ष छात्रों की सूची में नाम दर्ज कराया। पिछले एक साल में सात महीने तक वह कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती था।

    प्रतिभा सुविधाओं की मोहताज नहीं

    इन छात्रों की सफलता एक बार फिर सिद्ध करती है कि प्रतिभाएं सुविधाओं की मोहताज नहीं होतीं और प्रतिभाओं को किसी भी किस्म की बाधा रोक नहीं सकती। ऐसे बच्चे कभी हमें डा. अंबेडकर की याद दिलाते हैं तो कभी लाल बहादुर शास्त्री की। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का जीवन भी तो ऐसे ही अभावों में गुजरा था। लेकिन जहां चाह, वहां राह। लिंकन ने बाद में कहा था- हमेशा याद रखो कि सफलता के लिए किसी दूसरी चीज की तुलना में सिर्फ एक बात अहमियत रखती है, और वह है तुम्हारा दृढ़ संकल्प।
    झोपड़ियों के अंधेरे में बैठकर उजाले की तलाश करने वाले आज के नौनिहालों को भी अपने सामने खड़ी विकट चुनौतियों का अहसास है, लेकिन उन्हीं के भीतर से रास्ता निकालने के सिवाय कोई चारा भी नहीं है। ट्यूशन करते हुए अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने वाले गोविन्द ने आईएएस के लिए चुने जाने के बाद कहा था- 'मैं किसी छोटी सरकारी नौकरी के लिए तो चुना ही नहीं जा सकता था, क्योंकि वहां किसे लिया जाएगा, यह पहले से ही तय है। मैं जानता था कि मेरे पास आईएएस के सिवाय कोई चारा ही नहीं है और इसीलिए मैं डटा रहा।' धन्य हैं ये प्रतिभाएं जो कैसी-कैसी विडम्बनाओं के बीच से उभर रही हैं।
    ऐसे में उन लोगों के लिए सहज ही श्रद्धा जगती है जो अभावग्रस्त बच्चों का जीवन बदलने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं। मिसाल के तौर पर सुपर-30 नामक समूह का संचालन करने वाले आनंद कुमार, जो पटना में बरसों से वंचित, शोषित, पीड़ित और निर्धन परिवारों के तीस बच्चों को प्रतिवर्ष आईआईटी में दाखिले के लिए मुफ्त 'कोचिंग' देते आए हैं। साधारण से बच्चों को तराशकर कोहिनूर बनाना कोई उनसे सीखे। उनके पढ़ाए पच्चीस से ज्यादा बच्चे हर साल अपनी गरीबी को अलविदा कहते हुए विश्व के सर्वश्रेष्ठ तकनीकी संस्थानों में गिने जाने वाले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में प्रवेश पाते हैं। इस साल भी उन्होंने 27 गरीब छात्रों का जीवन बदल दिया। आनंद कुमार खुद भी अभावपूर्ण पृष्ठभूमि से आए हैं इसलिए उनके जज्बे को समझना मुश्किल नहीं है। उन्होंने बड़े-बड़े संस्थानों में ऊंचे पदों पर काम करने और मोटी तनख्वाह लेने के प्रस्ताव ठुकराते हुए गरीब छात्रों को निशुल्क 'कोचिंग' देने का रास्ता चुना। लेकिन वे बच्चे भी कम नहीं हैं जो अपने इस गुरू के विश्वास पर खरा उतरने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते।
    गोविंद, इस्मत, सुनीत, गौतम...
    ने दिखाई संकल्प शक्ति की ताकत

  2. 0 comments:

    Post a Comment

    Thankes

Powered byKuchKhasKhabar.com