आदर्श मित्र बनने की प्रक्रिया में मनुष्य का व्यक्तित्व सुदृढ़, सुशोभित
एवं समृद्ध बनता है। एक अच्छे विचारक ने अपनी डायरी में आदर्श मित्र की
व्याख्या लिखी है कि मेरा मित्र और मैं कुल योग एक भी नहीं और दो भी
नहीं।
जो मनुष्य ऐसा दावा कर सके, जो कम-से-कम अपने अंतरंग मित्र का निर्देश
करते हुए विश्वास और कृतार्थता के साथ कह सके कि हम साथ मिलकर एक नहीं तो
दो भी नहीं होते। मेरे पास वह आता है तो न तो मेरा एकांत टूटता है और न
वह मुझे कभी खलता है। उसकी उपस्थिति में मैं अकेला भी नहीं और दूसरे के
सम्मुख होऊं ऐसा भी नहीं लगता।
सच्ची मित्रता संसार-सागर की तरंग, विश्व-उद्यान का सौरभ और ह्रदय-मंदिर
का अखंड दीप है। मित्र-प्रेम मानव-ह्रदय का उत्कृष्ट भाव है। जो इस भाव
को हल्का बताए, वह यही सिद्ध करता है कि सच्चा मित्र प्राप्त करने का
सौभाग्य उसने कभी पाया ही नहीं। मनुष्य को एकांत अखरता है।
कोई समाचार मिला कि तुरंत दूसरे से या किसी से भी कहने को दौड़ता है।
विनोद सूझा तो दूसरे से कहे बिना चैन नहीं पड़ता, दिल में चिंता पैदा
होते ही दूसरे के सामने दिल खोले बिना छुटकारा नहीं होता। ऋषि-मुनि
हिमालय के जंगल में, मौनव्रत की सिद्धि में, आनंद की उमंग उठने पर,
वृक्षों की छाल उखाड़कर दुनिया को अपने आनंद का संदेश क्या नहीं पहुंचाते
थे?
एक लेखिका मार्मिक, कलात्मक एवं विरोधाभास के रूप में लिखती है एकांत का
लाभ अपूर्व है, पर दूसरे के साथ इसका आनंद लिया जा सके तभी। एक वैज्ञानिक
उपन्यास का नायक मानव-जाति से रुष्ट होकर पृथिवी पर कभी वापस न आने की
प्रतिज्ञा करके, अपने अवकाश-यान में अकेला ब्रह्मांड की अनंत यात्रा को
रवाना हुआ।
लेकिन आकाश-सृष्टि की अद्भुत शोभा का दर्शन होते-होते वह बुदबुदाने लगा,
ओह कैसा अद्भुत सौंदर्य। औरों को भी उसका वर्णन सुनाने की तीव्र लालसा से
वह तुरंत अवकाश-यान को लौटाकर फिर से मानव-जाति की गोद में आ गया।
मनुष्यों के बीच रहने से मनुष्य का बाह्म एकांत तो मिट जाता है, परंतु
हृदय का सूक्ष्म समाज की हलचल और दोस्तों के हंसी-मजाक से भी दूर नहीं
होता बल्कि बढ़ जाता है। आडम्बर-भरे समारोहों के बीच हृदय की गहराई में
अकेला होने की रहस्यमय प्रतीति किसे न हुई होगी।
समाचार, चुटकुले, अफवाह और आलोचनाओं का विनिमय हर किसी के साथ हो सकता
है, परंतु हृदय की बातों-भावना, दुख, संकोच, स्वप्न और आकांक्षाओं आदि-के
विनिमय के लिए सच्चे मित्र की जरूरत पड़ती है। मित्र को अंतर की बातें
निकलवाने का कुतूहल नहीं होता। इसलिए उससे उन्हें कहने का मन होता है।
मित्र की हृदयवीणा के तार हमारे तारों के साथ गुंथे होने से, एक ही
स्पंदन से सारा गीत गूंज उठता है। एक ही शब्द से सारी बात समझ में आ जाती
है इसीलिए उसके सामने, मन की उलझन सरलता से प्रस्तुत की जा सकती है।
मित्र अडिग सच्चाई से मन की बात मन में दबाकर रख सकता है। कुएं की तरह
चाहे जो चीज उसमें डाली जाए, वह उसकी शिकायत नहीं करता। इसीलिए मन-मंदिर
के द्वार उसके सामने खोले जा सकते हैं। चमुच मित्र-प्रेम हृदय-वृंदावन का
अमृतफल है। इतनी आत्मीयता होने पर भी सच्ची मित्रता में एकाधिकार नहीं
होता।
दो के बीच तीसरा आए, तो दोनों के आनंद में वृद्धि होती है। शुद्ध मित्र
पूछो तो मित्रों को एक-दूसरे में नहीं, परंतु दोनों को एक ही प्रवृत्ति
में, एक ही स्वप्न में एक-समान रस होता है। वे एक-दूसरे के बारे में अथवा
अपनी मैत्री के बारे में बहुत बात नहीं करते, परंतु एकरूप हो जाने के बाद
दुनिया को सब बातों की एक दृष्टि से छानबीन करते हैं और अपना जीवन एक ही
सांचे में ढालते हैं।
अनेक प्रकार कि विचारों, मूल्यांकनों, योजनाओं और आकांक्षाओं का परस्पर
विनिमय मित्रता का ताना-बाना है। देना-लेना मैत्री-व्यवहार के केंद्र में
रहता है। इसलिए जिसके पास सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संपत्ति हो, जिसका
हृदय-कोष समृद्ध हो, और परिणाम-स्वरूप ये संस्कार दूसरे के पास से ग्रहण
करने की जिसकी तैयारी हो, वही सच्चे मित्र की व्याख्या में आ सकता है।
जिसके पास कुछ भी न हो, वह दूसरों को किसी चीज का भागीदार भी नहीं बना
सकता।
हृदय खाली हो तो उसके द्वार खोलने से क्या लाभ? कहीं भी जाना न हो, तो
यात्रा में साथ देनेवालों को ढूंढ़ने का क्या अर्थ? मित्र शब्द सापेक्ष
है। सेतु दो खंडों के बीच में ही होता है। वह मेरा मित्र है परंतु मैं
उसका मित्र नहीं यह वाक्य अर्थहीन ही है। एक बार एक ही कक्षा के
विद्यार्थियों को अपने मित्रों की क्रमबद्ध सूची बनाने को कहा गया, परंतु
सूचियों में बराबर मेल न बैठा। रमेश की सूची में पहला स्थान दिनेश आया
परंतु दिनेश की की सूची में पहला स्थान रमेश का न आकर किसी और का आया। यह
दोस्ती होगी, भाईचारा होगा, परंतु सच्ची मित्रता नहीं।
मित्रता का बीज दोनों क्यारियों में एक ही वेग से उगता है और एक ही वसंत
में खिलता है। मित्रों में छोटा कौन बड़ा कौन यह प्रश्न अर्थशून्य है।
दोनों स्वतंत्र समान हों तभी उनपर वंदनवार ठीक बैठती है। अपनी वृत्ति
परखने के लिए अपने आज के मित्रों की और तीन साल पहले के मित्रों की दो
सूचियां बनाओ। फिर दोनों की तुलना करो। क्या पुरानी सूची के बहुत-से नाम
रद्द हुए, अथवा कुछ नए नाम नई सूची में जुड़ गए? सच्चे मित्र थोड़े ही
होते हैं परंतु जीवन में हम जैसे पृथक्-पृथक् अवस्थाओं में से गुजरते
हैं। वैसे-वैसे नए संबंध जोड़ना भी हमें आना चाहिए।
नए मित्र बनाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? तुम्हारा अगर यह प्रश्न
हो-जैसे बहुत-से दूसरों का है तो इसका सीधा जवाब यह दिया जा सकता है कि
(मित्रता में एक-दूसरे का गुण-ग्रहण होने से) मित्र बनाने के लिए प्रथम
तुम स्वयं मित्र बन जाओ। अपनी ह्रदय-समृद्धि का दूसरों को भगीदार बनाओ,
दूसरों की भावनाओं का आदर करो, वफादारी के व्रत का निष्ठा से पालन करो,
गुप्त बातों को गुप्त ही रखो। जरूरत पड़ने पर दूसरों की मदद मांगो, और
दूसरे तुम्हारी मदद मांगें, उससे पहले ही उनकी मदद के लिए तैयार रहो और
मित्र के लिए न्याय करने का प्रसंग आए तब अपने को भाग्यशाली समझो।
मित्रता की कसौटी-और उसकी साधना की पराकाष्ठा-बलिदान है। दूसरों के लिए
जड़ कर्तव्य-बुद्धि से नहीं परंतु हृदय की उमंग से छोटा-बड़ा त्याग
हंसते-हंसते करने की तैयारी दिखाओगे तो तुम्हारे जीवन-आकाश में नये तारे
उदित होंगे। ग्रीक साहित्य में, डामोन और पिथियास नाम के दो आदर्श
मित्रों की बात आती है। तानाशाह राजा डायोनिसस को गद्दी से हटाने के
षड्यंत्र में दोनों सम्मिलित हुए, पिथियास पकड़ा गया और उसे मृत्यु-दंड
मिला। उसने घर जाकर अपने सगे-संबंधियों से मिल आने की राजा से अनुमति
मांगी।
डामोन ने जब अपने मित्र के लिए जामिन बनने की तैयारी बताई तभी राजा ने
अनुमति दी कि तीन दिन में यह वापस न आए तो तुझे ही फांसी पर लटकाया
जाएगा। पिथियास घर जाने को रवाना हुआ। एक दिन जाने में, एक घर रहने में,
और एक वापस आने में, ऐसी उसकी गणना थी परंतु वापस आते समय मुसीबतों की
श्रृंखला खड़ी हुई। नदी में बाढ़ आ गई, जंगल में लुटेरों का सामना हुआ,
घोड़ा भड़क गया, रास्ते में पटक दिए। इतने में तीन दिन की मुद्दत पूरी
होने को आई।
डामोन को चौक में खड़े किए हुए फांसी के मंच पर ले-जाया गया। तब राजा ने
उसका उपहास किया कि तेरा मित्र निश्चय ही तुझे धोखा देकर भाग गया है। भले
आदमी किसी का कभी विश्वास न करो, यह पाठ तुझे देर से सीखने को मिला और
इसे फांसी पर चढ़ाने का हुक्म दिया। डामोन अपने हाथ से गले में फंदा
डालकर बोला कि मुझे निश्चय है कि उसे आने में अवश्य कोई बाधा उपस्थित हुई
होगी। पर मैं तो उसके लिए खुशी से प्राण देने को तैयार हूं।
वह आए तब उसे कोई सजा न हो, आपका यह वचन मैं आपको याद दिलाता हूं। सबकी
आंखे मंच पर लगी हुई थी कि अचानक दूर से पुकार सुनाई दी ठहरो-ठहरो मैं आ
पहुंचा हूं। हांफते-हांफते आकर पिथियास ने अपने मित्र को गले लगा लिया।
राजा यह अद्भुत दृश्य देखकर दंग रह गया। दोनों मित्रों को बुलाकर
प्राणदंड से मुक्त किया और माफी मांगकर प्रार्थना की मुझे भी अपने
मित्र-रूप में स्वीकार करो।
आदर्श मित्र बनने की प्रक्रिया में मनुष्य का व्यक्तित्व सुदृढ़, सुशोभित
और समृद्ध बनता है। मित्रहीन मनुष्य तारों के बिना आकाश तथा पक्षियों के
बिना उपवन के समान है। मैत्री का सौभ्य संगीत सुनकर हृदय को पंख लग जाते
हैं, मन में अलौकिक उल्लास की बाढ़ आती है, जीवन-यात्रा की मंजिल तय करने
के लिए अदम्य उत्साह अनुभव होता है। जिसे सच्चा मित्र मिल गया, उसे जीवन
का खजाना ही मिल गया। जो स्वयं सच्चा मित्र बना, वह सच्चा इंसान भी बन
गया।
Story
(104)
जानकारी
(41)
वेबसाइड
(38)
टेक्नॉलोजी
(36)
article
(28)
Hindi Quotes
(21)
अजब-गजब
(20)
इंटरनेट
(16)
कविता
(16)
अजब हैं लोग
(15)
तकनीक
(14)
समाचार
(14)
कहानी Story
(12)
नॉलेज डेस्क
(11)
Computer
(9)
ऐप
(9)
Facebook
(6)
ई-मेल
(6)
करियर खबरें
(6)
A.T.M
(5)
बॉलीवुड और मनोरंजन ...
(5)
Mobile
(4)
एक कथा
(4)
पासवर्ड
(4)
paytm.com
(3)
अनमोल वचन
(3)
अवसर
(3)
पंजाब बिशाखी बम्पर ने मेरी सिस्टर को बी दीया crorepati बनने का मोका .
(3)
माँ
(3)
helpchat.in
(2)
कुछ मेरे बारे में
(2)
जाली नोट क्या है ?
(2)
जीमेल
(2)
जुगाड़
(2)
प्रेम कहानी
(2)
व्हॉट्सऐप
(2)
व्हॉट्सेएप
(2)
सॉफ्टवेर
(2)
"ॐ नमो शिवाय!
(1)
(PF) को ऑनलाइन ट्रांसफर
(1)
Mobile Hacking
(1)
Munish Garg
(1)
Recharges
(1)
Satish Kaul
(1)
SecurityKISS
(1)
Technical Guruji
(1)
app
(1)
e
(1)
olacabs.com
(1)
olamoney.com
(1)
oxigen.com
(1)
shopclues.com/
(1)
yahoo.in
(1)
अशोक सलूजा जी
(1)
कुमार विश्वास ...
(1)
कैटरिंग
(1)
खुशवन्त सिंह
(1)
गूगल अर्थ
(1)
ड्रग साइट
(1)
फ्री में इस्तेमाल
(1)
बराक ओबामा
(1)
राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला
(1)
रिलायंस कम्यूनिकेशन
(1)
रूपये
(1)
रेडक्रॉस संस्था
(1)
लिखिए अपनी भाषा में
(1)
वोटर आईडी कार्ड
(1)
वोडाफोन
(1)
लिखिए अपनी भाषा में
-
दोस्ती का मतलब सच्ची मित्रता नहीं
Thursday, April 11, 2013
Posted by Unknown Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook | |
Powered byKuchKhasKhabar.com
0 comments:
Post a Comment
Thankes