अफ्रीका के सवाना के मैदान में विचरण करने वाले आदिमानव 35 लाख साल पहले
गायों की तरह घास खाते थे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध से यह
जानकारी सामने आई है। इससे पता चलता है कि शुरुआती इंसान चिंपैंजी की तरह
कंद-मूल और फल नहीं खाते थे बल्कि वह भोजन के तौर पर हरी घास खाते थे।
सूत्रों के अनुसार चाड में मिले बनमानुष जैसे दिखने वाले एक आदिमानव
ऑस्ट्रोलापेथिकस बाहरेलगजाली के जीवाश्म के दांत में जमा कार्बन का
विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उन्होंने
जबड़े में फंसे भोजन के अवशेष को निकालने के लिए लेजर का इस्तेमाल किया।
उस समय के आदिमानव ऑस्ट्रोलापेथिकस बाहरेलगजाली अपने मजबूत जबड़ों और तेज
दांतों की बदौलत घास को खूब चबा-चबाकर खा सकते थे। उस समय के मानव के
वैज्ञानिकों के तैयार चित्र के अनुसार बाहरेलगजाली मानव के जबड़े मजबूत
बहुत थे लेकिन वह आधुनितक मानवों के जबड़ों से छोटे होते थे। चूंकि ये
पूर्णत: घास पर ही आश्रित थे और इसलिए पूरी तरह शाकाहारी थे। ये मांस
नहीं खाते थे और इन्हें तब भोजन के लिए शिकार करने की भी जरूरत नहीं
पड़ती थी। चूंकि पर्यावरण में नए बदलावों के चलते इनके चारों में घास के
विशाल मैदान और भरपूर हरियाली थी। इस शोध से साबित हुआ है कि लाखों साल
पहले के इंसान अपने भोजन को आसपास उपलब्ध सामग्री के अनुसार ढालने में
माहिर थे। वह स्थानीय और उपलब्धि वस्तुओं और जीवों के आधार पर खुद को
बखूबी ढाल लेते थे। आसपास की प्रकृति के अनुरुप बदले गए व्यवहार से ही
उनका शारीरिक विकास निर्धारित हुआ। जो उन्हें आदिमानव के विभिन्न रूप से
होता हुए आधुनिक मानव तक बनाने में काम आया। लिहाजा दिमाग समेत पूरे शरीर
का विकास होता गया।
गायों की तरह घास खाते थे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध से यह
जानकारी सामने आई है। इससे पता चलता है कि शुरुआती इंसान चिंपैंजी की तरह
कंद-मूल और फल नहीं खाते थे बल्कि वह भोजन के तौर पर हरी घास खाते थे।
सूत्रों के अनुसार चाड में मिले बनमानुष जैसे दिखने वाले एक आदिमानव
ऑस्ट्रोलापेथिकस बाहरेलगजाली के जीवाश्म के दांत में जमा कार्बन का
विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उन्होंने
जबड़े में फंसे भोजन के अवशेष को निकालने के लिए लेजर का इस्तेमाल किया।
उस समय के आदिमानव ऑस्ट्रोलापेथिकस बाहरेलगजाली अपने मजबूत जबड़ों और तेज
दांतों की बदौलत घास को खूब चबा-चबाकर खा सकते थे। उस समय के मानव के
वैज्ञानिकों के तैयार चित्र के अनुसार बाहरेलगजाली मानव के जबड़े मजबूत
बहुत थे लेकिन वह आधुनितक मानवों के जबड़ों से छोटे होते थे। चूंकि ये
पूर्णत: घास पर ही आश्रित थे और इसलिए पूरी तरह शाकाहारी थे। ये मांस
नहीं खाते थे और इन्हें तब भोजन के लिए शिकार करने की भी जरूरत नहीं
पड़ती थी। चूंकि पर्यावरण में नए बदलावों के चलते इनके चारों में घास के
विशाल मैदान और भरपूर हरियाली थी। इस शोध से साबित हुआ है कि लाखों साल
पहले के इंसान अपने भोजन को आसपास उपलब्ध सामग्री के अनुसार ढालने में
माहिर थे। वह स्थानीय और उपलब्धि वस्तुओं और जीवों के आधार पर खुद को
बखूबी ढाल लेते थे। आसपास की प्रकृति के अनुरुप बदले गए व्यवहार से ही
उनका शारीरिक विकास निर्धारित हुआ। जो उन्हें आदिमानव के विभिन्न रूप से
होता हुए आधुनिक मानव तक बनाने में काम आया। लिहाजा दिमाग समेत पूरे शरीर
का विकास होता गया।
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