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लिखिए अपनी भाषा में

  1. उम्र 22 साल। लेकिन कद महज तीन फिट, तीन इंच। नाम है आजाद सिंह। जेनेटिक
    बीमारी के कारण सामान्य कद हासिल नहीं कर पाए।

    नतीजतन जिंदगी में तमाम दुश्वारियों से रूबरू होना पड़ा।

    सर्कस वाले ले जाना चाहते थे। गांव-स्कूल में साथी-सहपाठी मजाक उड़ाते थे।
    फिर भी आजाद ने हौसला नहीं छोड़ा। पढ़ाई जारी रखी। आज शिक्षक हैं। एक
    कन्या विद्यालय में कंप्यूटर की शिक्षा देते हैं।

    गुड़गांव जिले के बादशाहपुर निवासी आजाद का शरीरिक विकास चार साल की उम्र
    में ही थम गया। परिजनों ने इसके लिए तमाम प्रयास किए। दिल्ली के कलावती,
    सफदरजंग सहित कई अस्पतालों में संपर्क किया। कहीं उम्मीद की किरण नहीं
    दिखी। सराय काले खां में एक निजी अस्पताल ने एक इंजेक्शन लगवाने के लिए
    कहा। कीमत करीब ढाई लाख बताई गई। लेकिन लंबाई बढ़ेगी, इसकी गारंटी नहीं
    मिल रही थी। इसलिए कद बढ़ाने का मोह छोड़ दिया और पढ़ाई में जुट गए।

    बारहवीं तक की पढ़ाई बादशाहपुर के राजकीय बाल विद्यालय से पूरी की। इस
    दौरान खुशनसीबी से दो दोस्त भी मिले-मनोज और रविंद्र। इन दोस्तों ने
    हमेशा हौसला बढ़ाया, साथ दिया। कालेज की मैडम ने भी हमेशा पढ़ाई पर ध्यान
    देने और नकारात्मक विचार मन में न लाने के लिए प्रेरित किया।

    उनकी प्रेरणा और सहयोग से ही आजाद सिंह ने एक निजी संस्थान से कंप्यूटर
    की शिक्षा पूरी की और पिछले तीन माह से कन्या विद्यालय में बतौर कंप्यूटर
    टीचर तैनात हैं। यहां छात्राएं और स्टाफ पूरा सम्मान देते हैं। बारहवीं
    कक्षा में पढ़ रही आजाद की छोटी बहन लक्ष्मी की लंबाई भी 3 फीट 7 इंच है,
    जबकि ग्यारहवीं में पढ़ने वाली बहन सुमन की कदकाठी सामान्य है।

    यूं तो मां ने स्कूटी लेकर दे दी है, जिस पर आजाद कभी-कभार बहन सुमन के
    साथ स्कूल चले जाते हैं। लेकिन पसंद पैदल चलना ही है। ज्यादातर पैदल ही
    स्कूल आते-जाते हैं। आजाद ने आज तक रेल में यात्रा नहीं की है। बस में
    यात्रा के दौरान मम्मी को हमेशा साथ ले जाते हैं।

    बकौल आजाद सिंह-'यह माता-पिता के आशीर्वाद और मेहनत का ही नतीजा है कि
    तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मैं आज अपने पैरों पर खड़ा हूं। अब
    बहनों को बेतहर शिक्षा दिलाना चाहता हूं। अपनी शिक्षा को भी आगे बढ़ाना
    चाहता हूं।'

    दरअसल, आजाद ने स्नातक की पढ़ाई के लिए गुड़गांव के एक सरकारी कॉलेज में
    दाखिला लिया था। लेकिन प्राचार्य ने कहा कि कॉलेज में दिक्कत हो सकती है
    इसलिए गुड़गांव में पढ़ाई का विचार त्याग दिया।

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