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लिखिए अपनी भाषा में

  1. स्वाति पाठक हाल ही में एक नामी बैंक के एटीएम से पैसे निकालने गईं।
    उन्होंने पांच हजार की रकम एंटर की और एटीएम से कैश बाहर आने का इंतजार
    करने लगीं, लेकिन काफी वक्त तक रकम बाहर नहीं आई। स्वाति ने तुरंत अपना
    अकाउंट चेक किया, तो पता चला कि पांच हजार रुपये की रकम उनके खाते से कम
    हो चुकी है। स्वाति जैसे न जाने कितने ऐसे लोग हैं, जिन्हें इस तरह की
    समस्या से दो-चार होना पड़ता है। अगर कभी आपके सामने ऐसी स्थिति आ जाए तो
    आपको नीचे दिए गए तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए।

    1 बैंक में शिकायत

    सबसे पहले आपको उस ब्रांच में शिकायत दर्ज करानी चाहिए, जिसमें आपका
    खाता है। जिस एटीएम से आप पैसा निकाल रहे हैं, उसकी नजदीकी ब्रांच में भी
    इस बाबत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने के बाद उसकी एक
    कॉपी अपने पास जरूर रखें।

    कई बैंकों के एटीएम में टेलिफोन भी होते हैं, जिनसे कॉल करके आप सीधे
    बैंक के कॉल सेंटर से जुड़कर पैसा न निकलने की सूचना दे सकते हैं।

    अगर बैंक को सूचना देने के 30 दिनों के अंदर आपकी शिकायत पर कोई
    कार्रवाई नहीं होती है और आपकी रकम वापस नहीं मिलती है तो आप आरबीआई या
    बैंकिंग ओम्बड्समैन में इसकी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके लिए इस लिंक
    को फॉलो करें http://secweb.rbi.org.in/bo/compltindex.htm

    2 क्या है नियम

    इन शिकायतों को देखते हुए केंद्रीय बैंक आरबीआई ने पिछले दिनों बैंकों को
    निदेर्श दिया कि एटीएम में फंसे हुए पैसे ग्राहक द्वारा शिकायत दर्ज
    कराने के 12 दिनों के भीतर मिल जाने चाहिए। अगर कोई बैंक 12 दिनों के
    अंदर इस तरह एटीएम में फंसा हुआ पैसा कस्टमर को नहीं देता है तो उसके बाद
    उसे 100 रुपये रोज के हिसाब से जुर्माना भी देना होगा।

    3 रकम न निकलने का सुबूत

    हर दिन की समाप्ति पर बैंक इस बात का हिसाब-किताब करते हैं कि एटीएम में
    सुबह कितने नोट और रकम रखी गई थी, उस दिन कितनी रकम निकाली गई और कितने
    की रसीदें जारी की गईं। बैंकों को इस हिसाब-किताब के दौरान यह पता चल
    जाता है कि वाकई किसी कस्टमर को रकम नहीं मिली है। इसके अलावा हर बैंक के
    एटीएम में कैमरे भी लगे होते हैं। अगर किसी को ट्रांजैक्शन करने के बाद
    कैश नहीं मिल पाया है तो यह चीज कैमरे में रेकॉर्ड हो जाएगी और बैंक
    कर्मचारियों को इसकी सही जानकारी हासिल हो जाएगी।

  2. आजकल सभी बैंक अकाउंट खोलने के बाद इन्टरनेट बैंकिंग की सुविधा देती हैं|
    यह सुविधा दो तरह की होती है, पहली यूसर आई डी द्वारा भुगतान और दूसरी
    अपने ही एटी एम कार्ड द्वारा भुगतान| नया अकाउंट खोलने पर या पुराने
    अकाउंट पर मांगे जाने पर बैंक द्वारा एक यूसर आई डी और 2 पासवर्ड (लोगिन
    पासवर्ड और ट्रांस्जेक्सन पासवर्ड) प्रदान किया जाता है| जुलाई 2009 के
    बाद से इस्सू होने वाले सभी एटी एम कार्ड पर स्पेशल CVV / CVV2 कोड होता
    है जो ऑनलाइन भुगतान में प्रयोग होता है|


    चूंकि यह सारा काम ऑनलाइन होता है तो भूल चूक की संभावना ना के बराबर
    होती है, मगर फिर भी कुछ शातिर लोग आपको चूना लगा सकते हैं| आपकी एक छोटी
    सी गलती आपका पूरा अकाउंट खाली कर सकती है| अत: ऑनलाइन भुगतान करते वक़्त
    इन बातो का विशेष ध्यान रक्खे|


    1 . बैंक द्वारा प्रदान किये गए पासवर्ड, फर्स्ट यूस के बाद ऑनलाइन
    अकाउंट एक्टिवेट हो जाता है अत: फ़ौरन नया पासवर्ड बदल लें| अपना पासवर्ड
    किसी को भी ना बताये| यहाँ तक की आपका पासवर्ड बैंक के कर्मचारी, मेनेजर
    या कस्टमर केयर आदि किसी को भी नहीं बताना|


    2 . कोशिश यही करनी चाहिए की जहाँ तक हो सके ई बैंकिंग अपने ही पर्सनल
    कंप्यूटर पर ही किया जाए| साइबर कैफे या किसी भी परिचित के कंप्यूटर का
    प्रयोग ना ही करें तो बेहतर है|


    3 . अपने कंप्यूटर पर भी ख़ास सावधानी की ज़रूरत है| फालतू के सॉफ्टवेर ना
    ही लोड करे तो अच्छा है क्यूकी घटिया सॉफ्टवेर के साथ वाइरस के फैलने का
    डर रहता है|


    4 . यदि मजबूरी में साइबर कैफे या अन्य का कंप्यूटर प्रयोग कर रहे हैं तो
    मोज़िला फायरफोक्स या इन्टरनेट एक्स्प्लोरर का लेटेस्ट प्रयोग करें|
    लेटेस्ट सॉफ्टवेर में प्राइवेट ब्राउसिंग का आप्शन होता है जो आपकी लोगिन
    डाटा को सेव रखता है|


    5 . ई बैंकिंग का भुगतान जिस वेबसाइट को कर रहे हैं वह सुरक्षित होनी
    चाहिए| अधिकतर वेबसाइट किसी 128 bit SSL Gateway (or 256 bit) का प्रयोग
    करती है| इन Gateways को प्रमाणित करने हेतु सर्टिफिकेट पर विशेष ध्यान
    दें|


    6 . बैंक कभी भी अपने यूसर्स को लोगिन पासवर्ड या प्राइवेट जानकारी से
    सम्बन्धित ई मेल नहीं भेजता है| यदि आपको कोई ऐसा मेल मिले जो आपकी ई
    बैंकिंग जानकारी को पूछे तो आप तुरंत उसे डिलीट कर दें| बैंक द्वारा समय
    समय पर आपको ईमेल के माध्यम से यही अवगत कराया जाता है की कोई कितना भी
    पूछे, आई डी & पासवर्ड किसी को नहीं बताना|


    7 . जिस बैंक अकाउंट का प्रयोग ई बैंकिंग के लिए किया जाए उस में न्यूनतम
    भुगतान राशि ही रखनी चाहिए, ताकि कोई भी गड़बड़ होने पर नुक्सान की
    संभावना कम से कम हो| उदाहरण के लिए मैं जिस अकाउंट का प्रयोग इ बैंकिंग
    में स्वंय करता हूँ उसमे न्यूनतम 50 हजार ही रखता हूँ|


    8 . बच्चो को अपना एटीएम कार्ड ना प्रयोग करने दें| उनके लिए अलग से
    अकाउंट खुलवा कर देना एक अच्छा विकल्प है|


    9 . एटीएम कार्ड पर 16 अन्क का एक कोड व अवधि आदि का उल्लेख होता है,
    एटीएम कार्ड द्वारा भुगतान करने पर यही कोड व अवधि आदि का प्रयोग किया
    जाता है, अत: अपने कार्ड को छिपा कर ही रखना बेहतर होता है|


    10 . एटीएम कार्ड का प्रयोग एटीएम सेंटर पर बहुत सावधानी पूर्वक गुफ्त
    रूप से करने हेतु केबिन होता है| अपने अधिकार का पूरा प्रयोग करें| एटीएम
    सेंटर से जो पर्ची निकलती है उसको फाड़ कर ही कूड़ेदान में डालना चाहिए,
    क्यूकी उस पर कोड अंकित होता है|


    धोखाधडी होने का अंदेशा हो तो इसकी सूचना तत्काल बैंक कस्टमर केयर को फोन
    करके देनी चाहिए और अपने अकाउंट लोक करवा के बड़े नुकसान से बचना चाहिए|

  3. अगर आप अपने कंप्यूटर के किसी ड्राइव के डेटा की सुरक्षा को और भी ज्यादा
    बढ़ाना चाहते हैं, या किसी एक ड्राइव को दूसरों की नजरों से छुपाना चाहते
    हैं। तो इसके लिए कंप्यूटर में ग्रुप पॉलिसी एडीटर नामक विंडोज युटिलिटी
    होती है। इसे खोलने के लिए start और फिर run को क्लिक करें और खुले हुवे
    बॉक्स में gpedit.msc टाइप करके ओके दबा दें । ग्रुप पॉलिसी एडीटर खुल
    जाएगा। इसमें लेफ्ट साइड पर दिए गए लिंक्स में पहले Administrative
    Templates/Windows Coponants/Windows explorer तक पहुंचें। अब राइट साइड
    के कॉलम में Hide these specified drives in my computer नामक ऑप्शन
    दिखेगा।

    इसे राइट क्लिक करके properties खोलें या डबल क्लिक करे। यहां Enabled
    नामक रेडियो बटन पर क्लिक करें। नीचे की तरफ कुछ नए ऑप्शन खुलेंगे। इनमें
    सबसे पहले ऑप्शन restrict all devices को सिलेक्ट करके apply करने पर
    आपकी सभी ड्राइव (A, B, C, D आदि) हाइड हो जाएंगी। अगर ऐसा नहीं करना
    चाहते तो इन्हीं ऑप्शंस के जरिए किसी एक या एक-से-ज्यादा ड्राइव्स को
    हाइड कर सकते हैं।

    अब वह ड्राइव my computer या windows explorer में दिखाई नहीं देगी।

  4. आज कंप्यूटर हम सभी की जिंदगी का एक अहम अंग बन चुका है. आज कई लोगों के
    लिए तो कंप्यूटर ही रोजी-रोटी है. ऐसे में वह सभी लोग यह चाहते हैं कि
    कंप्यूटर की तेज गति के बाद भी उन्हें कुछ शॉर्टकट मिल जाएं ताकि उनका
    काम और भी आसान हो जाए. अगर आप भी की-बोर्ड शॉर्टकट के बारे में जानना
    चाहते हैं तो आज का यह ब्लॉग आपके लिए ही है.


    Keyboard Shortcuts : कॉपी पेस्ट से बढ़कर

    अधिकतर जब भी बात की-बोर्ड शॉर्टकट की आती है जो हमारे जहन में सिर्फ
    कट-कॉपी-पेस्ट जैसे मामूली शॉर्टकट्स ही आते हैं जबकि कंप्यूटर में आप कई
    और प्रभावी शॉर्टकट्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.


    What is Keyboard Short Cut: क्या होते हैं शॉर्टकट्स

    शॉर्ट कट की-बोर्ड के दो या दो से ज्यादा कीज के कॉम्बिनेशन यानि एक साथ
    दबाने से बनते हैं, जैसे Control+C यह शॉर्टकट किसी फाइल या टेक्सट को
    कॉपी करने के लिए काम आता है. इसी तरह control +v ( पेस्ट यानि paste के
    लिए), control +z(undo यानि किसी की गई चीज को पुन: पुरानी अवस्था में
    लाने के लिए) आदि.


    List of the keyboard shortcuts: आइए जानें अन्य की बोर्ड शॉर्टकट्स

    WINDOWS KEY + E: इसके प्रयोग से आप माई कंप्यूटर (My Computer) खोल सकते
    हैं. इसके लिए आपको माउस को माई कंप्यूटर के आइकॉन तक ले जाने की भी
    जरूरत नहीं.


    Windows+L: यह शॉर्टकट सिस्टम लॉक के लिए इस्तेमाल किया जाता है. काम
    करते-करते कहीं जाना पड़े तो बटन दबाकर सिस्टम को लॉक करके जाएं. यह तभी
    काम करेगा जब कोई विंडो खुली हो और कंप्यूटर किसी पासवर्ड से खुलता हो.



    Shift+Delete: यह शॉर्टकट किसी फाइल या फोल्डर को परमानेंट डिलीट करने के
    लिए इस्तेमाल किया जाता है.



    Control+Esc: इस शॉर्टकट का इस्तेमाल आप बिना माउस को छुए स्टार्ट मेन्यू
    खोलने के लिए कर सकते हैं.


    Alt+Enter: किसी भी फाइल या फोल्डर अथवा ड्राइव की प्रॉपर्टीज जानने के
    लिए आप Alt के साथ Enter बटन दबाएं.


    Windows Key+M: अगर आपने बहुत सारे विंडो ओपन कर रखे हैं और एकाएक सिस्टम
    को थोड़ी देर के लिए बंद कर कहीं जाना है तो आप Windows Key के साथ M
    दबाएं. इससे सारे विंडो मिनिमाइज हो जाएंगे और इन्हीं विंडो को दुबारा
    मैक्सिमाइज करना है तो आप Windows Key+shift+M का इस्तेमाल कर सकते हैं.


    कंप्यूटर सर्च: अगर आप अपने नेटवर्क में मौजूद किसी खास कंप्यूटर को
    खोजना चाहते हैं, तो Control+Windows +F का इस्तेमाल करें.



    प्रिंटआउट: ज्यादातर सॉफ्टवेयर्स में Control+P कीज दबाने पर प्रिंट आउट
    डायलॉग बॉक्स खुल जाता है.


    इन शॉर्टकट्स की मदद से कंप्यूटर पर काम करना कहीं ज्यादा आसान और तेज
    गति में हो जाएगा.

    More Keyboard Shortcut For MS-Office:

    इसके अलावा कुछ अन्य अहम उपयोगी शॉर्टकट्स निम्न हैं जो आपकी
    माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में बहुत मदद क

    कार्य कुंजियाँ



    सलेक्ट आल CTRL+A
    कॉपी CTRL+C
    कट CTRL+X
    पेस्ट CTRL+V
    अनडू CTRL+Z
    रीडू CTRL+Y
    बोल्ड CTRL+B
    इटैलिक्स CTRL+I
    अन्डरलाइन CTRL+U
    लेफ्ट जस्टीफॉई CTRL+L
    सेंटर जस्टीफॉई CTRL+E=
    राइट जस्टीफॉई CTRL+R
    प्रमोट लिस्ट आयटम ALT+SHIFT+Left arrow
    डिमोट लिस्ट आयटम ALT+SHIFT+Right arrow or TAB

  5. आज की इस "कलयुगी" दुनिया में हम जीवन के हर क्षेत्र में विज्ञान से
    जुड़ी कई चीजें इस्तेमाल करते हैं और इनमें से इंटरनेट बहुत महत्वपूर्ण
    है. इंटरनेट के माध्यम से आज फेसबुक, गूगल, याहू जैसे स्थानों पर बने
    हमारे अकाउंट आज हमारे बैंक अकाउंट से अधिक महत्वपूर्ण हो चुके हैं.
    लेकिन जिस तरह एक बैंक में भी चोरों के सेंध मारने का डर रहता है उसी तरह
    इंटरनेट के जहां में भी हर पल दिल में एक डर बैठा रहता है कि कहीं किसी
    ने हमारे अकांउट के पासवर्ड चुरा लिया तो क्या होगा?

    गूगल, याहू और फेसबुक हैं जान

    आज इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले अधिकतर लोगों के पास अपनी जीमेल आईडी या
    याहू आईडी होती ही है. सोशल नेटवर्किंग पर समय व्यतीत करने वाले युवाओं
    के लिए फेसबुक और ट्विटर जैसी जगहें बेहद महत्वपूर्ण रखती हैं. ऐसे में
    कई बार लोग अपनी सुविधा के लिए एक पैटर्न के या बेहद आसान पासवर्ड रख
    लेते हैं जिसकी वजह से उनके सामने प्राइवेसी के साथ कई अन्य खतरे खड़े हो
    जाते हैं. ऐसे में आप कैसे इस परेशानी से बच सकते हैं यही आज इस ब्लॉग
    में हम बताना चाहते हैं.

    गलत स्पेलिंग ही है सही पासवर्ड का तरीका

    अक्सर लोग ऐसे शब्दों या अंकों को पासवर्ड बनाते हैं जो उनका नाम या जन्म
    की तारीख होते हैं. इस कारण उनके पासवर्ड आसानी से चोरी होनी की आशंका
    रहती है, लेकिन अगर आप सुरक्षित पासवर्ड चाहते हैं तो सही स्पेलिंग का
    प्रयोग न करें.


    विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर गलत व्याकरण का इस्तेमाल किया जाए तो आपके
    पासवर्ड सुरक्षित रह सकते हैं. हैकर आमतौर पर सही स्पेलिंग का प्रयोग
    करके पासवर्ड की चोरी करते हैं. गलत स्पेलिंग या व्याकरण का इस्तेमाल
    करके उन्हें बेवकूफ बनाया जा सकता है.


    अकसर लोग लंबे पासवर्ड के चक्कर में कोई ऐसा पासवर्ड रख लेते हैं जो बेहद
    आसान होता है ऐसे में हैकर्स इसको ब्रेक कर ही लेते हैं. लेकिन गलत
    स्पैलिंग कर आप उन्हें भी चकमा दे सकते हैं.


    उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आपका नाम मनोज कुमार पांडेय
    (MANOJKUMARPANDEY) है और आप अपना पासवर्ड "MANOJPANDEY1234" रखना चाहते
    हैं तो इसकी जगह आप "MAONJPANDYE1234" रखिए. ऐसा करना थोड़ा मुश्किल और
    याद रखने के लिहाज से मुश्किल तो है ही लेकिन एक दो बार अगर आप इस चीज को
    ट्राई करेंगे तो आपको यह पासवर्ड याद हो जाएगा.

  6. Email Account Safety

    आज तक शायद आप में से अधिकांश लोगों ने कभी ना कभी तो सोचा होगा कि आपके
    दुनिया से जाने के बाद आपके ई-मेल अकाउंट को कौन संभालेगा. आजकल दिन
    प्रति दिन उन लोगों की मात्रा बढ़ती जा रही है जो अपने दस्तावेजों को एक
    स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते समय डाकघर जैसी पुरानी सुविधा का नहीं
    बल्कि ई-मेल जैसी नई सुविधा का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में यह चिंता जायज
    है कि आपकी मृत्यु के बाद आपके ई-मेल(Email)अकाउंट को कौन संभालेंगा?
    गूगल(Google)ने इस सवाल को ध्यान में रखते हुए आपके लिए एक ऐसा हल हल
    ढूंढ़ निकाला है जिसमें आपके इमेल्स ही नहीं बल्कि डिजिटल फोटोज,
    डाक्यूमेंट्स जैसी सुविधाओं की भी आपके दुनिया से जाने के बाद उनकी रक्षा
    की जाएगी. इस योजना के तहत गूगल(Google)ने एक अकाउंट मैनेजर पेज पेश किया
    है जो आपके आदेशानुसार आपके मृत्यु के बाद आपकी डिजिटल रियासत का
    उत्तराधिकारी उसे ही बनाएगा जिसे आप चुन कर जाएंगे.

    यह गूगल (Google)अकाउंट मैनेजर कुछ इस तरह काम करेगा जैसे वो आपसे
    समय-समय पर इस बात का पता लगाता रहेगा कि आप अपनी मृत्यु के बाद डिजिटल
    तस्वीरों, दस्तावेजों और अन्य आभासी सामग्रियों का क्या करना चाहेंगे? और
    फिर आप एक 'इनएक्टिव अकाउंट मैनेजर' का प्रयोग करके गूगल को यह निर्देश
    दे सकते हैं कि आपकी मृत्यु के बाद वो आपके इमेल्स अकाउंट से जुड़े सभी
    दस्तावेजों को खत्म कर दे या फिर आप एक तय लंबी अवधि के अनुसार अपने
    दस्तावेज किसी अन्य व्यक्ति को मेल करना का निर्देश भी दे सकते हैं. यह
    होगा कुछ इस तरह कि अकाउंट सेटिंग पेज पर एक संदेश में गूगल अपने सदस्यों
    को अपने डाटा को भरोसेमंद मित्र या फिर परिवार के सदस्य से साझा करने या
    अपना अकाउंट खत्म करने का विकल्प देगा और साथ ही गूगल व्यक्ति द्वारा दिए
    हुए निर्देश को लागू करने से पहले समय की अवधि की जानकारी भी लेगा.


    Google Account Manager

    इस गूगल अकाउंट मैनेजर(Google Account Manager)की खास बात यह है कि यह
    आपके द्वारा इमेल्स पर दिए गए सभी निर्देशों को आपके मोबाइल नंबर पर भी
    भेजेगा जिसका अर्थ यह हुआ कि आप अपने इमेल्स पर चलने वाली सभी सुविधाओं
    की जानकारी अपने मोबाइल नंबर पर भी पा सकते हैं. इसके बाद आपसे जुड़े 10
    विश्वस्त लोगों को इस बारे में विशेष सूचना मिलेगी कि आपके अकाउंट के साथ
    क्या होने वाला है ? अंत में गूगल अपने उपयोगकर्ता को यूट्यूब वीडियो,
    गूगल प्लस प्रोफाइल्स सहित गूगल की सभी सेवाओं से अपना अकाउंट प्रभावी
    तरीके से साफ करने का विकल्प देगा. उपयोगकर्ता 3, 6, 9, 12 महीने की अवधि
    का चयन कर सकते हैं और इस अवधि की समय सीमा खत्म होने से एक महीने पहले
    गूगल दूसरे ईमेल पते पर एक अधिसूचना भेजेगा जिसमे आपसे यह पूछा जाएगा कि
    आप इन्हें अपने किसी भरोसेमंद मित्र या परिवार के साथ साझा करना चाहते
    हैं, या फिर इन्हें पूरी तरह से मिटाने का विकल्प चुनना चाहते हैं. गूगल
    अकाउंट मैनेजर के बारे में जानने के बाद अब आपको अपने इमेल्स अकाउंट से
    जुड़ी सभी चिंताओं को मिटा देना चाहिए क्योंकि यह बिल्कुल वैसा ही है
    जैसे अपने मरने से पहले अपने मकान, धन-दौलत के लिए उत्तराधिकारी चुनना.

  7. जब-जब हिन्दी सिनेमा की फिल्मों की तारीफ की जाती है उनमें सबसे पहला नाम
    मदर इंडिया फिल्म का आता है. मदर इंडिया का नाम आज भी हिन्दी सिनेमा में
    इस कदर कायम है कि बहुत से मशहूर निर्देशक इसकी रीमेक बनाना चाहते हैं पर
    क्या आप जानते हैं कि मदर इंडिया फिल्म अपने आप में एक रीमेक फिल्म थी.
    साल 1957 में मदर इंडिया(Mother India)जिस दिन पर्दे पर रिलीज हुई थी उसी
    दिन सिनेमाघरों की भीड़ को देखकर हिन्दी सिनेमा के जानकारों ने इस बात का
    अंदाजा लगा लिया था कि यह फिल्म बहुत जल्द ही इतिहास रचेगी और ऐसा ही
    हुआ. आज भी बॉलीवुड की कोई भी फिल्म मदर इंडिया फिल्म की कहानी और
    निर्देशन की तुलना नहीं कर सकती है.

    आज रीमेक फिल्म बनाने का चलन हिन्दी सिनेमा में एंट्री ले चुका है पर
    क्या निर्देशक रीमेक फिल्में बनाते समय पुरानी फिल्म की चुनौतियों पर खरे
    उतर पाते हैं या नहीं यह बहुत बड़ा सवाल है. ऐसा नहीं था कि सालों पहले
    हिन्दी सिनेमा में रीमेक फिल्में नहीं बना करती थीं बल्कि बहुत बार ऐसा
    देखा गया कि निर्देशक अपनी ही फिल्म का रीमेक बनाकर इतिहास रचा करते थे.
    उन निर्देशकों की लिस्ट में एक नाम महबूब खान का है. साल 1940 में रिलीज
    हुई फिल्म 'औरत' महबूब खान की थी जो हिट तो हुई पर इतिहास ना रच सकी.
    उसके बाद उन्होंने इसी फिल्म की रीमेक फिल्म बनाई जिसका नाम था मदर
    इंडिया. महबूब खान की निर्देशित फिल्मों की लिस्ट में मदर इंडिया(Mother
    India)ऐसी फिल्म बन गई जिसके नाम से उन्होंने पूरी दुनिया में नाम कमाया
    और देखते ही देखते महबूब खान का नाम हिन्दी सिनेमा की खास शख्सियत की
    लिस्ट में शामिल हो गया.


    फिल्म मदर इंडिया(Mother India)की कहानी कुछ इस तरह थी कि राधा नाम की
    महिला नवविवाहिता के रूप में गाँव आती है और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ
    उठाने में पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है. राधा नाम की महिला का
    किरदार नरगिस ने निभाया था और उन्होंने इस किरदार को निभाने में दिन-रात
    एक करके मेहनत की थी जिस कारण पर्दे पर मदर इंडिया देखने आए लोगों ने
    फिल्म के एक-एक दृश्य को दिल से महसूस किया था. सुखी लाल के कर्ज से
    बेहाल राधा का पति श्यामू घर छोड़ कर चला जाता है और घर-गृहस्थी को चलाने
    की सारी जिम्मेदारियां राधा के कंधों पर आ जाती है. फिल्म मदर
    इंडिया(Mother India)में श्यामू नाम का किरदार अभिनेता राज कुमार ने
    निभाया था. पति के जाने के बाद राधा समाज में अपनी इज्जत को सुखी लाल की
    नजरों से बचाती है और अपना एक बेटा खोने के बाद दो बेटों को अकेले बड़ा
    करती है पर इस सबके बीच राधा अपने मूल्यों, अपने सिद्धांतों से कभी भी
    समझौता नहीं करती है

    मदर इंडिया फिल्म के सुपरहिट होने के पीछे एक खास कारण था और वो था फिल्म
    का पोस्टर. आज किसी भी फिल्म के रिलीज होने से पहले फिल्म के प्रमोशन पर
    आंख बंदकर पैसा खर्च किया जाता है पर महबूब ने मदर इंडिया(Mother
    India)फिल्म के प्रमोशन के लिए ऐसा कुछ नहीं किया था. मदर इंडिया फिल्म
    का एक पोस्टर ही उसके सुपरहिट होने का सबसे बड़ा कारण बन गया. प्रमोशन
    पोस्टर में बैल की जगह स्वयं हल खींचकर अपना खेत जोतती महिला को दिखाकर
    इस फिल्म ने दर्शकों को दिल से जोड़ लिया था जिस कारण शायद ही कोई इस
    फिल्म को सिनेमाघर में नहीं देखने के लिए अपने कदम रोक पाया होगा.
    'दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा' मदर इंडिया(Mother India)फिल्म
    के इस गाने ने फिल्म की पूरी कहानी सही तरीके से बयां करने में खास मदद
    की थी. वास्तव में अब हिन्दी सिनेमा में वो समय आ चुका है जब अपनी फिल्म
    को बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट कराने के लिए निर्देशक और निर्माताओं को एक
    पोर्न स्टार, सेक्सी और बोल्ड सीन या फिर हॉलीवुड की फिल्मों का सहारा
    लेना पड़ता है. ऐसे में इस बात की उम्मीद करना बेकार ही है कि कोई भी
    निर्देशक फिल्म मदर इंडिया की सफलतापूर्वक रीमेक बना पाएगा.

  8. अपने सर्च इंजिन तथा ई मेल सेवाओं के लिए जानी जाने वाली गूगल को अमेरिका
    में स्वचालित कारों के परीक्षण का लाइसेंस मिला। वह नेवादा की व्यस्त आम
    सड़कों पर बिना चालक के चलने वाली कारों का परीक्षण करेगी। नेवादा,
    कैलिफोर्निया में मोटर वाहन विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने
    गूगल को देश में अपनी तरह का पहला लाइसेंस दिया है। इसके तहत वह आम
    गलियों पर ऐसे स्वचालित वाहन का परीक्षण करेगी जिसमें चालक की जरूरत नहीं
    होती। विभाग के बयान में कहा गया है कि उसने कई जगह के प्रदर्शन को देखने
    को बाद यह विशेष लाइसेंस जारी किया है। इसमें कहा गया है कि नए नियम व
    कानूनों के तहत यह पहला लाइसेंस जारी किया गया और इससे नेवादा स्वचालित
    वाहन विकास में अग्रणी स्थिति में आ गया है। स्वचालित वाहन की इस
    परियोजना को गूगल के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

  9. अपनी तरह की यह संभवत: पहली घटना होगी। अमेरिका में 42 साल पहले चोरी हुई
    एक कार उसके मालिक को दोबारा मिल गई है। 1967 मॉडल की ऑस्टिन हीले
    स्पोर्ट्स कार 1970 में इसके मालिक रॉबर्ट रसेल के घर से चोरी हो गई थी।
    जिस समय यह कार चोरी हुई रसेल फिलाडेल्फिया में रहते थे। फिलहाल वह
    टेक्सास में रह रहे हैं। इन 42 वर्षो में उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से
    कार की खोज लगातार जारी रखी।

    एनबीसी लॉस एंजिलिस की खबर के अनुसार इस कार को ईबे नामक वेबसाइट पर मई
    में नीलाम किया जा रहा था। जब रसेल ने नीलाम हो रही कार के पहचान नंबर को
    अपने नाम से जारी प्रमाणपत्र में दिए गए नंबर से मिलाया तो दोनों एक ही
    निकले। इस बाबत जब वेबसाइट के डीलर से पूछा गया तो उसने कहा कि उसने यह
    कार एक व्यक्ति से खरीदी है, जिसने उन्हें बताया था कि यह कार उसके पास
    1970 से है। लॉस एंजिलिस में कंट्री शेरिफ के जासूसों ने कार खोजकर रसेल
    को सौंप दी।

    रसेल ने कहा कि कार की हालत अच्छी है। पर इसमें थोड़ी मरम्मत की जरूरत
    है। उन्होंने बताया कि यह कार उस समय तीन हजार डॉलर (एक लाख 65 हजार
    रुपये) में खरीदी थी और आज इसकी कीमत 23 हजार डॉलर ( करीब दस लाख रुपये)
    है। रसेल ने कहा कि उन्होंने कार की खोज पैसों के कारण नहीं जारी रखी। इस
    कार से उनका भावनात्मक लगाव है।

  10. त्योहारों के दौरान दूर-दराज के लोगों को सैकड़ों किमी दूर अपने घर जाने
    में सबसे ज्यादा तकलीफ होती है क्योंकि उनको रेलवे में कंफर्म रिर्जवेशन
    टिकट नहीं मिल पाता। इस समस्या का निदान बीजिंग यूनिवर्सिटी के एक छात्र
    ने निकाला है। दरअसल यह छात्र अक्सर अपने दोस्तों और आस-पास के लोगों को
    त्योहारों के दौरान टिकट के लिए परेशान होते देखता था। सो, एक दिन उसने
    इसका समाधान निकालने की ठान ली और कई दिनों तक ट्रेन के रूट, बुकिंग करने
    के तौर-तरीकों को समझने के बाद उसने ऑनलाइन रास्ता खोज निकाला। नतीजतन
    पिछले तीन साल में उसने करीब 80 हजार लोगों के दो लाख कंफर्म टिकट बुक
    कराए हैं। टिकट किंग के नाम से मशहूर यह छात्र मुफ्त में लोगों की सेवा
    करता है। पिछले दिनों उसने बाकायदा टिकट बुकिंग की अपनी रणनीतियों के
    संबंध में एक बुकिंग गाइड प्रकाशित की है।

  11. अफ्रीका के सवाना के मैदान में विचरण करने वाले आदिमानव 35 लाख साल पहले
    गायों की तरह घास खाते थे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध से यह
    जानकारी सामने आई है। इससे पता चलता है कि शुरुआती इंसान चिंपैंजी की तरह
    कंद-मूल और फल नहीं खाते थे बल्कि वह भोजन के तौर पर हरी घास खाते थे।
    सूत्रों के अनुसार चाड में मिले बनमानुष जैसे दिखने वाले एक आदिमानव
    ऑस्ट्रोलापेथिकस बाहरेलगजाली के जीवाश्म के दांत में जमा कार्बन का
    विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उन्होंने
    जबड़े में फंसे भोजन के अवशेष को निकालने के लिए लेजर का इस्तेमाल किया।
    उस समय के आदिमानव ऑस्ट्रोलापेथिकस बाहरेलगजाली अपने मजबूत जबड़ों और तेज
    दांतों की बदौलत घास को खूब चबा-चबाकर खा सकते थे। उस समय के मानव के
    वैज्ञानिकों के तैयार चित्र के अनुसार बाहरेलगजाली मानव के जबड़े मजबूत
    बहुत थे लेकिन वह आधुनितक मानवों के जबड़ों से छोटे होते थे। चूंकि ये
    पूर्णत: घास पर ही आश्रित थे और इसलिए पूरी तरह शाकाहारी थे। ये मांस
    नहीं खाते थे और इन्हें तब भोजन के लिए शिकार करने की भी जरूरत नहीं
    पड़ती थी। चूंकि पर्यावरण में नए बदलावों के चलते इनके चारों में घास के
    विशाल मैदान और भरपूर हरियाली थी। इस शोध से साबित हुआ है कि लाखों साल
    पहले के इंसान अपने भोजन को आसपास उपलब्ध सामग्री के अनुसार ढालने में
    माहिर थे। वह स्थानीय और उपलब्धि वस्तुओं और जीवों के आधार पर खुद को
    बखूबी ढाल लेते थे। आसपास की प्रकृति के अनुरुप बदले गए व्यवहार से ही
    उनका शारीरिक विकास निर्धारित हुआ। जो उन्हें आदिमानव के विभिन्न रूप से
    होता हुए आधुनिक मानव तक बनाने में काम आया। लिहाजा दिमाग समेत पूरे शरीर
    का विकास होता गया।

  12. वह उस घटना को भूल गया था लेकिन 35 साल बाद अचानक एक दिन पुलिस ने उसके
    घर पहुंचकर चौंका दिया।

    वह दरअसल 1978 में चोरी हुए उसके पर्स को लौटाने आई थी। वह आश्चर्यचकित
    रह गया। उसने पर्स खोलकर देखा तो उसमें मौजूद 15 पौंड को छोड़कर
    ड्राइविंग लाइसेंस और तब खरीदा गया सिनेमा एवं बस का टिकट अब भी सुरक्षित
    था। रकम चोर ने निकाल ली थी। दरअसल कुछ दिन पहले शहर की एक बिल्डिंग का
    जीर्णोद्धार किया जा रहा था तो एक दीवार के भीतर छिपाया गया वह पर्स
    मिला। पुलिस को सूचना दी गई। लाइसेंस में दिए गए पते पर पहुंचकर पुलिस ने
    पर्स मालिक को वापस कर दिया। उस व्यक्ति का जब पर्स खोया था तब वह 23
    वर्ष का युवा था। अब वह 58 साल का अधेड़ व्यक्ति है।

  13. लंदन। ब्रिटेन में 230 वोल्ट और 55 वाट का डीसी ओसराम बल्ब पिछले सौ साल
    से रोशनी दे रहा है। उसने एक हजार घंटे तक रोशनी देने की किसी बल्ब की
    क्षमता को कहीं पीछे छोड़ दिया है। टाईटेनिक जहाज के डूबने के कुछ ही
    महीने बाद 1912 में यह बल्ब बना था।

    सूत्रों के अनुसार रोजर डायबॉल (74) ने इस बल्ब के बारे में बताया कि
    सफोल्क के लोवस्टोफ स्थित उनके घर के बरामदे में यह बल्ब अभी तक रोशनी दे
    रहा है। जब 45 साल पहले वह इस मकान में आये थे तब भी यह वहां लगा था।
    डायबॉल उत्तरी लंदन में वेम्बले में बने इस बल्ब से इतने प्रभावित हुए कि
    उन्होंने इसके सीरियल नम्बर और अन्य व्योरे के साथ कम्पनी ओसराम-जीईसी के
    लंदन स्थित मुख्यालय को पत्र लिखा। चिट्ठी के जवाब में कंपनी ने 1968 में
    बताया कि इस बल्ब का निर्माण जुलाई 1912 में हुआ था। उनको ऐसी उम्मीद है
    कि यह बल्ब ऐसे ही जलता रहेगा। ऐसा कहा जाता है कि सामान्यता एक बल्ब
    1000 घंटे जलने के बाद फ्यूज हो जाते है। इस बल्ब ने तकनीकी रूप से सारी
    अवधारणाओं को पीछे छोड़ दिया है। इससे पहले मार्गेट केंट नामक स्थान पर
    ब्रिटेन में सबसे अधिक समय तक जलने वाले बल्ब का पता चला था। ऐसा अनुमान
    है कि थॉमस अल्वा एडीसन के बिजली का आविष्कार करने के बाद इसको बनाया गया
    था।

  14. बांका। इसे कुदरत का करिश्मा कहें या शारीरिक विकृति, समझ में नहीं आता।
    96 वर्षीय बुजुर्ग के सिर पर तीन इंच लंबा सींग उग आया है। बकरे या अन्य
    जानवरों के सींगों की तरह ही यह भी मजबूत और नुकीला है। इस अजूबे ने
    स्थानीय चिकित्सकों को भी हैरत में डाल रखा है। वे भी इसे अपनी तरह का
    अद्भुत केस मान रहे हैं।

    जानकारी के अनुसार अमरपुर प्रखंड के सलेमपुर गांव के जगदीश कापरी के सिर
    पर यह सींग निकला है। कापरी ने बताया कि छह महीने पहले सर्दियों के दौरान
    उन्हें सिर के बीच में सींग विकसित होने का एहसास हुआ। जगदीश के
    रिश्तेदार राजीव कापरी ने बताया कि सर्दियों में जगदीश की ऊनी टोपी
    फाड़कर सींग बाहर निकल आया। इसके बाद सबका ध्यान इस ओर गया। जगदीश का
    कहना है कि उन्हें सींग से कोई विशेष तकलीफ नहीं है। मगर, सिर पर
    असामान्य रूप से सींग निकलने से वे सहमे हुए हैं।

    स्थानीय चिकित्सकों से भी समस्या पर बात की गई। सभी पसोपेश में पड़ गए।
    जगदीश की उम्र के मद्देनजर चिकित्सक शल्य क्त्रिया कर सींग हटाने से भी
    परहेज कर रहे हैं।

    इस बाबत सिविल सर्जन डॉ. एनके विद्यार्थी ने बताया कि चिकित्सा विज्ञान
    में हॉर्न यानी सींग निकलने की बात अभी तक सामने नहीं आई है। कभी-कभी
    शरीर के किसी हिस्से में मांस का अतिरिक्त हिस्सा निकलने के मामले जरूर
    सामने आते रहे हैं। मगर, ठोस सींग का निकलना बिल्कुल अनोखा मामला है।
    जल्द ही मेडिकल टीम भेजकर कापरी की जांच कराई जाएगी। तत्पश्चात उनके इलाज
    पर विचार किया जाएगा।

  15. आजादी की लड़ाई के समय जहां एक तरफ स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों के खिलाफ
    अपनी हुंकार भरते थे वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनमानस में दमित आक्रोश को
    स्वर देने के लिए विद्रोही कवि अपनी अलग ही अलख जगाने में लगे हुए थे.
    उन्हीं विद्रोही कवियों में से एक हैं हिन्दी के सुविख्यात कवि रामधारी
    सिंह दिनकर.

    आजादी मिलने से पहले रामधारी सिंह दिनकर विद्रोही कवि के रूप में स्थापित
    हुए लेकिन स्वतंत्रता के बाद वे राष्ट्रकवि के नाम से पहचाने जाने लगे
    तथा आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हुए. आरम्भ
    में दिनकर ने छायावादी रंग में कुछ कविताएं लिखीं, पर जैसे-जैसे वे अपने
    स्वर से स्वयं परिचित होते गए, अपनी काव्यानुभूति पर ही अपनी कविता को
    आधारित करने का आत्मविश्वास उनमें बढ़ता गया.

    रामधारी सिंह दिनकर का जीवन

    रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर, 1908 ई. को सिमरिया, जिला
    बेगुसराय (बिहार) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ. इनके पिता श्री रवि
    सिंह एक साधारण किसान थे तथा इनकी माता का नाम मनरूप देवी था जो अशिक्षित
    व सामान्य महिला होने के बावजूद, जीवट व गंभीर साहसिकता से युक्त थीं.
    दिनकर का बचपन देहात में बीता, जहां दूर तक फैले खेतों की हरियाली,
    बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे थे. प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव
    दिनकर के दिलों-दिमाग में बस गया.


    दिनकर की शिक्षा

    दिनकर की आरंभिक शिक्षा गांव में ही प्राथमिक विद्यालय से हुई. यहीं से
    इनके मनोमस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था. हाई
    स्कूल की शिक्षा दिनकर ने मोकामाघाट हाई स्कूल से प्राप्त की. उन्होंने
    मैट्रिक के बाद पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स
    किया. विद्यार्थी के रूप में दिनकर की इतिहास, राजनीति और दर्शन पर अच्छी
    पकड़ थी. दिनकर ने संस्कृत, मराठी, बंगाली, उर्दू और इंग्लिश साहित्य को
    पढ़ा है.

    पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात
    दिनकर ने पहले सब-रजिस्ट्रार के पद पर और फिर प्रचार विभाग के उप-निदेशक
    के रूप में कुछ वर्षों तक सरकारी नौकरी की. वह लगभग नौ वर्षों तक वह इस
    पद पर रहे. इसके बाद दिनकर की नियुक्ति मुजफ्फरपुर के लंगट सिह कॉलेज में
    हिन्दी प्राध्यापक के रूप में हुई. बाद में भागलपुर विश्वविद्यालय के
    उपकुलपति के पद पर कार्य किया और इसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार
    बने.


    इकबाल और टैगोर से प्रभावित

    इकबाल और टैगोर से प्रभावित होने वाले दिनकर की जीवटता न केवल उनके कामों
    में अपितु व्यक्तित्व में भी दृष्टिगोचर होती है. अपनी नौकरी के पहले चार
    वर्षों में ही अंग्रेज सरकार नें उन्हें बाइस बार स्थानांतरित किया.
    आजादी के समय दिनकर तो भारत की अंधकार में खोई आत्मा को ज्योति प्रदान
    करने के लिये कलम की वह लडाई लडने को उद्यत थे जिससे सारे राष्ट्र को
    जागना था. वे स्वयं दृढ रहे, जितनी सशक्तता से उन्होंने आशावादिता का
    दृष्टिकोण दिया.

    दिनकर की प्रवृत्ति

    राष्ट्रकवि दिनकर आशावाद, आत्मविश्वास और संघर्ष के कवि रहे हैं. आरंभ
    में उनकी कविताओं में क्रमश: छायावाद तथा प्रगतिवादी स्वर दिखाई देते थे.
    शीघ्र ही उन्होंने अपनी वांछित भूमिका प्राप्त कर ली और वे राष्ट्रीय
    भावनाओं के गायक के रूप में विख्यात हुए. रामधारी सिंह दिनकर की कविता
    मूल रूप से क्रांति, शौर्य व ओज रहा है. उनकी कविता में आत्मविश्वास,
    आशावाद, संघर्ष, राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति आदि का ओजपूर्ण विवरण
    मिलता है. जनमानस में नवीन चेतना उत्पन्न करना ही उनकी कविताओं का प्रमुख
    उद्देश्य रहा है.

    उनकी रचनाओं में रेणुका (1935), द्वंद्वगीत(1940), हुंकार (1938), रसवंती
    (1939), कुरुक्षेत्र (1946), उर्वशी (1961) जैसी रचना शामिल हैं.

    एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार है तो
    दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है. इन्हीं दो
    प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें कुरुक्षेत्र और उर्वशी में मिलता है.
    आजादी के बाद सन 1952 में उन्होंने संसद सदस्य के रूप में राजनीति में
    प्रवेश किया. भारत सरकार नें उन्हें "पद्मभूषण" की उपाधि से सम्मानित
    किया. उन्हें संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा
    उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया. स्वतंत्रता
    संग्राम में रामधारी सिंह दिनकर के योगदान को देखते हुए उनके सम्मान में
    आज उनके नाम से कई पुरस्कार दिए जाते हैं. 24 अप्रैल, 1974 को इस महान
    ओजस्वी कवि का निधन हो गया.

  16. अगर आप ने भी एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा) से कोई पॉलिसी खरीदी है तो
    पॉलिसी चेक करने के लिए एलआईसी ऑफिस में लम्‍बी लाइन लगाने या इंतजार
    करने की कोई जरूरत नहीं आप अपनी पॉलिसी का स्‍टेट्स कभी भी ऑनलाइन चेक कर
    सकते हैं। इसके अलावा चाहें तो पॉलिसी स्‍टेट्स को मैसेज द्वारा भी चेक
    कर सकते हैं। नीचे दी गई स्‍टेप को ध्‍यान से फॉलो करें और अपनी एलआईसी
    पॉलिसी का स्‍टेट्स जानें।

    एसएमएस से पॉलिसी डीटेल जानने के लिए अपने मोबाइल से 56677 में एसएमएस
    करें उदाहरण के लिए अगर आपको अपनी पॉलिसी के प्रीमियम के बारे में जानना
    हैं तो अपने मोबाइल से एसएमएस करें ASKLIC PREMIUM लिखकर 56677 पर भेज
    दें। ऐसे ही पॉलिसी नंबर की जगह आप

    Premium - पॉलिसी प्रीमियम जानने के लिए
    Revival - अगर आपकी पॉलिसी लेप्‍स हो गई है
    Bonus - बोनस जानने के लिए
    Loan - लोन एमाउंट जानने के लिए
    NOM - नॉमिनेशन की डीटेल जानने के लिए

    ऑनलाइन पॉलिसी चेक करने के लिए

    सबसे पहले आप एलआईसी की वेबसाइट में अपना रजिस्‍ट्रेशन करना होगा
    रजिस्‍ट्रेशन करने के लिए क्लिक करें। इसके लिए कोई भी चार्ज नहीं लगेगा।
    रजिस्‍ट्रेशन करने के लिए आपको अपना नाम, पॉलिसी नंबर के साथ अपनी
    जन्‍मतिथी फार्म में भरनी होगी। जब आप एलआईसी की साइट में रजिस्‍ट्रेशन
    कर लेंगे तो अपना एकाउंट ओपेन करके कभी कभी पॉलिसी का स्‍टेट्स चेक कर
    सकते हैं।

  17. क्‍या किसी की सैलरी इतनी कम हो सकती है आप सोंच भी सकते वो भी गूगल जैसी
    दिग्‍गज कंपनी में लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी गूगल के सीईओ लैरी पेज
    और उनके साथी सर्गेई ब्रिन की सैलरी मात्र 1 डॉलर है जबकि दूसरी तरफ गूगल
    के दूसरे अधिकारियों का सैलरी पैकज 124 डॉलर है जिसमें से सबसे अधिक
    सैलरी पैकेज बिजनेस ऑपरेशंस के हेड निकेश अरोड़ा को है जिन्‍हें सालाना
    46.7 मिलियन डॉलर मिलते हैं।

    हम आपको बता दें लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने मिलकर 1998 में गूगल की
    शुरुआत की थी काफी कम समय में गूगल 2001 में शेयर मार्केट में लिस्‍टेड
    हो गई इसी के बाद से लैरी और ब्रिन ने अपनी सैलरी 1 डॉलर तक सीमित कर ली
    थी। इसके अलावा एप्‍पल के दिवंगत सीईओ स्‍टीव जॉब्‍स की सैलरी भी 1 डॉलर
    ही थी। इतनी कम सैलरी केवल लैरी, ब्रिन और स्‍टीव जॉब्‍स की ही नहीं
    बल्‍कि टेक जगत में कई ऐसी हस्‍तियां हैं जो नाम मात्र की सैलरी में काम
    करती हैं।

  18. भारतीय ज्ञान को हमेशा विश्व में माना जाता रहा है। दुनियाभर में भारतीय
    लोग अपनी बुद्धि-कौशल से कंपनियों को ऊंचाई पर ले जा रहे हैं।

    इन्हीं में एक नाम है नील मोहन का। नील मोहन को गूगल ने 100 मिलियन डॉलर
    (करीब 544 करोड़) का बोनस दिया है। यह बोनस गूगल ने नील मोहन को इसलिए
    दिया है कि कहीं वे ट्‍विटर न ज्वॉइन कर लें।

    भारतीय मूल के 39 वर्षीय नील मोहन गूगल में एडवरटाइजिंग प्रोडक्ट्‍स के
    वाइस प्रेसीडेंट हैं। ट्विटर ने उन्हें प्रॉडक्ट चीफ के पद का ऑफर दिया
    था। गूगल उनके टैलेंट का भरपूर उपयोग करना चाहती है। नील दूसरे ऐसे
    व्यक्ति हैं जिन्हें गूगल ने सबसे ज्यादा बोनस दिया है।

    गूगल के चेयरमैन इरिक श्मिट को इससे पहले गूगल ने 101 मिलियन डॉलर दिए
    थे। नील मोहन का बचपन फ्लोरिडा और मिशिगन में बीता। उन्होंने इलेक्ट्रिक
    इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से ली है। गूगल
    ने नील को यह बोनस कंपनी के शेयर के तौर रूप में दिया है।

    गूगल के शेयरों की वर्तमान कीमत के अनुसार नील के शेयरों की कीमत 100
    मिलियन डॉलर से बढ़कर 150 मिलियन डॉलर हो गई है। भारतीय रुपए में यह राशि
    लगभग 817 करोड़ रुपए हो जाएगी। नील के दोस्तों का कहना है कि नील में
    टेक्नोलॉजी की समझ है और वे व्यापारिक रणनीति पर जबर्दस्त पकड़ रखते हैं।

    नील मोहन फिलहाल सेन फ्रांसिस्को में अपनी पत्नी के साथ आलीशान मकान में
    रहते हैं। इस मकान की कीमत लगभग 5.2 मिलियन डॉलर है। मोहन की पत्नी हेमा
    सरीम कैलिफोर्निया में डेमोक्रेटिक स्टेट सिनेटर की क्षेत्रीय निदेशक
    हैं।

    नील मोहन ने अपने करियर की शुरुआत एक टेक्निकल कंपनी में सहायक वर्कर के
    रूप में बहुत छोटे मेहनताने में की थी। 2008 में मोहन अपनी पिछली कंपनी
    डबल क्लिक से गूगल में आए। डबल क्लिक को बिजनेस वर्ल्ड में एक
    एडवरटाइजिंग कंपनी के रूप में जाना जाता है। इसके बाद उन्होंने अपनी
    दूरदर्शिता और रणनीतियों से गूगल को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

  19. 'न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा।'- भगवान कृष्ण

    जब शरीर छूटता है तो व्यक्ति के साथ क्या होता है यह सवाल सदियों पुराना है। इस संबंध में जनमानस के चित्त पर रहस्य का पर्दा आज भी कायम है जबकि इसका हल खोज लिया गया है। फिर भी यह बात विज्ञान सम्मत नहीं मानी जाती, क्योंकि यह धर्म का विषय है।

    मुख्यत: तीन तरह के शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। व्यक्ति जब मरता है तो स्थूल शरीर छोड़कर पूर्णत: सूक्ष्म में ही विराजमान हो जाता है। सूक्ष्म शरीर के विसरित होने के बाद व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है, लेकिन कारण शरीर बीज रूप है जो अनंत जन्मों तक हमारे साथ रहता है।

    आत्मा पर छाई धुंध : व्यक्ति रोज मरता है और रोज पैदा होता है, लेकिन उसे इस बात का आभास नहीं होता। प्रतिपल व्यक्ति जाग्रत, स्वप्न और फिर सुषुप्ति अवस्था में जिता है। मरने के बाद क्या होता है यह जानने के लिए सर्वप्रथम व्यक्ति के चित्त की अवस्था जानना जरूरी है या कहना चाहिए की आत्मा के ऊपर छाई भाव, विचार, पदार्थ और इंद्रियों के अनुभव की धुंध का जानना जरूरी है।

    आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।

    तीन स्तरों का अनुभव प्रत्येक जन्म लिए हुए मनुष्य को अनुभव होता ही है, लेकिन चौथे स्तर में वही होता है जो ‍आत्मवान हो गया है या जिसने मोक्ष पा लिया है। वह शुद्ध तुरीय अवस्था में होता है जहां न तो जाग्रति है, न स्वप्न, न सु‍षुप्ति ऐसे मनुष्य सिर्फ दृष्टा होते हैं- जिसे पूर्ण-जागरण की अवस्था भी कहा जाता है।

    होश का स्तर तय करता गति : प्रथम तीनों अवस्थाओं के कई स्तर है। कोई जाग्रत रहकर भी स्वप्न जैसा जीवन जिता है, जैसे खयाली राम या कल्पना में ही जीने वाला। कोई चलते-फिरते भी नींद में रहता है, जैसे कोई नशे में धुत्त, चिंताओं से घिरा या फिर जिसे कहते हैं तामसिक।

    हमारे आसपास जो पशु-पक्षी हैं वे भी जाग्रत हैं, लेकिन हम उनसे कुछ ज्यादा होश में हैं तभी तो हम मानव हैं। जब होश का स्तर गिरता है तब हम पशुवत हो जाते हैं। कहते भी हैं कि व्यक्ति नशे में व्यक्ति जानवर बन जाता है।

    पेड़-पौधे और भी गहरी बेहोशी में हैं। मरने के बाद व्यक्ति का जागरण, स्मृति कोष और भाव तय करता है कि इसे किस योनी में जन्म लेना चाहिए। इसीलिए वेद कहते हैं कि जागने का सतत अभ्यास करो। जागरण ही तुम्हें प्रकृति से मुक्त कर सकता है।

    क्या होता है मरने के बाद : सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने गहरा अंधेरा छा जाता है, जहां उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। कुछ समय तक कुछ आवाजें सुनाई देती है कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसा कि स्वप्न में होता है और फिर धीरे-धीरे वह गहरी सुषुप्ति में खो जाता है, जैसे कोई कोमा में चला जाता है।

    गहरी सुषुप्ति में कुछ लोग अनंतकाल के लिए खो जाते हैं, तो कुछ इस अवस्था में ही किसी दूसरे गर्भ में जन्म ले लेते हैं। प्रकृ‍ति उन्हें उनके भाव, विचार और जागरण की अवस्था अनुसार गर्भ उपलब्ध करा देती है। जिसकी जैसी योग्यता वैसा गर्भ या जिसकी जैसी गति वैसी सुगति या दुर्गति। गति का संबंध मति से होता है। सुमति तो सुगति।

    लेकिन यदि व्यक्ति स्मृतिवान (चाहे अच्छा हो या बुरा) है तो सु‍षुप्ति में जागकर चीजों को समझने का प्रयास करता है। फिर भी वह जाग्रत और स्वप्न अवस्था में भेद नहीं कर पाता है। वह कुछ-कुछ जागा हुआ और कुछ-कुछ सोया हुआ सा रहता है, लेकिन उसे उसके मरने की खबर रहती है। ऐसा व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक की उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश नहीं हो जाता। कुछ अपवाद स्वरूप जन्म ले लेते हैं जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है।

    लेकिन जो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा स्मृतिवान, जाग्रत या ध्यानी है उसके लिए दूसरा जन्म लेने में कठिनाइयां खड़ी हो जाता है, क्योंकि प्राकृतिक प्रोसेस अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृतिहीन रहना जरूरी है।

    इनमें से कुछ लोग जो सिर्फ स्मृतिवान हैं वे भूत, प्रेत या पितर योनी में रहते हैं और जो जाग्रत हैं वे कुछ काल तक अच्छे गर्भ की तलाश का इंतजार करते हैं। लेकिन जो सिर्फ ध्यानी है या जिन्होंने गहरा ध्यान किया है वे अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी और कभी भी जन्म लेने के लिए स्वतंत्र हैं। यह प्राथमिक तौर पर किए गए तीन तरह के विभाजन है। विभाजन और भी होते हैं जिनका वेदों में उल्लेख मिलता है।

    जब हम गति की बात करते हैं तो तीन तरह की गति होती है। सामान्य गति, सद्गगति और दुर्गति। तामसिक प्रवृत्ति व कर्म से दुर्गति ही प्राप्त होती है, अर्थात इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि व्यक्ति कब, कहां और कैसी योनी में जन्म ले। यह चेतना में डिमोशन जैसा है, लेकिन कभी-कभी व्यक्ति की किस्मत भी काम कर जाती है।

    सचमुच प्रकृति में किसी भी प्रकार का कोई नियम काम नहीं करता क्योंकि कभी-कभी व्यक्ति की योग्यता भी असफलता का द्वार खोल देती है और अयोग्य व्यक्ति यदि अच्छी चाहत और सकारात्म विचारों वाला है तो सद्गति को प्राप्त हो जाता है। प्रकृति को चाहिए जागरण, समर्पण और संकल्प। तो संकल्प लें की आज से हम विचार और भाव के जाल को काटकर सिर्फ दृष्टा होने का अभ्यास करेंगे।

  20. प्रति वर्ष ,15 अगस्त हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया
    जाता है .यह दिन हमारे लिए गौरव का दिन भी है,क्योकि इस दिन हमारा देश
    विदेशी दस्ता से मुक्त हुआ था.आज हम विश्व पटल पर गौरव के साथ कह सकते
    हैं की हम स्वतन्त्र देश के नागरिक हैं ,परन्तु क्या हम विदेशी दस्ता से
    मुक्त हो कर भी सही माएनों में आजाद हो पाए हैं ?क्या आजादी का लाभ देश
    के प्रत्येक नागरिक को मिल पाया ? पैंसठ वर्ष का लम्बा समय बीत जाने के
    पश्चात् भी क्या हम सभी नागरिकों के लिए उनकी बुनियादी आवश्यकतायें
    अर्थात रोटी ,कपडा और मकान , सम्मान पूर्वक उपलब्ध करा पाए ?क्या आज भी
    देश की आम जनता को न्याय एवं सुरक्षा की गारंटी दे पाए ?क्या वैश्विक
    प्रतिस्पर्द्धा से टक्कर लेने के लिए प्रयाप्त शिक्षा व्यवस्था कर पाए
    ?क्या हम ऐसी व्यवस्था बना पाने में सफलता पा सके ताकि विमान हादसे ,रेल
    दुर्घटनाये ,सड़क हादसों जैसी आकस्मिक दुर्घटनाओं तथा भूकंप ,तूफ़ान
    ,बाढ़ सूखा जैसे प्राकृतिक विपदाओं के समय आवश्यक सहायता जैसे चिकत्सा
    व्यवस्था ,आर्थिक सहायता ,पुनर्वास योजना इत्यादि उपलब्ध करा पा रहे हैं
    ?

    यह हम सभी जानते हैं की सभी मोर्चों पर हम असफल रहे हैं.जो हमारी अब तक
    की विकास यात्रा का भयावह पहलू उजागर करता है .अब ज्वलंत प्रश्न यह है
    आखिर आजादी मिलने के इतने लम्बे अन्तराल के पश्चात् भी हम मौलिक विकास
    में क्यों पिछड़े हुए हैं ?आखिर क्यों अपने देश के नागरिकों द्वारा ही
    सत्ता सम्हालने के बाद भी देश के लिए कुछ
    खास नहीं कर पाए ? देश की जनता के साथ न्याय नहीं कर पाए ?

    देश को आजाद कराने के लिए अनेक योद्धाओं ,अनेक स्वतंत्रता सैनानियों ने
    अपने जीवन को न्योछावर कर दिया .उस देश को उसके नेता ही उचित आयाम नहीं
    दे सके ?कारण भी स्पष्ट है ,आजादी के पश्चात् देश का नेतृत्व समाज सेवकों
    ,या देश भक्तों के स्थान पर व्यापारियों के हाथो में चला गया.आजादी के
    पश्चात् जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर आयी वे देश की सेवा भावना कम ,
    स्वार्थ सेवा की भावना से अधिक प्रेरित थे . उन्होंने राजनीति को एक
    व्यवसाय के रूप में अपनाया देश भक्ति की ,या समाज सेवा की भावना लुप्त हो
    गयी.हमारी दोष पूर्ण महँगी चुनाव प्रणाली ने सिर्फ दौलत मंद या दबंगों को
    चुनाव जीतने का अवसर प्रदान किया .और ईमानदार ,देश भक्त व् प्रतिभशाली
    नागरिकों को राजनीति में आने या नेतृत्व सम्हालने से वंचित कर दिया .धन
    बल और बाहू बल के आधार पर चुनाव जीतने वाले नेता अपनी चुनावों में खर्च
    की गयी रकम को कई गुना लाभ सहित बसूलने के हथकंडे अपनाते रहे .अपनी

    महत्वाकांक्षा पूरी करने अर्थात अपने खजाने को भरने के लिए भ्रष्टाचार का
    सहारा लिया अपने इस कार्य को अंजाम देनेके लिए सम्पूर्ण नौकर शाही का
    सहारा लिया जिसने सरकारी अमले को आकंठ भ्रष्टाचार में डुबो दिया .जनता को
    समय समय पर शांत करने के लिए भ्रष्टाचार मिटने के अनेकों नाटक किये गए,
    और आज भी तथाकथित प्रयास जारी हैं ,और जारी रहेंगे .मुट्ठी भर नेताओं
    ,व्यापारियों ,उद्योगपतियों ,नौकरशाहों ने देश को दीमक की भांति चाट कर
    अकूत अवैध संपत्ति एकत्र कर विदेशी बैंकों में जमा करा दी.और देश को
    कंगाल कर दिया.आजादी के पूर्व विदेशी लोग देश की संपत्ति को लूट कर अपने
    देश ले जाते थे ,परन्तु आजादी के पश्चात् अपने देश के नेता ही जनता को
    लूटकर,उसका शोषण कर अवैध संपत्ति बटोर कर अपना धन विदेशी बैंकों में जमा
    कराने लगे .अर्थात जनता आजादी पूर्व भी शोषित होती थी आज भी होती है
    सिर्फ चेहरे बदल गए . कुछ दिनों पूर्व स्विस बेंक ने अपने यहाँ जमा
    विदेशी पूंजी के आंकड़े देते हुए बताया , की

    भारतीयों द्वारा जमा करायी गयी राशी विश्व में सर्वाधिक है .इंटरनेट से
    प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कुल 1.4 ट्रिलियन अर्थात 1456 अरब डॉलर स्विस
    बैंकों में जमा है ,स्विस बैंक के अतिरिक्त अन्य विदेशी बैंकों में कितना
    धन जमा है उसका कोईआंकड़ा उपलब्ध नहीं है .परन्तु ऊपर बताई गयी राशी देश
    पर कुल कर्ज का तेरह गुणा है .यदि वहां जमा समस्त काला धन देश में लाया
    जा सके तो विदेशी कर्ज चुकाने के पश्चात् बची राशी से बिना कोई टेक्स
    जनता पर थोपे,भारत सरकार के समस्त खर्चे तीस वर्षों तक बिना किसी रूकावट
    के चलाये जा सकते हैं .

    उपरोक्त सभी विसंगतियों के होते हुए भी देश की जनता ने अपने अध्यवसाय से
    ,अपने श्रम से, उन्नति भी की है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता
    .हमारे देश की जनता ने व्यापारियों ने ,उद्यमियों ने विषम परिस्थितियों
    के होते हुए भी अपनी महनत और लगन से देश को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर
    करने के भरपूर प्रयास किये हैं .आज भी हमारा देश खनिज सम्पदा ,वन सम्पदा
    ,एवं युवा शक्ति के मामले में किसी देश से कम नहीं है .जिस देश को कभी
    सोने की चिड़िया कहा जाता था ,यदि आज भी देश के संसाधनों का सदुपयोग किया
    जाय तो वर्तमान समय में भी विश्व का सिरमौर बनने की क्षमता देश के पास है
    .सिर्फ आवश्यकता है ,देश को कर्तव्यनिष्ठ ,ईमानदार ,प्रतिभाशाली तथा देश
    के लिए समर्पित व्यक्तियों का नेतृत्व प्राप्त हो .

    यह भी आश्चर्य का विषय है ,जिस देश में नित नए घोटाले जनता के समक्ष आते
    हों ,उसके बावजूद देश की उन्नत्ति होते रहना विकसित देशों को सकते में
    लाता है . देश की युवा शक्ति और कर्मठ जनता का कमाल ही कहा जायेगा.उन्नति
    का उचित आंकलन करने के लिए कोई भी छठे दशक की फिल्म का अवलोकन करना होगा
    .जिससे आजादी के तुरंत पश्चात् एवं आज की जीवन शैली में बुनियादी फर्क
    देखा जा सकता है .परन्तु विडंबना यह है इस उन्नति में सामाजिक समरसता का
    उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है इसी कारण एक तरफ बेपनाह उन्नति दिखाई देती
    है ,तो दूसरी तरफ गरीबी ,बेरोजगारी भुखमरी अराजकता ने अभी तक हमारा साथ
    नहीं छोड़ा है क्या यही है हमारी आर्थिक स्वतंत्रता है ,क्या यही हमारी
    उन्नति की परिभाषा है ,या हमारे देश का विकास है ? जब तक देश के अंतिम
    व्यक्ति तक विकास का लाभ नहीं पहुँचता कोई भी उन्नति बेमाने है.

  21. अमेरिकी संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज, डायजेस्टिव एंड किडनी
    डिजीज के अुनसार दुनिया में 1.80 लाख लोग सालाना सॉफ्ट ड्रिंक के ज्यादा
    सेवन की वजह से दम तोड़ रहे हैं।

    ऐसी ही एक रिपोर्ट हमारे देश के बारे में मार्च में आई। अमेरिका की
    प्रतिष्ठित संस्था 'इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन' की
    ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडीज-2010 में कहा गया है भारत में 2010 में
    95,427 लोगों की मौत की एक बड़ी वजह इन अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन
    है।

    इन मौतों की दर में 1990 की तुलना में 161 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 1990
    में सॉफ्ट ड्रिंक्स की लत के कारण 36,591 लोगों ने दम तोड़ा था।

    संस्था के डायरेक्टर ऑफ कम्यूनिकेशन बिल हीसेल्स का कहना है कि कई
    गैर-संक्रामक बीमारियों की वजह से दम तोडऩे वाले लोगों के खान-पान पर शोध
    के बाद ये नतीजे सामने आए हैं। 2010 पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार भारत
    में कोला पीने के आदी लोगों में से 78,017 दिल की बीमारी की वजह से मरे।

    11,314 लोग सॉफ्ट ड्रिंक्स के कारण डायबिटीज के मरीज बने, जबकि लगभग
    6,096 कैंसर रोगी बनकर दम तोड़ चुके हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990
    में 36,591 लोगों की विभिन्न गैर-संक्रामक रोगों में मरने की एक बड़ी वजह
    अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स थे। हालांकि, इस रिपोर्ट से यह खुलासा नहीं हुआ
    कि वे कौन से कैमिकल थे, जो मौत का कारण बने। भारत में २०१० में
    प्राकृतिक रूप से मरने वाले लोगों के आंकड़े इकट्ठे किए गए। इसके लिए मौत
    की वजह की सभी उपलब्ध जानकारियां जुटाई गईं। असमय मौत के मामलों में
    उम्र, लिंग और क्षेत्र के विश्लेषण में 67 अलग-अलग रिस्क फैक्टर्स को अति
    मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने की आदत से मिलान किया गया। और उनकी तुलना १९९०
    और २०१० के आंकड़ों से की गई। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित मेडिकल जन लैंसेट
    में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट से भी आंकड़े और जानकारियों को शोध में
    शामिल किया गया है। सॉफ्ट ड्रिंक्स के 7 साइड इफेक्ट :

    फॉस्फोरिक एसिड- दो कैन रोज पीने से पथरी का खतरा।

    ज्यादा आर्टिफिशियल स्वीटनर सॉफ्ट ड्रिंक्स की लत पैदा करते हैं।

    कारमेल कलर (4-एमआई)- ये कैमिकल कैरेमल का कलर देता है। एक कैन में यह 30
    माइक्रोग्राम हो तो यह कैंसर का कारण भी है। जबकि ये १४० माइक्रोग्राम तक
    पाया गया है।

    फूड डाइज- दिमाग पर असर करते हैं। फोकस करने में कठिनाई होती है। हाई
    फ्रक्टोज़ कॉर्न सीरप- ये कंसंट्रेटेड शुगर है। एक कैन में आठ चम्मच होती
    है। इससे बॉडी फैट, कॉलेस्ट्रोल तो बढ़ता ही है। टाइप-2 डायबिटीज भी हो
    सकती है।

    फॉर्मेल्डिहाइड- सोडा में एस्पार्टेम होता है। जिसके डाइजेशन से मिथेनॉल
    बनता है। जो फॉर्मिक एसिड और फार्मेल्डिहाइड (कैंसर कारक) में टूटता है।

    पोटेशियम बेंजोएट- प्रिजर्वेटिव, जो शरीर में जाकर बैंजीन (कैंसर कारक)
    बन जाता है। सोडा को धूप में रखा जाए तो भी वह बैंजीन बन जाएगा।

  22. Trushi Bansal
    आज तो मे इतना खुश हु की क्या बतौउ.आज मेरी सिस्टर की लड़की ( तृषि बंसल
    )को पंजाब बिशाखी बम्पर जिस का पहला इनाम १ करोड़ था निकला है.

    ये lotry mere jija g ने 16/04/2013 Time 12 Am पर mysarkhana se li thi.
    इस lucky lotry का no A 717740 था .और इस का हमें 18/04/2012 को मोर्निंग
    8 Am पर पता चला .jani 44 Houres mai kismat hi badal gi .

    तृषि बंसल का जनम 10/12/2012 को बठिंडा में हुआ था. मतलब 4 Month की लड़की
    crorepati बन चुकी है .

    जब तृषि बंसल का जनम हुआ था .मेरी माता और मेरे जीजा g की माता को बोहत
    अफ़सोस हुआ था क्यों की मेरी सिस्टर के पास ये दूसरी लड़की हुयी थी .
    पर मेरे जीजा g को कोई अफ़सोस नहीं था .लोग बी बोलने लगे थे की अगर लड़का
    हो जाता तो कितना acha
    होता . की एक लड़की तो पहली ही थी .

    पर अब इस लड़की की बजह से ही किस्मत खुल चुकी है.

    लड़की को मारो मत यार आज कल लड़की ही सब कुश है .

    Munish Lehri ...09988060863

  23. Trushi Bansal
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    )को पंजाब बिशाखी बम्पर जिस का पहला इनाम १ करोड़ था निकला है.

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    तृषि बंसल का जनम 10/12/2012 को बठिंडा में हुआ था. मतलब 4 Month की लड़की
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    लड़की को मारो मत यार आज कल लड़की ही सब कुश है .

  24. Trushi Bansal
    आज तो मे इतना खुश हु की क्या बतौउ.आज मेरी सिस्टर की लड़की ( तृषि बंसल
    )को पंजाब बिशाखी बम्पर जिस का पहला इनाम १ करोड़ था निकला है.

    ये lotry mere jija g ने 16/04/2013 Time 12 Am पर mysarkhana se li thi.
    इस lucky lotry का no A 717740 था .और इस का हमें 18/04/2012 को मोर्निंग
    8 Am पर पता चला .jani 44 Houres mai kismat hi badal gi .

    तृषि बंसल का जनम 10/12/2012 को बठिंडा में हुआ था. मतलब 4 Month की लड़की
    crorepati बन चुकी है .

    जब तृषि बंसल का जनम हुआ था .मेरी माता और मेरे जीजा g की माता को बोहत
    अफ़सोस हुआ था क्यों की मेरी सिस्टर के पास ये दूसरी लड़की हुयी थी .
    पर मेरे जीजा g को कोई अफ़सोस नहीं था .लोग बी बोलने लगे थे की अगर लड़का
    हो जाता तो कितना acha
    होता . की एक लड़की तो पहली ही थी .

    पर अब इस लड़की की बजह से ही किस्मत खुल चुकी है.

    लड़की को मारो मत यार आज कल लड़की ही सब कुश है .

  25. गरीबों के दर्द को वही समझ सकता है जिसने गरीबी देखी हो. जो खुद गरीबों
    के बीच में रहा हो वह ही गरीबों की समस्या को सही ढंग से समझ सकता है. एक
    इंसान किस तरह एक देश की तकदीर को संवारता है इसका उदाहरण है महापुरुष
    डा. भीम राव अंबेडकर. भीम राव अंबेडकर जिनका बचपन बेहद गरीबी में बीता,
    उन्हें छोटी जाति से संबद्ध होने की वजह से समाज की उपेक्षा का सामना
    करना पड़ा लेकिन मजबूत इरादों के बल पर उन्होंने देश को एक ऐसा रास्ता
    दिखाया जिसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है. भीम राव अंबेडकर एक
    नेता, वकील, गरीबों के मसीहा और देश के बहुत बड़े नेता थे जिन्होंने समाज
    की बेड़ियां तोड़ कर विकास के लिए कार्य किए.

    आज डा. भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) की 120वीं जयंती है. डा. भीम
    राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव
    में हुआ था. डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और
    माता का भीमाबाई था. अंबेडकर जी अपने माता-पिता की आखिरी संतान थे.
    भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद
    निचला वर्ग मानते थे. बचपन में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के
    परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था.
    भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था. अंबेडकर के पूर्वज लंबे
    समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके
    पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे. भीमराव के पिता
    हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे.

    सेना में होने के कारण भीमराव के पिता ने उनका दाखिला एक सरकारी स्कूल
    में करा दिया लेकिन यहां भी समाज के भेदभाव ने उनका साथ नहीं छोड़ा. अछूत
    और छोटी जाति की वजह से उन्हें स्कूल में सभी बच्चों से अलग बैठाया जाता
    था और पीने के पानी को छूने से मना किया जाता था. लेकिन फिर भी इतनी कठिन
    परिस्थिति में भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. भाग्य ने हमेशा ही
    भीमराव अंबेडकर जी की परीक्षा ली. 1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता
    सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद, अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई.
    बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की.
    रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ
    मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए. अपने भाइयों और
    बहनों मे केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े
    स्कूल में जाने में सफल हुये. अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव
    अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से
    सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित
    था.

    हाई स्कूल में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के अच्छे प्रदर्शन के
    बाद भी उनके साथ जातिवादी भेदभाव बेहद आम था. 1907 में भीमराव ने मैट्रिक
    की परीक्षा पास की और बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो
    भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये. उनकी इस
    सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी. समाज के सामने
    भीमराव अंबेडकर जी ने एक आदर्श पेश किया था.

    1908 भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश
    लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य
    अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़
    प्राप्त किया. 1922 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में
    अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गए.

    बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन मे अचानक
    फिर से आए भेदभाव से अंबेडकर उदास हो गए, और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी
    ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे.

    अंबेडकर जी के जीवन में भेदभाव तो बहुत आम था लेकिन साउथबोरोह समिति के
    समक्ष दलितों की तरफ से अंग्रेजों के सामने उनकी पेशी ने उनके जीवन को
    बदलकर रख दिया. भारत सरकार अधिनियम 1919 पर चर्चा करने के लिए अंग्रेजी
    हुकूमत ने अंबेडकर जी को बुलाया था. 1925 में अंबेडकर जी को बॉम्बे
    प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन आयोग में काम करने
    के लिए नियुक्त किया गया.

    कल तक एक अछूत माने जाने वाले अंबेडकर जी कुछ ही समय में देश की एक
    चर्चित हस्ती बन चुके थे. उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक
    दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु
    आलोचना की. अंबेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता मोहनदास
    गांधी (महात्मा गांधी) की आलोचना की. उन्होंने उन पर अस्पृश्य समुदाय को
    एक करुणा की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया. अंबेडकर
    ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अस्पृश्य समुदाय
    के लिये एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और
    ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो. 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के
    सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने
    रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों
    से स्वतंत्र होने में है.

    ऐसा नहीं था कि महात्मा गांधी अछूतों से भेदभाव करते थे लेकिन गांधी का
    दर्शन भारत के पारंपरिक ग्रामीण जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक लेकिन
    रूमानी था और उनका दृष्टिकोण अस्पृश्यों के प्रति भावनात्मक था. उन्होंने
    उन्हें हरिजन कह कर पुकारा. अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने इस विशेषण को
    सिरे से अस्वीकार कर दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर
    जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.

    1936 में अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना
    की, जिसने 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों में 15 सीटें जीतीं.
    अंबेडकर जी एक सफल लेखक भी थे जिन्होंने समाज पर वार करती हुई कई
    पुस्तकें लिखीं जिनमें प्रमुख थीं "थॉट्स ऑन पाकिस्तान", "वॉट कॉंग्रेस
    एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स" थी.

    अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद
    अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके
    कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के
    नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले
    कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने
    स्वीकार कर लिया. 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए
    संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर
    नियुक्त किया गया. अंबेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम में अपने
    सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की. इस कार्य में
    अंबेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन
    बहुत काम आया.

    अंबेडकर द्वारा तैयार किया गए संविधान पाठ में संवैधानिक गारंटी के साथ
    व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की
    सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी
    प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया. अंबेडकर ने महिलाओं के
    लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और
    अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की
    नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल
    किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. 1951 में
    संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने
    मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे मे उत्तराधिकार, विवाह और
    अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी.

    14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए
    एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया. अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु
    से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध
    धर्म ग्रहण किया. 1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे. जून से अक्टूबर
    1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती
    दृष्टि से ग्रस्त थे. 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी की मृत्यु हो गई.

  26. बॉलीवुड में अपने दम पर फिल्म चलाने वाली हीरोइनों की बात करें तो उनमें
    सबसे पहला नाम विद्या बालन का ही आता है. कहानी हो या डर्टी पिक्चर
    उन्होंने दोनों ही फिल्मों में अपनी ऐक्टिंग का लोहा मनवाया है. कैरेक्टर
    को स्क्रीन पर जिंदा करने की कला में माहिर विद्या को दर्शकों को आहें
    भरवाना बखूबी आता है तो अपनी ऐक्टिंग से वे ऑडियंस को सकते में डालना भी
    जानती हैं.

    घनचक्कर में रंग-बिरंगी विद्या

    अपनी आने वाली फिल्म धनचक्कर में वे कमाल-धमाल नजर आ रही हैं. फिल्म में
    विद्या पंजाबन हाउसवाइफ बनी हैं और जमकर पंजाबी में गाली-गलौज भी करती
    नजर आ रही हैं. उनकी चमकीली-भड़कीली ड्रेसेस तो पहले ही सबकी चर्चा का
    विषय है.

    अब घनचक्कर से जुड़ी ताजा खबर यह है कि यूटीवी मोशन पिक्चर्स एक वीडियो
    तैयार कर रहा है, जिसमें विद्या होंगी और यह वीडियो दुनिया भर के पतियों
    और बायफ्रेंड्स को समर्पित होगा. यह पहला मौका है जब विद्या बालन कोई
    म्यूजिक वीडियो शूट करेंगी. इस गीत को अमित त्रिनेदी ने कंपोज किया है.
    इस सांग को फिल्म में विद्या के किरदार को ध्यान में रखकर शूट किया गया
    है.

    इस चटपटे म्युजिक ट्रैक के बारे में फिल्म के डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता
    कहते हैं, "यह सांग फिल्म में उनके बिंदास पंजाबी हाउसवाइफ के कैरेक्टर
    को बखूबी पेश करेगा. यह दुनिया के सभी पतियों, बॉयफ्रेंड्स और मंगेतरों
    के लिए एक ट्रिब्यूट है."

    हालांकि डायरेक्टर ने यह भी कहा कि फिल्म मे म्युजिक वीडियो की सिक्वेंस
    अभी तय की जानी है. वाकई विद्या ने जब कुछ हटकर किया है, दर्शकों को अपनी
    ओर खींचने में वे बखूबी कामयाब रही हैं. अब बारी घनचक्कर की है.

  27. बारिश करने के लिए हमारे देश में यज्ञ और हवन का होना तो आम बात है लेकिन
    इंद्र देवता को खुश करने के लिए मेंढकों की शादी सुनकर आप भी चौंक
    जाएंगे.

    त्रिपुरा और असम के ग्रामीणों ने बारिश के देवता इंद्र को खुश करने के
    लिए एक रस्म के तहत मेंढकों की शादियां रचाई गई. पूर्वोत्तर भारत काफी
    समय से सूखे की चपेट में है. उन्हें आशा है कि इन शादियों से उनका संकट
    दूर होगा.

    फटीकोरी गांव की निवासी संध्या चक्रवर्ती ने बताया, 'हमने वरुण देवता
    (वर्षा देवता) को खुश करने के लिए मेंढकों की शादिया रचाईं.' सोमवार की
    रात इस अनोखी शादी में फटीकोरी और इंदिरा कॉलोनी के सैकड़ों लोगों ने
    हिस्सा लिया.

    महिलाओं के दो दल ने नर मेंढक और मादा मेंढक को अलग-अलग नहलाया. फिर,
    उन्हें शादी के लिए नया कपड़ा पहनाया. मादा मेंढक के गले में हार भी
    पहनाया गया था. एक हिंदू पुरोहित ने परंपरागत तरीके से शादी की रस्म पूरी
    कराई.

    शादी की व्यवस्था करने वाली शिखा सरकार ने कहा, 'शादी के बाद लोग जुलूस
    में गाने गाते मेंढकों के साथ मानू नदी पहुंचे, जहां उन्हें नदी में छोड़
    दिया गया.' मेढकों के बीच शादी हालांकि रात में होती है लेकिन इसकी
    तैयारी सुबह से ही शुरू हो जाती है. इस दिन भोज का आयोजन होता है और लोग
    पूरी रात लोकनृत्य और संगीत का आनंद लेते हैं.

  28. 100 मिलियन डॉलर यानी 544 करोड़ रुपए जरा सोंचिए क्‍या इतनी बड़ी रकम कोई
    कंपनी किसी एक व्‍यक्ति को दे सकती है वो भी बोनस के रूप में लेकिन गूगल
    ने कुछ ऐसा ही किया है। गूगल ने एडवरटाइजिंग प्रोडेक्‍ट के उपाध्‍यक्ष
    नील मोहन जो 544 करोड़ रुपए बोनस के रूप में दिए हैं। नील मोहन भारतीय
    मूल के अमेरिकी नागरिक है। गूगल के अनुसार उसे भरोसा है नील के बलबूते वो
    इस साल 38110 करोड़ रुपए की कमाई कर लेगा।

    डेली मेल के अनुसार नील का करियर ग्‍लोरुाइड टेक्निकल सपोर्ट से शुरु हुआ
    था जहां पर उन्‍हें 60,000 डॉलर की सेलरी मिलती है। हाल ही में 39 वर्षिय
    नील को सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर से ऑफर आया था, लेकिन गूगल ने 544
    रुपए बोनस देकर नील को अभी रोक लिया है।

    इससे एक बात तो साफ हो जाती है गूगल ऐसे इम्‍प्‍लाई को अपने से अलग नहीं
    करना चाहती जो उसके लिए काफी मायने रखते हैं। नील मोहन की पत्‍नी हेमा
    सरीम मोहन का सैन फ्रांसिस्‍के में एक आलीशान घर भी है जिसकी कीमत 5.2
    करोड़ रुपए है। अब देखना ये है नील गूगल की उम्‍मीदों पर कितना खरा उतरते
    हैं।

  29. क्‍या आप फोन और टैबलेट में अननोन कॉल से परेशान हो चुके हैं, शायद कोई
    फोन यूजर होगा जिसके फोन में कभी अननोन कॉल न आई हो। लेकिन कभी-कभी
    प्रचार करने वाली कंपनियों के इतने कॉल आते हैं उन्‍हें रिसीव करते करते
    हैं हालत खराब हो जाती है। आप भले ही अपने फोन में आने वाली अननोन कॉल को
    न रोक सके लेकिन कॉल करने वाले व्‍यक्ति या फिर कंपनी का नाम जरूर जान
    सकते हैं। अगर आप एंड्रायड स्‍मार्टफोन का प्रयोग कर रहे हैं तो गूगल
    प्‍ले में जाकर ट्रू कॉलर नाम की एप्‍लीकेशन सर्च करें, ट्रू कॉलर
    एप्‍लीकेशन की मदद से आप अपने फोन में आने वाले अननोन कॉल की डीटेल जान
    सकते हैं।

    http://www.truecaller.com

    कैसे प्रयोग करें ट्रू कॉलर

    ट्रू कालर को सबसे पहले गूगल प्‍ले में जाकर अपने टैबलेट और स्‍मार्टफोन
    में डाउनलोड कर लें। ट्रू कालर एप्‍लीकेशन गूगल प्‍ले से फ्री में
    डाउनलोड की जा सकती है। एप्‍लीकेशन इंस्‍टॉल करने के बाद अब जब भी आपके
    फोन में कोई अननोन कॉल आएगी ट्रू कॉलर उस फोन नंबर को डिटेक्‍ट करके उसका
    नाम आपके फोन में डिस्‍प्‍ले कर देगा।

    कौन कौन से ओएस में ट्रू कॉलर प्रयोग कर सकते हैं

    * एंड्रायड के सभी वर्जन में ट्रू कॉलर सपोर्ट करता है
    * आईओएस
    * ब्‍लैकबेरी ओएस
    * सिम्‍बेइयन फोन में
    * विंडो फोन में
    * और सभी जावा बेस्‍ड फोनों में

    http://www.truecaller.com

  30. क्‍या आप फोन और टैबलेट में अननोन कॉल से परेशान हो चुके हैं, शायद कोई
    फोन यूजर होगा जिसके फोन में कभी अननोन कॉल न आई हो। लेकिन कभी-कभी
    प्रचार करने वाली कंपनियों के इतने कॉल आते हैं उन्‍हें रिसीव करते करते
    हैं हालत खराब हो जाती है। आप भले ही अपने फोन में आने वाली अननोन कॉल को
    न रोक सके लेकिन कॉल करने वाले व्‍यक्ति या फिर कंपनी का नाम जरूर जान
    सकते हैं। अगर आप एंड्रायड स्‍मार्टफोन का प्रयोग कर रहे हैं तो गूगल
    प्‍ले में जाकर ट्रू कॉलर नाम की एप्‍लीकेशन सर्च करें, ट्रू कॉलर
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    फोन में कोई अननोन कॉल आएगी ट्रू कॉलर उस फोन नंबर को डिटेक्‍ट करके उसका
    नाम आपके फोन में डिस्‍प्‍ले कर देगा।

    कौन कौन से ओएस में ट्रू कॉलर प्रयोग कर सकते हैं

    * एंड्रायड के सभी वर्जन में ट्रू कॉलर सपोर्ट करता है
    * आईओएस
    * ब्‍लैकबेरी ओएस
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  31. कोई बात नहीं

    Tuesday, April 16, 2013

    यही वफा का सिला है, तो कोई बात नहीं
    ये दर्द तुम से मिला है तो कोई बात नहीं

    यही बहुत है तुम देखते हो साहिल से
    हम अगर डूब भी रहे हैं तो कोई बात नहीं

    रखा छुपा के तुमको आशियाने दिल में
    वो अगर छोड़ दिया है तुमने तो कोई बात नहीं

    किसकी मजाल कहे कोई मुझको दीवाना
    अगर ये तुमने कहा है, तो कोई बात नहीं

  32. नया एक रब्त क्यों करें हम
    बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम

    खामोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
    कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम

    ये काफी है के हम दुश्मन नहीं हैं
    वफादारी का दावा क्यों करें हम

    वफ़ा, इखलास, कुर्बानी, मोहब्बत
    अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम

    हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
    तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

    नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
    तो फिर दुनिया की परवाह क्यों करें हम

  33. रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चॉंद
    आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !
    उलझनें अपनी बनाकर आप ही फॅंसता,
    और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

    जानता है तू कि मैं कितना पुराना हॅू!
    मैं चुका हूं देख मनु को जन्मते—मरते;
    और लाखों बार तुझ—से पागलों को भी
    चॉंदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

    आदमी का स्वप्न ? है बह बुलबुला जल का,
    आज उठता और कल फिर फूट जाता ;
    किन्‍तु, फिर भी धन्‍य ; ठहरा आदमी ही तो ?
    बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता हैा

    मैं न बोला, किन्‍तु, मेरी रागिनी बोली,
    देख फिर से, चॉद मुझको जानता है तू ?
    स्‍वप्‍न मेरे बुलबुले हैं हैं यही पानी ?
    आग को भी क्‍या नहीं पहचानता है तू ?

    मैं न वह जो स्‍वप्‍न पर केवल सही करते
    आग में उसको गला लोहा बनाती है ;
    और उस पर नींव रखती हूं नये घर की
    इस तरह, दीवार फौलादी उठाती हूं

    मनु नहीं, मनु पुञ है यह सामने, जिसकी
    कल्‍पना की जीभ में भी धार होती है ,
    बात ही होते विचारों के नहीं केवल,
    स्‍वप्‍न के भी हाथ में तलवार होती हैा

    स्‍वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
    ''रोज ही आकाश चढते जा रहे हैं वे;
    रोकिये, जैसे बने, इन स्‍वप्‍नबालों को,
    स्‍वर्ग को ही और वढते आ रहे हैं वे'' |

    -रामधारी सिंह 'दिनकर' (सामधेनी से)
    Ramdhari Singh Dinkar

  34. जीवन कटना था, कट गया
    अच्छा कटा, बुरा कटा
    यह तुम जानो
    मैं तो यह समझता हूं
    कपड़ा पुराना एक फटना था, फट गया
    जीवन कटना था कट गया।

    रीता है क्या कुछ
    बीता है क्या कुछ
    यह हिसाब तुम करो
    मैं तो यह कहता हूं
    परदा भरम का जो हटना था, हट गया
    जीवन कटना था कट गया।

    क्या होगा चुकने के बाद
    बूंद—बूंद रिसने के बाद
    यह चिंता तुम करो
    मैं तो यह कहता हूं
    करजा जो मिटटी का पटना था, पट गया
    जीवन कटना था कट गया।

    बंधा हूं कि खुला हूं
    मैला हूं कि धुला हूं
    यह बिचार तुम करो
    मैं तो यह सुनता हूं
    घट—घट का अंतर जो घटना था, घट गया
    जीवन कटना था कट गया।

  35. सोच समझ कर करना पंथी यहॉं किसी से प्यार
    चांदी का यह देश,यहॉं के छलिया राजकुमार
    किसे यहॉ अवकाश सुने जो तेरी करूण कराहें
    तुझ पर करें बयार, यहॉं सूनी हैं किसकी बाहें
    बादल बन कर खोज रहा तू किसको इस मरूथल में
    कौन यहॉ, व्याकुल हों जिसकी तेरे लिए निगाहें
    फूलों की यह हाट लगी है, मुस्कानों का मेला
    कौन खरीदेगा तेरे सूखे आंसू दो चार
    सोच समझ कर करना पंथी यहॉ किसी से प्यार ।

  36. मर गई मानवता, शर्मसार हो गई इंसानियत, एक परिवार सड़क पर तड़पता रहा, एक
    पिता, एक पति, अपनी पत्नी के लिए, अपनी मासूम बच्ची के लिए बेरहम लोगों
    से करीब डेढ़ घंटे मदद की भीख मांगता रहा. लेकिन करीब पचास लाख की आबादी
    वाले जयपुर शहर में उसके पास से हजारों इंसान तो गुजरे पर मदद का हाथ
    किसी ने नहीं बढ़ाया. आखिर में पथरीली सड़क पर पत्थरदिल इंसानों के सामने
    देखते ही देखते उस परिवार के दो लोगों ने दम तोड़ दिया.

    तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं वरना शायद सुनने वाले इसे भी सच नहीं मानते और
    देखने वाले साफ मुकर जाते. हम सब खुद को इंसान कहते हैं, पर हम इंसानों
    के बीच से ही चंद ऐसे लोग वो हरकत कर बैठते हैं. जिन्हें देख कर हैवान भी
    हमसे जलने लगे. फिर चाहे बात किसी ज़ुल्म की हो, हादसे की या फिर हादसे
    को देख कर खामोश रहने वाले इंसानी तमाशबीनों की.

    इतनी कड़वी बातें हम हरगिज ना कहते. पर क्या करें जब हमारे और आपके शहर
    के बीचो-बीच एक शख्स अपनी बीवी और दूधपीती बच्ची की लाशों के बीच खुद
    घायल होते हुए अपने ज़ख्मी मासूम बेटे को समेटे पूरे डेढ़ घंटे तक सड़क
    पर पड़ा मदद के लिए गिड़गिड़ाता रहे और उसकी मदद के लिए पूरे शहर की एक
    भी खिड़की ना खुले, तो फिर खुद के जिंदा होने पर शक ना हो तो क्या हो?

    दरअसल बेचैन कर देने वाली ये घटना जयपुर की गूणी टनल की हैं. एक
    हंसता-खेलता परिवार इस टनल से गुज़र रहा था कि तभी पीछे से आ रहे एक तेज
    रफ्तार ट्रक ने उस मोटर साइकिल को टक्कर मार दी जिसपर पर ये परिवार सवार
    था. हादसे के वक्त बाइक पर मियां-बीवी, उनकी दस महीने की बिटिया और चार
    साल का बेटा सवार था. ट्रक तो टक्कर मार कर भाग गया पीछे पूरा परिवार खून
    से लथपथ सड़क पर गिर पड़ा. पर तब भी सभी की सांसें चल रही थीं. परिवार का
    मुखिया खुद घायल था पर अपने बीवी बच्चों को बचाना चाहता था.

    काश! मदद की खिड़की वक्त रहते खुल जाती. क्योंकि अगर ऐसा हुआ होता तो
    इंसानियत यूं शर्मिंदा ना होती. बीच सड़क पर दस महीने की मासूम बच्ची और
    उसकी मां यूं सिसक-सिसक और तड़प-तड़प कर ना मरती.

    सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक परिवार का मुखिया घायल कन्हैया किसी तरह खुद
    को संभालता है और घायल बीवी, बेटी और बेटे को समेट कर एक साथ सड़क पर ही
    रख देता है. चारों खून से लथपथ थे. उन्हें फौरन अस्पताल ले जाने की जरूरत
    थी. लिहाजा कन्हैया टनल से गुजरने वाले हर इंसान से मदद की भीख मांगता
    है.

    इस दौरान टनल से दर्जनों गाड़ियां और उसमें सवार सैकड़ों इंसान गुजरते
    हैं. कुछ गाड़ियों की रफ्तार तक कम हो जाती है. पर इंसानों की नहीं, वो
    बस देखते, सोचते, अपनी गाड़ी को बचाते और बच कर बेशर्मी के साथ निकल
    जाते. जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

    वक्त लगातार बीतता जा रहा था. खून बेतहाशा बह रहा था. सांसें हर पल दम
    घोंट रही थी. इस, दौरान ना मालूम, कितने ही ट्रक, बस, कार, जीप, टैंपो,
    बाइक गुज़र गए. पर उऩमें शायद एक भी इंसान सवार नहीं था. क्योंकि कोई
    रुका ही नहीं.

    अलबत्ता हर गुज़रती गाड़ी को चलाने वाला इंसान इस बात का ख्याल जरूर कर
    रहा था कि बीच सड़क पर घायल इंसानों से उनकी गाड़ी ना टकरा जाए. इसलिए वो
    स्पीड कम करते फिर उन घायलों से कन्नी काटते गुज़र जाते.

    दूसरी तरफ कन्हैया हर आती गाड़ी को जिंदगी की नज़र से देखता. खून से लथपथ
    होते हुए भी पूरी हिम्मत से फिर अपनी हिम्मत समेटता. उन्हें आवाज देता,
    उन्हें पुकारता और जैसे ही वो बिना रुके गुजर जाते, वो फिर कभी अपने
    बेटे, कभी बेटी, तो कभी बीवी से लिपट जाता. रोता, सिर पीटता और फिर अगली
    गाड़ी को बेबसी से देखने लगता कि शायद उनमें तो कोई इंसान नज़र आ जाए.

    और इस तरह इंसानों की उम्मीद में ना सिर्फ इंसानियत दम तोड़ती गई. बल्कि
    पहले कन्यैहा की दस महीने की मासूम ने सड़क पर दम तोड़ा और फिर उसके कुछ
    देर बाद ही उसकी बीवी ने भी पथरीली सड़क पर ही पत्थरदिल शहर को अलविदा कह
    दिया.

    पर कन्हैया अब भी नहीं थका था. अब भी वो पागलों की तरह रो रहा था, चीख
    रहा था. गिड़गिड़ा रहा था, हाथ जोड़ रहा था, कि कम से कम कोई उसके बेटे
    को तो बचा ले. आखिरकार करीब डेढ़ घंटे बाद एक मोटर साइकिल सवार के अंदर
    का इंसान जाग ही उठा. पहले वो रुका, फिर उसे देख कर दूसरा रुके, फिर
    तीसरा रुका और तब कहीं जाकर कन्हैया की इंसानों की खोज खत्म हुई. पर काश!
    यही इंसान कुछ देर पहले अगर इंसान बन जाते तो क्या पता कन्यैहा की बीवी
    और बेटी बच जाते.

  37. पाकिस्तान के पहली बार एक ट्रांसजेंडर को चुनाव लड़ने की इजाजत दी गई है.
    देश के चुनाव आयोग ने यहां एक चुनाव क्षेत्र से ट्रांसजेंडर के नामांकन
    पत्र को स्वीकार किया.

    शुरूआत में चुनाव आयोग ने बिंदिया राणा के नामांकन पर्चे को रद्द कर दिया
    था लेकिन अपील दायर करने के बाद बिंदिया को आखिरकार चुनाव लड़ने की इजाजत
    मिल गई.

    बिंदिया ने कहा कि वह पाकिस्तान में ट्रांसजेंडरों के हाल को सामने लाना चाहती हैं.

  38. बाड़मेर। जरा सोचिए, आप ट्रेन में बैठे हैं और गाड़ी वक्त से 3 घंटे पहले
    ही स्टेशन छोड़कर चल पड़े। आपको पता चले कि गाड़ी बगैर इंजन के दौड़ रही
    है और उस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। सोचने भर से रौंगटे खड़े हो
    जाएंगे। मगर बीती रात राजस्थान के बाड़मेर में गुवाहटी एक्सप्रेस के
    यात्रियों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। एक बड़ा हादसा टल गया।

    मौत के साए में 20 किलोमीटर लंबे इस सफर का खौफ लोगों के चेहरे से साफ
    झलक रहा था। ये लोग अपने परिवार के साथ गुवाहटी के लिए निकले थे। बाड़मेर
    स्टेशन से ट्रेन के निकलने का वक्त 11 बजे था मगर ट्रेन 8 बजे ही निकल
    पड़ी। तमाम शंकाओं के बीच जब उन्हें पता चला कि ट्रेन बगैर इंजन के चल
    रही है तो उनके रौंगटे खड़े हो गए। मानो इतना ही काफी नहीं था कि सामने
    से कालका एक्सप्रेस के आने की खबर ने तो जैसे सबकी जान ही निकाल ली।

    आफत में पड़ी जान! बगैर इंजन सरपट दौड़ पड़ी ट्रेन

    ट्रेन की रवानगी से पहले कर्मचारी अपने रुटीन के काम कर रहा थे कि तभी
    ट्रेन जोर से हिलना शुरू हुई। किसी ने आवाज दी कि ट्रेन चल पड़ी और वो भी
    बगैर इंजन के। फिर तो रुकवाने की तमाम कोशिशें शुरू हुई मगर सब बेकार।
    गुवाहाटी एक्सप्रेस के 14 डिब्बे सरपट दौड़ रहे थे।

    खबर लगते ही बाड़मेर से जोधपुर तक रेलवे विभाग में हड़कंप मच गया।
    सैकड़ों लोगों की जान आफत में थी। रास्ते के सारे क्रॉसिंग बंद कर दिए
    गए। बगैर इंजन के दौड़ती गाड़ी की रफ्तार पत्थर लगाकर कम करने की कोशिश
    की गई। ट्रेन रूकने से पहले 20 किलोमीटर का सफर तय कर चुकी थी। आनन फानन
    में सामने से आने वाली कालका एक्सप्रेस को पहले ही रुकवा लिया गया।

    अधिकारियों का कहना है कि गुटके ठीक से नहीं लगे होंगे। यानि साफतौर पर
    रेलवे की लापरवाही नजर आती है। जरा कल्पना कीजिए कि अगर ये ट्रेन हादसे
    का शिकार हो जाती तो कौन जिम्मेदार होता।

  39. अगर आपका अपने ब्‍वॉयफ्रेंड से झगड़ा हो और आप गुस्‍से से एसएमएस करने जा
    रहे हों तो ऐसा बिल्‍कुल भी ना करें. हाल ही में रिलेशनशिप के एक सर्वे
    में सामने आया है कि एसएमएस के झगड़े आपके रिश्‍तों में दरार डाल सकता
    है.

    कई बार ऐसा होता है कि डिनर के लिए जाना हो और अचानक प्रोग्राम बदल जाए
    या फिर एक फोन करके आपका पार्टनर मिलने से इनकार कर दें. ऐसे में हम
    अक्‍सर एक एसएमएस करके इसका जवाब देते हैं और कई बार ये एसएमएस बढ़ते ही
    चले जाते हैं. अगर आप अपने रिश्‍ते को अच्‍छा बनाएं रखना चाहते हैं तो इस
    तरह के झगड़ों से बचें. किताब 'लिटिल व्‍हाइट वाईस' के लेखक और
    मनोचिकित्‍सक इश मेजर कहते हैं, 'लिखे हुए शब्‍द एक खालीपन के साथ आते
    हैं. आप ये भी नहीं देख पाते कि सामने वाला इंसान इस एसएमएस से कैसे
    रिएक्‍ट कर रहा है. जब तक आपको पता चल पाता है तब तक आपका मैसेज एक बड़े
    गुस्‍से में तब्‍दील हो जाता है.' इसका मतलब आप जिस भी किसी जगह घर,
    शॉपिंग, पार्टी, कहीं भी होते हैं ये मैसेज का सिलसिला चलता रहता है और
    ये मैसेज लंबे समय के लिए झगड़ों का कारण बन जाते हैं.

    एसएमएस के जरिये बातचीत करने से हमेशा बात बिगड़ती ही है. मनोवैज्ञानिक
    और लेखक जेवियर एमेडर कहते हैं, एसएमएस से सूचनाओं का आदान-प्रदान सही
    ढंग से नहीं हो पाता है जितना कि आमने-सामने बात करने से होता है. आप
    सामने वाले के चेहरे के हाव-भाव, आवाज और बॉडी लैंग्‍वेज नहीं देख पाते
    हैं.' इससे बातचीत ठीक से नहीं होती और बात बनने के बजाय बिगड़ जाती है.
    इससे अच्‍छा है आप अपने ब्‍वॉयफ्रेंड से जाकर मिले और बात करें. इससे
    आपको सही बात और परिस्थिति का पता चल पाएगा.

    जेवियर एमेडर कहते हैं, जब आप एसएमएस करते हैं तो आप अपने दिमाग का
    ज्‍यादा इस्‍तेमाल करते हैं, बातचीत करने में भावनाओं का ज्‍यादा
    इस्‍तेमाल होता है. एसएमएस की ये प्रक्रिया झगड़े को बढ़ाता है. सामने से
    आ रहे मैसेज को सिर्फ आंखें पढ़ती हैं लेकिन दिमाग इन मैसेज को पढ़कर
    किसी सही नतीजे तक नहीं पहुंच पाता है. फोन में रखे एसएमएस भविष्‍य में
    भी झगड़े करवाता है.

    कई बार फोन से तो मैसेज डिलीट हो जाते हैं लेकिन मैसेज आपकी याददाश्‍त
    में रह जाते हैं. तो अगली बार से जब भी झगड़े वाली नौबत आए तो बातचीत से
    सुलझाना ज्‍यादा समझदारी है जिससे रिश्‍तों में खटास ना आ पाए.

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