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  1. पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने
    में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।


    इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया
    मे पाई जाती हैं।


    भारत, इंडोनेशिया और पश्चिमी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर पुदीने का
    उत्पादन किया जाता है।


    पिपरमिंट और पुदीना एक ही जाति के होने पर भी अलग अलग प्रजातियों के
    पौधे हैं। पुदीने को स्पियर मिंट के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है।

    पुदीने को गर्मी और बरसात की संजीवनी बूटी कहा गया है, स्वाद, सौन्दर्य
    और सुगंध का ऐसा संगम बहुत कम पौधों में दखने को मिलता है। पुदीना मेंथा
    वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है। इसकी विभिन्न प्रजातियाँ
    यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं, साथ ही
    इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं।

    उत्पत्ति

    गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते
    हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ
    तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में
    फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज
    पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला,
    तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में-
    पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। भारतवर्ष में मुख्यतया
    तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा
    बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ
    क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों
    में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट
    अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है। पुदीने के विषय में प्रकाशित एक
    ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो
    कैंसर से बचा सकते हैं।

    रासायनिक संघटन

    जापानी मिन्ट, मैन्थोल का प्राथमिक स्रोत है। ताजी पत्ती में ०.४-०.६%
    तेल होता है। तेल का मुख्य घटक मेन्थोल (६५-७५%), मेन्थोन (७-१०%) तथा
    मेन्थाइल एसीटेट (१२-१५%) तथा टरपीन (पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन) है। तेल
    का मेन्थोल प्रतिशत, वातावरण के प्रकार पर भी निर्भर करता है। पुदीने में
    विटामिन एबीसीडी और ई के अतिरिक्त लोहा, फास्फोरस और कैल्शियम भी प्रचुर
    मात्रा में पाए जाते हैं।

    उपयोग

    मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौदर्य प्रसाधनों,
    कालफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में सुगंध के लिये किया
    जाता है। इसके अलावा इसका उड़नशील तेल पेट की शिकायतों में प्रयोग की
    जाने वाली दवाइयों, सिरदर्द, गठिया इत्यादि के मल्हमों तथा खाँसी की
    गोलियों, इनहेलरों, तथा मुखशोधकों में काम आता है। यूकेलिप्टस के तेल के
    साथ मिलाकर भी यह कई रोगों में काम आता है। अमृतधारा नामक बहुउपयोगी
    आयुर्वेदिक औषधि में भी सतपुदीने का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से
    गर्मियों में फैलने वाली पुदीने की पत्तियाँ औषधीय और सौंदर्योपयोगी
    गुणों से भरपूर है। इसे भोजन में रायता, चटनी तथा अन्य विविध रूपों में
    उपयोग में लाया जाता है। संस्कृत में पुदीने को पूतिहा कहा गया है,
    अर्थात् दुर्गंध का नाश करनेवाला। इस गुण के कारण पुदीना चूइंगम,
    टूथपेस्ट आदि वस्तुओं में तो प्रयोग किया ही जाता है, चाट के जलजीरे का
    प्रमुख तत्त्व भी वही होता है। गन्ने के रस के साथ पुदीने का रस मिलाकर
    पीने को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सलाद में इसकी पत्तियाँ डालकर खाने
    में भी यह स्वादिष्ट और पाचक होता है। कुछ नहाने के साबुनों, शरीर पर
    लगाने वाली सुगंधों और हवाशोधकों (एअर फ्रेशनर) में भी इसका प्रयोग किया
    जाता है।

    औषधीय गुण

    स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पुदीने के ढेरों गुणों का बखान
    किया गया है। यूनानी चिकित्सा पद्धति हिकमत में पुदीने का विशिष्ट प्रयोग
    अर्क पुदीना काफ़ी लोकप्रिय है। हकीमों का मानना है कि पुदीना सूचन को
    नष्ट करता है तथा आमाशय को शक्ति देता है। यह पसीना लाता है तथा हिचकी को
    बंद करता है। जलोदर व पीलिया में भी इसका प्रयोग लाभदायक होता है।
    आयुर्वेद के अनुसार पुदीने की पत्तियाँ कच्ची खाने से शरीर की सफाई होती
    है व ठंडक मिलती है। यह पाचन में सहायता करता है। अनियमित मासिकघर्म की
    शिकार महिला के शारीरिक चक्र में प्रभावकारी ढंग से संतुलन कायम करता है।
    यह भूख खोलने का काम करता है। पुदीने की चाय या पुदीने का अर्क यकृत के
    लिए अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में बहुत ही
    उपयोगी है। मेंथॉल ऑइल पुदीने का ही अर्क है और दांतो से संबंधित
    समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। जहरीले जंतुओं के काटने पर देश
    के स्थान पर पुदीने का रस लगा देने से विष का शमन होता है तथा पुदीने की
    सुगंध से बेहोशी दूर हो जाती है। अंजीर के साथ पुदीना खाने से फेफड़ों
    में जमा बलगम निकल जाता है।

    कुछ घरेलू नुस्खे-



    पुदीने की पत्तियों का ताजा रस नीबू और शहद के साथ समान मात्रा में लेने
    से पेट की हर बीमारियों में आराम दिलाता है।


    पुदीने का रस कालीमिर्च और काले नमक के साथ चाय की तरह उबालकर पीने से
    जुकाम, खाँसी और बुखार में राहत मिलती है।


    इसकी पत्तियाँ चबाने या उनका रस निचोड़कर पीने से हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।


    सिरदर्द में ताजी पत्तियों का लेप माथे पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।


    मासिक धर्म समय पर न आने पर पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण को शहद के
    साथ समान मात्रा में मिलाकर दिन में दो-तीन बार नियमित रूप से सेवन करने
    पर लाभ मिलता है।


    पेट संबंधी किसी भी प्रकार का विकार होने पर एकचम्मच पुदीने के रस को एक
    प्याला पानी में मिलाकर पिएँ।


    अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की
    पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में
    उबालकर पीने से लाभ होता है।


    पुदीने की पत्तियों को सुखाकर बनाए गए चूर्ण को मंजन की तरह प्रयोग करने
    से मुख की दुर्गंध दूर होती है और मसूड़े मजबूत होते हैं।


    एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ
    मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं।


    पुदीने के रस को नमक के पानी के साथ मिलाकर कुल्ला करने से गले का भारीपन
    दूर होता है और आवाज साफ होती है।


    पुदीने का रस रोज रात को सोते हुए चेहरे पर लगाने से कील, मुहाँसे और
    त्वचा का रूखापन दूर होता है।

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